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छन्दसि-III. 1. 27
छन्दसि-IV.1.59 वेदविषय में (वन,षण,रक्ष,मथ धातुओं से कर्म उपपद वेदविषय में (दीर्घजिह्वी शब्द भी ङीष्-प्रत्ययान्त निपारहते इन प्रत्यय होता है)।
तन किया जाता है)। छन्दसि-III. 1. 63 वेद विषय में (सह' धातु से सुबन्त उपपद रहते ‘ण्वि'
छन्दसि - IV.1.71
(कट्ठ और कमण्डलु शब्दों से) वेदविषय में (स्त्रीलिङ्ग प्रत्यय होता है)। छन्दसि -III. 1.73
में ऊङ् प्रत्यय होता है)। वेदविषय में (उप उपपद रहते 'यज्' धातु से 'णिच् छन्दसि - IV. III. 19 प्रत्यय होता है)।
(वर्षा प्रातिपदिक से) वेदविषय में (ठञ् प्रत्यय होता है)। छन्दसि-III. 1.88
छन्दसि -IV. iii. 106 __ वेदविषय में (कर्म उपपद रहते भूतकाल में हन् धातु (तृतीयासमर्थ शौनकादि प्रातिपदिकों से प्रोक्त विषय से बहुल करके क्विप् प्रत्यय होता है)।
-में) छन्द अभिधेय होने पर णिनि प्रत्यय होता है)। छन्दसि -III. ii. 105
छन्दसि - IV. iii. 147 वेद-विषय में (धातुमात्र से सामान्य भूतकाल में लिट् (षष्ठीसमर्थ दो अच् वाले प्रातिपदिक से) वेदविषय में प्रत्यय होता है)।
(विकार अवयव अर्थ अभिधेय होने पर मयट् प्रत्यय होता छन्दसि -III. . 137 (ण्यन्त धातुओं से) वेदविषय में (तच्छीलादि कर्ता हो, छन्दसि - IV. iv. 106 तो वर्तमानकाल में इष्णुच् प्रत्यय होता है)।
(सप्तमीसमर्थ सभा शब्द से साधु अर्थ में) वैदिक प्रयोग छन्दसि -III. ii. 170
विषय में (ढ प्रत्यय होता है)। '. (क्य प्रत्ययान्त धातुओं से तच्छीलादि कर्ता हों तो वर्त्त- छन्दसि - IV. iv. 110 मानकाल में) वेदविषय में (उ प्रत्यय होता है)।
(सप्तमीसमर्थ प्रातिपदिक से भव अर्थ में) वेद-विषय छन्दसि -III. iii. 129
में (यत् प्रत्यय होता है)। वेदविषय में (गत्यर्थक धातुओं से कृच्छ्, अकृच्छु अर्थों छन्दसि - V.i. 60 में ईषद्, दुर, सु उपपद हों तो युच् प्रत्यय होता है)। (परिमाण समानाधिकरण वाले प्रथमासमर्थ सप्त प्रातिछन्दसि -III. iv.6
पदिक से षष्ठ्यर्थ में अञ् प्रत्यय होता है) वेद विषय में, वेदविषय में (धात्वर्थ- सम्बन्ध होने पर विकल्प से लुङ्
(वर्ग अभिधेय होने पर)। लङ्,लिट् प्रत्यय होते हैं)।
छन्दसि -V.i. 66 छन्दसि - III. iv. 88
(द्वितीयासमर्थ प्रातिपदिक मात्र से) वेदविषय में (भी (पूर्वसूत्र से जो लोट् को हि विधान किया है, उसको)
'समर्थ है' अर्थ में यत् प्रत्यय होता है)। वेदविषय में (विकल्प से अपित् होता है)।
छन्दसि -V..90 . छन्दसि - III. iv. 117
(द्वितीयासमर्थ वत्सरशब्दान्त प्रातिपदिकों से 'सत्कारपूवेदविषय में (दोनों सार्वधातुक,आर्धधातुक संज्ञायें हो
र्वक व्यापार','खरीदा हुआ','हो चुका' तथा 'होने वाला' अर्थों में छ प्रत्यय होता है).वेदविषय में।
छन्दसि -.i. 105 छन्दसि-IV.i. 46
वेदविषय में (प्रथमासमर्थ ऋतु प्रातिपदिक से षष्ठ्यर्थ (बबादि अनुपसर्जन प्रातिपदिकों से) वेद-विषय में
में घस् प्रत्यय होता है, यदि वह प्रथमासमर्थ ऋतु प्राति
में प्रत्यय होता है यदि व (नित्य ही स्त्रीलिङ्ग में ङीष् प्रत्यय होता है)।
पदिक प्राप्त समानाधिकरण वाला हो तो।