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...त्रिपूर्वात्
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त्वतली
...त्रिपूर्वात् - V. 1. 30
-V.1.55 देखें - वित्रिपूर्वात् V. 1. 30
(षष्ठीसमर्थ) त्रि प्रातिपदिक से (पूरण' अर्थ में तीय त्रिप्रभृतिषु - VII. iv. 49
प्रत्यय होता है तथा प्रत्यय के साथ-साथ त्रि को तीन मिले हुये संयुक्त वर्णों को (शाकटायन आचार्य के सम्प्रसारण हो जाता है)। मत में द्वित्व नहीं होता)।
त्रे:-VI. iii.47 ...त्रिभ्याम् -V.ii.43
त्रिशब्द को त्रयस् आदेश होता है;सङ्ख्याउत्तरपद रहते, देखें- वित्रिभ्याम् V. 1. 43
बहुव्रीहि समास तथा अशीति उत्तरपद को छोड़कर)। ...त्रिभ्याम् - V. iv. 102
वे:-VII.1.53 देखें-द्वित्रिभ्याम् V. iv. 102 .
त्रि अङ्ग को (त्रय आदेश होता है, आम् परे रहते)।
त्रैगर्ते - IV. 1. 111 ...त्रिभ्याम् - V. iv. 115 देखें-द्वित्रिभ्याम् V. iv. 115
(भर्ग शब्द से गोत्र में फञ् प्रत्यय होता है; त्रिगर्त देश ...त्रिभ्याम् - VI. ii. 197
में उत्पन्न अर्थ वाच्य हो तो। देखें - वित्रिभ्याम् VI. I. 197
त्र्यच् - VI. ii. 90
(अर्म शब्द उत्तरपद रहते भी अवर्णान्त जो दो अचों । ....त्रिस्... - VIII. iii. 43
वाले तथा) तीन अचों वाले (महत् तथा नव से भिन्न .. .देखें-द्विखिश्चतः VIII. III.43
पूर्वपद, उन्हें आधुदात्त होता है)। त्रिस्तावा-.iv.84
...त्र्यायुष... -V.iv.77 . (द्विस्तावा तथा) त्रिस्तावा शब्द का निपातन किया जाता
__ देखें - अचतुर० V. iv. 77 है,(यज्ञ की वेदि अभिधेय हो तो)।
...त्र्यो:-V. iii.45 त्रिंशच्चत्वारिंशतो: - V.i.61
देखें-द्वियोः V. 11.45 (परिमाणसमानाधिकरण वाले प्रथमासमर्थ) त्रिंशत् तथा चत्वारिंशत प्रातिपदिकों से षष्ठयर्थ में (सज्जाविषय में त्व... -V.I. 118 डण् प्रत्यय होता है, ब्राह्मण-प्रन्थ अभिधेय हो तो)।
बाण-प्रन्थ अभिधेय हो तो देखें- वसली v.1.118. ...त्रिंशत्... - V.1.58
- व... - VII. II. 94 देखें-पंक्तिविंशति० V.1.58
देखें-वाही VII. 1.94 त्रिंशत्... - V.I. 61
त्व... - VII. I. 97 .
देखें-त्वमौ VII. 1.97 देखें-त्रिंशच्चत्वारिंशतो: V.I. 61
व-.i. 135 ...त्रिंशद्भ्याम् – V.i.64
(षष्ठीसमर्थ ऋत्विग विशेषवाची ब्रह्मन् प्रातिपदिक से देखें - विंशतित्रिंशद्भ्याम् V. 1. 24
भाव और कर्म अर्थों में) त्व-प्रत्यय होता है। त्रीणि -I. iv. 100
...त्वच.. -III. 1.25 (तिङ् प्रत्ययों के तीन) तीन (का समूह क्रम से प्रथम,
देखें- सत्यापपाशo III. 1. 25 मध्यम और उत्तम संज्ञक होता है)।
त्वतलौ-v.i. 118 ....टि... - III. 1.70
(षष्ठीसमर्थ प्रातिपदिक से 'भाव' अर्थ में) त्व और तल देखें-प्राशलाश III. 1.70
प्रत्यय होते हैं।