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न-VII. 1.6
न-VII. iv.63 क्रिया के अदल-बदल अर्थ में पूर्व सूत्र से जो कुछ (कुङ् अङ्ग के अभ्यास को यङ् परे रहते चवर्गादेश) कहा है अर्थात् वृद्धिनिषेध और ऐच आगम, वह) नहीं नहीं होता। होता।
न - VIII. 1. 24 न-VII. 1. 22
(च,वा,ह,अह,एव- इनके योग में षष्ठ्यन्त,चतुर्थ्यन्त, (देवता इन्द्र में उत्तर पद के रूप में प्रयुक्त इन्द्र शब्द के द्वितीयान्त युष्मद्, अस्मद् शब्दों को पूर्व सूत्रों से प्राप्त अचों में आदि अच् को वृद्धि नहीं होती।
वाम् नौ, आदि आदेश) नहीं होते। न-VII. 1. 27
-VIII. 1.29 (अर्ध शब्द से परे परिमाणवाची शब्द के अचों में आदि (पद से उत्तर लुडन्त तिङन्त को अनुदात्त) नहीं होता। अकार को वृद्धि) नहीं होती.(पूर्वपद को तो विकल्प से न-VIII.1.37 होती है; जित्, णित् तथा कित् तद्धित परे रहते)।
(यावत् और यथा से युक्त अव्यवहित तिङन्त को पू... न-VII. 1.34
जा-विषय में अनुदात्त) नहीं होता, (अर्थात् अनुदात्त ही (उपदेश में उदात्त तथा मकारान्त धातु को चिण तथा होता है)। बित, णित् कृत् परे रहते वृद्धि नहीं होती (आङ्पूर्वक चम् धातु को छोड़कर)।
(गति अर्थवाले धातओं के लोट लकार से यक्त लन्त न-VII. I. 45
तिङन्त को अननुदात्त नहीं होता, यदि कारक सारा अन्य) (प्रत्यय में स्थित ककार से पूर्व या तथा सा के अकार न हो तो। के स्थान में इकारादेश) नहीं होता।
न-VIII. 1.73 न-VII. 1.59
(समान अधिकरण वाला आमन्त्रित पद परे हो तो उससे (कवर्ग आदि वाले धातु के चकार तथा जकार के स्थान पूर्ववाला आमन्त्रित पद अविद्यमान के समान) न हो। में कवर्गादेश) नहीं होता।
न-VIII. 1.3 न-VII.1.87
(ना परे रहते मुभाव असि) नहीं होता। (अभ्यस्तसज्जक अङ्ग की लघु उपधा इक को अजादिन -VIII. 1.8 पित् सार्वधातुक परे रहते गुण) नहीं होता।
(प्रातिपदिक.के अन्त का जो नकार. उसका ङि तथा न-VII. iv.2
सम्बुद्धि परे रहते लोप) नहीं होता। (अक् प्रत्याहार के किसी अक्षर का लोप हुआ है जिस न-VIII. ii. 57. अङ्ग में,उसके तथा शासु अनुशिष्टौ एवं ऋदित् अङ्गों की ___(ध्यै, ख्या, प, मूर्छा,मदी - इन धातुओं के निष्ठा के उपधा को चङ्परक णि परे रहते हस्व) नहीं होता।
तकार को नकारादेश) नहीं होता। -VII. iv. 14
न-VIII. 1.79
(रेफ तथा वकारान्त भसज्ञक को एवं कुरकुर धातु की (कप् प्रत्यय परे रहते अण् = अ,इ, उ, को हस्व)
उपधा को दीर्घ) नहीं होता। नहीं होता।
न-VIII. II. 110 न-VII. iv. 35
(रेफ परे है जिससे उसके सकार को तथा सप्ल, सूज, (पुत्र शब्द को छोड़कर अवर्णान्त अज को वेद-विषय
स्पृश, मह एवं सवनादिगणपठित शब्दों के सकार को में क्यच् परे रहते जो कुछ कहा है, वह) नहीं होता।
इण तथा कवर्ग से उत्तर मूर्धन्य आदेश) नहीं होता।