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बक्... - IV. 1. 94
-IV. iii. 56 देखें-ढक्छण्ढज्यकः IV. iii. 94
(सप्तमीसमर्थ दृति, कुक्षि, कलशि. वस्ति, अस्ति तथा -.i. 126
अहि शब्दों से 'भव' अर्थ में) ढब् प्रत्यय होता है। (षष्ठीसमर्थ कपि तथा ज्ञाति प्रातिपदिकों से भाव तथा ...... -IV. iil.94 कर्म अर्थ में) ढक् प्रत्यय होता है।
देखें-ढक्छण्डव्यक: IV. iii. 94 डक् - V. 1.2
ढ -IV. iii. 156 (षष्ठीसमर्थ धान्यविशेषवाची व्रीहि तथा शालि प्राति- (षष्ठीसमर्थ एणी प्रातिपदिक से विकार और अवयव पदिकों से 'उत्पत्तिस्थान' अभिधेय हो तो) ढक प्रत्यय अर्थों में) ढब् प्रत्यय होता है। होता है, (यदि वह उत्पत्तिस्थान खेत हो तो)। एणी= काली हरिणी डक -IV. 1.94
डब् - IV. iv. 104 (कठ्यादि प्रातिपदिकों से शैषिक अर्थों में) ढकब प्रत्यय (सप्तमीसमर्थ पथिन, अतिथि, वसति,स्वपति प्रातिपहोता है।
दिकों से साधु अर्थ में) ढञ् प्रत्यय होता है। " ...डको -N.. 140
हा-V.i. 13 देखें - यही V.I. 140
(चतुर्थीसमर्थ विकृतिवाची छदिस्, उपधि और बलि डकि-V.1.133
प्रातिपदिकों से उसकी विकृति के लिए प्रकृति' अभिधेय .. (अपत्यार्थ में आये हुए ढक् प्रत्यय के परे रहते (पितृ- होने पर 'हित' अर्थ में) ढञ् प्रत्यय होता है। ष्वस शब्द का लोप हो जाता है)।
-V.1.17 ...डको - IV. iv.in
(प्रथमासमर्थ परिखा प्रातिपदिक से षष्ठ्यर्थ एवं सप्तदेखें- याकौ IV. iv.77
म्यर्थ में) ढब प्रत्यय होता है,(यदि वह प्रथमासमर्थ प्राति
पदिक स्यात् = 'सम्भव हो'"क्रिया के साथ डक्छण्डव्यक:-VH1.94
समानाधिकरण वाला हो तो।
.. (तूदी, शलातुर, वर्मती, कूचवार प्रातिपदिकों से यथासङ्ख्य करके) ढक्छ ण. ढब तथा यक प्रत्यय होते हैं. -V.III. 101 (इसका देश' विषय में)।
(वस्ति प्रातिपदिक से 'इव' का अर्थ घोतित हो रहा हो ह -V.I. 135
.... तो) ढब् प्रत्यय होता है। (चतुष्पाद के वाचक प्रातिपदिकों से अपत्य अर्थ में) ...डबा-.. 10 ढब् प्रत्यय होता है।
देखें - णढोv.i. 10 ब - IV.ii. 19
दिनुक्-IV. iii. 109
(तृतीयासमर्थ छगलिन् प्रातिपदिक से वेदविषय में (सप्तमीसमर्थ क्षीर प्रातिपदिक से 'संस्कृतं भक्षाः' अर्थ
'प्रोक्त' अर्थ में) ढिनुक प्रत्यय होता है। में) ढञ् प्रत्यय होता है।
हे - VI. iv. 147 .... ... - IV. 1.79
(कद्र को छोड़कर जो उवर्णान्त भसज्जक अङ्ग,उसका) देखें-दुच्छण्कठ० V.ii. 79
ढ तद्धित प्रत्यय परे रहते (लोप होता है)। ब - IV. iii. 42
d.-VII. iii. 28
(प्रवाहण अङ्ग के उत्तरपद के अचों में आदि अच को (सप्तमीसमर्थ कोश प्रातिपदिक से सम्भूत अर्थ म) नित्य वृद्धि होती है,पूर्वपद को तो विकल्प से होती है);ढ ढब् प्रत्यय होता है।
तद्धित प्रत्यय परे रहते।