________________
अजप
अजाविध्याम्
... अजन्तस्य VI. iii.66
अजातौ -VI. iv. 171 देखें- अरुर्दिषदजन्तस्य VI. iii.66
(ब्राह्म शब्द में टिलोप निपातन किया जाता है. अजप ...-I. ii. 34
अपत्यार्थक) जाति को छोड़कर। देखें- अजपन्यू सामसु I. ii. 34
अजात्या -II. 1.67 ...अजपद...- V. iv. 120
(कृत्यप्रत्ययान्त सुबन्त तथा तुल्य के पर्यायवाची सुबन्त) देखें-सुप्रातसुश्व० V. iv. 120
अजातिवाची (समानाधिकरण समर्थ सुबन्त) शब्द के साथ अजपन्यूडसामसु-I. 1. 34
(विकल्प से समास को प्राप्त होते है, और वह तत्पुरुष जप,न्यूड = आश्वलायनश्रौतसूत्रपठित निगदविशेष समास होता है)। तथा सामवेद को छोड़कर (यज्ञकर्म में उदात्त,अनुदात्त तथा ...अजादात् - IV.i. 171 स्वरित स्वरों को एकति स्वर होता है)।
देखें-वृद्धत्कोसलाजादात् IV.i. 171 अजर्यम् -III.i. 105
अजादि - II. ii. 33 अजयम शब्द (न पूर्वक जप धातु से कर्तवाच्य में यत् (द्वन्द्वसमास में) अजादि (तथा अदन्त शब्दरूप का पूर्वप्रत्ययान्त निपातन है,संगत अर्थ अभिधेय होने पर)। प्रयोग होता है)। अजर्यम् = संगति या मैत्री।
अजादि...- IV.i.4 ...अजस...- III. ii. 167
देखें-अजाधत: IV.i.4 देखें - नमिकम्पि० III. ii. 167 अजसौ -IV.i. 31
अजादी-. iii. 58 (रात्रि शब्द से भी स्त्रीलिङ्ग विवक्षित होने पर संज्ञा तथा ।
(इस प्रकरण में कहे गये) अजादि प्रत्यय अर्थात् इष्ठन्,
ईयसुन् (गुणवाची प्रातिपदिक से ही होते है)। छन्द विषय में ) जस विषय से अन्यत्र (ङीप प्रत्यय होता।
...अजादी -VI.i. 167
देखें-नवजादी VI. 1. 167 .....अजस्तुन्दे - VI. I. 150
.अजादीनाम् - VI. iv.72 देखें - कास्तीराजस्तुन्दे VI. 1. 150
__ अच् आदि वाले अङ्गों को (लुङ,लङ् तथा लङ् के परे ...अजा...- VII. iii. 47
रहते आट का आगम होता है और वह आट् उदात्त भी .. देखें - भवैषा० VII. iii. 47
होता है)। .... अजात्... - IV. ii. 38
अजादेः -VI.i.2 देखें-गोत्रोक्षोष्ट्रो० IV. ii. 38
· अच् आदि में है जिसके, ऐसे शब्द के (द्वितीय एकाच अंजाते: - I. ii. 52
समुदाय को द्वित्व हो जाता है)। .. जातिप्रयोग से पूर्व ही (प्रत्ययलुप् होने पर लुबर्थविशेषण भी प्रकृत्यर्थवत् होते है)।
...अजादौ -v. iii. 83 अजातौ -III. ii. 78
देखें - ठाजादौ v. iii. 83 ___ अजातिवाची (सुबन्त) उपपद रहते (ताच्छील्य = अजाधत:-IV. 1.4 तत्स्वभावता गम्यमान होने पर सब धातुओं से 'णिनि' अजादिगणपठित प्रातिपदिकों से तथा अदन्त प्रातिपप्रत्यय होता है)।
दिकों से (स्त्रीलिङ् में टाप् प्रत्यय होता है)। अजाती-III. ii.98
अजाघदन्तम् -II. ii. 33 अजातिवाची (पञ्चम्यन्त) उपपद रहते (जन' धातु से अजादि और ह्रस्व अकारान्त शब्दरूप (द्वन्द्व समास में 'ड' प्रत्यय होता है, भूतकाल में)।
पूर्व प्रयुक्त होते हैं)। अजाती-V. iv.37
अजाविभ्याम् - V.i.8 जाति में वर्तमान न हो तो (ओषधि प्रातिपदिक से स्वार्थ (चतुर्थीसमर्थ) अज एवं अवि प्रातिपदिकों से (हित अर्थ में अण् प्रत्यय होता है)।
में थ्यन् प्रत्यय होता है)।