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...त्वन:-III. iv. 14
देखें - तवैकेन्केन्यत्वनः III. iv. 14 त्वमौ - VII. ii. 97
(एक अर्थ का कथन करने वाले युष्मद, अस्मद् अग के मपर्यन्त भाग को क्रमशः) त्व,म आदेश होते हैं। ....वर.. -VI. iv. 20
देखें - ज्वरत्वर VI. iv. 20 ...त्वर... -VII. ii. 28
देखें - रुख्यमत्वर० VII. ii. 28 ...त्वर.. - VII. iv.95
देखें-स्मृदत्वर० VII. iv.95 ...त्वष्ट..-VI.iv: 11
देखें-अप्तन्तच्० VI. iv. 11
त्वा... -VIII. 1.23
देखें-त्वामौ VIII. I. 23 त्वात् -V.I. 119
(यहाँ से लेकर) 'ब्राह्मणस्त्वः 'v.i. 135 के त्वपर्यन्त (त्व तल प्रत्यय होते हैं,ऐसा अधिकार जानना चाहिये)। त्वामौ -VIII. I. 23
(पद से उत्तर अपादादि में वर्तमान द्वितीया विभक्ति को जो एकवचन, तदन्त युष्मद्, अस्मद् पद को यथासङ्ख्य करके) त्वा,मा आदेश होते हैं (और वे अनुदात्त होते है)। वाहौ-VII. ii. 94
(सु विभक्ति परे रहते युष्मद, अस्मद् अंग के मपर्यन्त भाग को क्रमशः) त्व तथा अह आदेश होते हैं। त्वे - VI. iii. 63
त्व प्रत्यय परे रहते (भी ङ्यन्त तथा आबन्त शब्द को बहुल करके हस्व होता है)।
. थ-प्रत्याहारसूत्र XI
आचार्य पाणिनि द्वारा अपने ग्यारहवें प्रत्याहार सूत्र में पठित पञ्चम वर्ण।
पाणिनि द्वारा अष्टाध्यायी के आदि में पठित वर्णमाला का चौतीसवां वर्ण। . . ..-1.1.23
देखें-थफान्तात् I. 11. 23 ...... -III. iv. 78 - देखें-तिप्तस्झि० III. iv. 78 ...-VI. 1. 144
देखें-थाथपञ् VI. ii. 144 ..... - VII. 1.9
देखें-तितुत्र VII. 1.9 थ:-VII. 1.87 (पथिन् तथा मथिन् अङ्ग के) थकार के स्थान में (न्थ' आदेश होता है)। थ:-VIII. ii.35
(आह के हकार के स्थान में) थकारादेश होता है.(झल परे रहते)।
थकन् -III. 1. 146
(गै धातु से शिल्पी कर्ता वाच्य होने पर) थकन् प्रत्यय होता है। थट्-V.ii.50
(सङ्ख्या आदि में न हो जिसके. ऐसे षष्ठीसमर्थ सङ्ख्यावाची नकारान्त प्रातिपदिक से पूरण' अर्थ में (थट् तथा मट् आगम होता है)। ...थना: - VII. I. 45
देखें - तप्तनप० VII. I. 45 थफान्तात् -I. ii. 23 (नकार उपधा वाली) थकारान्त तथा फकारान्त धातुओं से परे (जो सेट् क्त्वा प्रत्यय,वह विकल्प करके कित् नहीं होता है)। थमुः - V.lil. 24 (प्रकारवचन में वर्तमान इदम् प्रातिपदिक से स्वार्थ में) थमु प्रत्यय होता है। ..थल्... - III. iv. 82 देखें-णलतुसुस० III. Iv.82