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अजि
अजि... - VII. III. 60
देखें - अजिव्रज्यो: VII. iti 60
.... अजिनम् - VI. 1. 194
देखें व्यजजिन VI. II. 194
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...afrt:- VI. ii. 165
देखें - मित्राजिनयोः VI. ii. 165 अजिनान्तस्य
V. iii. 82
अजिन शब्द अन्त में है जिसके, ऐसे (मनुष्यनामधेय प्रातिपदिक से अनुकम्पा गम्यमान होने पर कन् प्रत्यय होता है और उस अजिनान्त शब्द के (उत्तरपद का लोप भी हो जाता है।
अजिव्रज्यो: - VII. 1. 60
अज तथा व्रज धातुओं के (जकार को भी कवर्गादिश नहीं होता) ।
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अजे: - II. Iv. 56
अजू धातु के स्थान में (वी आदेश होता है, घञ् और अप् वर्जित अर्थधातुक परे रहते)।
अज्ञानगमाम् - VI. Iv. 16
अजन्त अङ्ग तथा हन् एवं गम् अङ्ग को (झलादि सन् परे रहने पर दीर्घ होता है) ।
अज्झनग्रहदृशाम् - VI. iv. 62
(भाव तथा कर्म-विषयक स्य, सिच्, सीयुट् और वास् के परे रहते उपदेश में) अजन्त धातुओं तथा हन्, ग्रह एवं दृश् धातुओं को (चिण् के समान विकल्प से कार्य होता है तथा इट् आगम भी होता है) ।
अज्झलौ – I. 1. 10
(स्थान और प्रयत्न तुल्य होने पर भी ) अच् और हल् (की परस्पर सवर्ण संज्ञा नहीं होती)।
अज्ञाति... 1.1.34
देखें - अज्ञातिधनाख्यायाम् I. 1. 34 अज्ञातिधनाख्यायाम् - I. 1. 34
( स्व शब्द की जस् सम्बन्धी कार्य में विकल्प से सर्वनाम संज्ञा होती है), ज्ञाति = स्वजन तथा धन के कथन को छोड़कर । अज्ञाते
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V. iii. 73
'न जाना हुआ' अर्थ में (वर्तमान प्रातिपदिक से तथा तिङन्त से स्वार्थ में यथाविहित प्रत्यय होते हैं)।
12
अज्वरे:
-II. ill. 54
(धात्वर्थ को कहने वाले भजादि प्रत्ययान्तकर्तृक रुदादि
धातुओं के कर्म में शेष विवक्षित होने पर षष्ठी विभक्ति
होती है), ज्वर धातु को छोड़कर ।
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अजू....
I. ii. 1
देखें- अणित् 1..1
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... अञ्... - IV. 1. 15
देखें टिड्डाणज् IV. 1. 15 319-IV. i. 86
( उत्सादि समर्थ प्रातिपदिकों से प्राग्दीव्यतीय अर्थों में) अन् प्रत्यय होता है।
अञ्... देखें
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अञ् - IV. 1. 104
(षष्ठीसमर्थ बिदादि प्रातिपदिकों से गोत्रापत्य में) अञ् प्रत्यय होता है, (परन्तु इनमें जो अनृषिवाची हैं, उनसे अनन्तरापत्य में अन् होता है) ।
अजू... - IV. 1. 141
देखें अत्र IV. 1. 141
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- IV. i. 161
अयतौ IV. 1. 161
अज्
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अञ् - IV. 1. 166
(जनपद को कहने वाले क्षत्रियाभिधायक प्रातिपदिक से अपत्य अर्थ में ) अञ् प्रत्यय होता है । अञ् – IV. ii. 11
(तृतीयासमर्थ द्वैप तथा वैयाघ्र प्रातिपदिकों से 'ढका हुआ रथ', इस अर्थ में) अन् प्रत्यय होता है। अञ् – IV. ii. 43
(षष्ठीसमर्थ अनुदात्त आदि वाले शब्दों से समूहार्थ में) अञ् प्रत्यय होता है।
3-IV. ii. 70
(प्रथमा, तृतीया तथा षष्ठीसमर्थ उवर्णान्त प्रातिपदिकों, से चारों - उस नाम का देश, उससे बोला गया, उसका निवास तथा उससे निकट अर्थों में) अन् प्रत्यय होता है।
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अञ्... - IV. ii. 105
देखें - अ IV. ii. 105
अञ् - IV. it. 107
(दिशा पूर्वपद वाले प्रातिपदिक से शैषिक ) अञ् प्रत्यय होता है।