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d-VIII. III. 13
ढकार परे रहते (ढकार का लोप होता है. संहिता में)। ....डो:-VIII. II. 41
देखें-पडो : VIII. II. 41
ह -IV.i. 129
(गाषा शब्द स अपत्य ढलोपे-VI. iii. 110
ढकार एवं रेफ का लोप हुआ है जिसके कारण,उसके परे रहते (पूर्व के अण् को दीर्घ होता है)।
ण् - प्रत्याहारसूत्र ।
ण:-IV. 1.56 आचार्य पाणिनि द्वारा अपने प्रथम प्रत्याहार सूत्र में (प्रथमासमर्थ प्रहरण समानाधिकरण वाले प्रातिपदिकों इत्सज्जार्थ पठित वर्ण।
से सप्तम्यर्थ में) ण प्रत्यय होता है,(यदि अस्यां' से क्रीडा ण - प्रत्याहारसूत्र VI
निर्दिष्ट हो)। आचार्य पाणिनि द्वारा अपने छठे प्रत्याहारसत्र में उत्स- - .v.62 ज्ञार्थ पठित वर्ण।
(शील समानाधिकरणवाची प्रथमासमर्थ छत्रादि प्राति- ण-प्रत्याहारसूत्र VII
पदिकों से षष्ठ्यर्थ में) ण प्रत्यय होता है। भगवान् पाणिनि द्वारा अपने सप्तम प्रत्याहारसूत्र में
ण-V. iv.85 पठित चतुर्थ वर्ण।
(द्वितीयासमर्थ अन्न प्रातिपदिक से प्राप्त करने वाला'
कहना हो तो) ण प्रत्यय होता है। . पाणिनि द्वारा अष्टाध्यायी में पठित वर्णमाला का अठा-रहवां वर्ण। .
ण:-IV. iv. 100
(सप्तमीसमर्थ भक्त प्रातिपदिक से साधु अर्थ में) ण ण-III. iii. 60
प्रत्यय होता है। (नि पूर्वक अद् धातु से कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव ण: - V.1.75 में) ण प्रत्यय (भी होता है, अप भी)।
द्वितीयासमर्थ पथिन प्रातिपदिक से 'नित्य ही जाता है' ण-IV.I. 147
अर्थ में) ण प्रत्यय होता है (तथा उस प्रत्यय के सन्नियोग (गोत्र में वर्तमान जो खी,तद्वाची प्रातिपदिक से कुत्सन
से पथिन् को पन्थ आदेश भी होता है)। गम्यमान होने पर अपत्य अर्थ में) ण प्रत्यय होता है (और
ण:-v.ii. 101 ठक् भी)।
(प्रज्ञा, श्रद्धा तथा अर्चा प्रातिपदिकों से 'मत्वर्थ' में
विकल्प करके) ण प्रत्यय होता है। ण... - V.I. 150
ण:-VI.i.63 देखें - णफिौ IV.i. 150
(धातु के आदि के) णकार के स्थान में (उपदेश में नकार ण... -V.i. 10
आदेश होता है)। देखें-णढो V. 1. 10
ण: -VIII. iv.1 ण... - V.i.97
रेफ तथा षकार से उत्तर नकार को) णकारादेश होता है, देखें - णयतौ V. 1. 97
(एक ही पद में)। ण:-III. I. 140 .
ण: - VIII. iv. 12
(एक अच् है उत्तरपद में जिस समास के,वहाँ पूर्वपद में (ज्वल से लेकर कस् पर्यन्त धातुओं से विकल्प से) ण · स्थित निमित्त से उत्तर प्रातिपदिकान्त, नुम् तथा विभक्ति प्रत्यय होता है।
के नकार को) णकार आदेश होता है।