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न-VI. III. 18
(इन्नन्त, सिद्ध तथा बध्नाति उत्तरपद रहते भी सप्तमी का अलुक) नहीं होता। 7-VI. 1. 36
(ककार उपधा वाले स्त्री शब्द को पंवदभाव) नहीं हो- ता। न-VI. iv.4
(तिस्, चतसृ अङ्गको नाम् परे रहते दीर्घ) नहीं होता। न-VI. iv.7 . नकारान्त अङ्ग की (उपधाको नाम परे रहते दीर्घ होता
न-VI. iv. 30 .
(पूजा अर्थ में अबु अङ्ग की उपधा के नकार का लोप) नहीं होता। न-VI.iv. 39
(क्तिच प्रत्यय परे रहते अनुदात्तोपदेश, वनति तथा तनोति आदि अङ्गों के अनुनासिक का लोप तथा दीप) नहीं होता है। न-VI. iv.69
(घु, मा, स्था, गा, पा, हा तथा सा अङ्गों को ल्यप् परे रहते जो कुछ कहा है, वह) नहीं होता। न-VI. iv.74
(लुङ, लङ् तथा लुङ् परे रहते जो अट्, आट् आगम कहे हैं, वे माङ् के योग में) नहीं होते। न-VI.iv.85
(म तथा सधी अङ्गको यणादेश नहीं होता.(अजादि सुप परे रहते)। न-VI. iv. 126
(शस.दद तथा वकार आदि वाली धातुओं के गुणादेश द्वारा निष्पन्नजो अकार,उसके स्थान में एत्त्व तथा अभ्यास लोप) नहीं होता, कित,डित लिद एवं थल परे रहते)। न-VI. iv. 137
(वकार तथा मकार अन्त में हैं जिसके, ऐसे संयोग से उत्तर,तदन्त भसजक अन के अकार का लोप नहीं होता।
न-VI. iv. 170
(अपत्यार्थक अण् के परे रहते वर्मन् शब्द के अन् को छोड़कर जो मकार पूर्ववाला अन्, उसको प्रकृतिभाव) नहीं होता। न-VII. 1. 11
(ककाररहित इदम् तथा अदस के भिस को ऐस) नहीं होता। न-VIII. I. 26
(इतर शब्द से उत्तर सु तथा अम् के स्थान में वेद-विषय में अद्ङ् आदेश) नहीं होता। न-VII. 1. 62 (लिट्-भिन्न इडादि प्रत्यय परे रहते रघ आङ्ग को नुम् आगम) नहीं होता। न-VII.1.68
(केवल सु तथा दुर् उपसर्गों से उत्तर लभ् धातु को खल् तथा घञ् प्रत्यय परे रहते नुम् आगम) नहीं होता। न-VIII. 1.78
(अभ्यस्त अङ्ग से उत्तर शतृ को नुम् आगम) नहीं होता। न-VII. ii.4
(परस्मैपदपरक इडादि सिच परे रहते हलन्त अङ्गको वृद्धि नहीं होती। न-VII. 1.8
(वशादि कृत् प्रत्यय परे रहते इट् का आगम) नहीं होता। न-VII. ii.39 (वृ तथा ऋकारान्त धातुओं से उत्तर इट् को लिङ् परे
तीनों रोता।
न-VII. ii.59
(वृतु इत्यादि चार धातुओं से उत्तर सकारादि आर्धधातुक को परस्मैपद परे रहते इट् आगम) नहीं होता। न-VII. ifi.3
(पदान्त यकार तथा वकार से उत्तर जित.णित. कित तद्धित परे रहते अङ्ग के अचों में (आदि अच् को वृद्धि) नहीं होती, किन्तु उन यकार वकार से पूर्व तो ऐच = ऐ और औ आगम क्रमशः होते है)।