________________
छन्दसि
256
छन्दसि - V. 1. 116 (धातु के अर्थ में वर्त्तमान उपसर्ग से स्वार्थ में वि प्रत्यय होता है), वेद-विषय में ।
छन्दसि - V. li. 50
(सङ्ख्या आदि में न हो जिसके, ऐसे षष्ठीसमर्थ सङ्ख्यावाची नकारान्त प्रातिपदिक से 'पूरण' अर्थ में विहित डट् प्रत्यय को थट् तथा मट् आगम होता है) वेदविषय में ।
छन्दसि -V. ii. 89
वेद-विषय में (परिपन्थिन् और परिपरिन् शब्दों का निपातन किया जाता है, 'पर्यवस्थाता' मार्ग का अवरोधक वाच्य हो तो)।
छन्दसि - Vit. 122
(प्रातिपदिकों से वैदिक प्रयोग-विषय में (बहुल करके 'मत्वर्थ' में विनि प्रत्यय होता है)।
छन्दसि
-V. iii. 13
वेदविषय में (सप्तम्यन्त किम् शब्द से विकल्प से ह प्रत्यय भी होता है)
|
छन्दसि
-V. iii. 20
( उन सप्तम्यन्त इदम् तथा तत् प्रातिपदिकों से) वेदविषय में (यथासङ्ख्य करके दा और हिल् प्रत्यय होते हैं, तथा यथाप्राप्त दानीम् प्रत्यय भी होता है)। छन्दसि - V. iii. 26
1
(हेतु' तथा 'प्रकारवचन' अर्थ में वर्तमान किम् प्राति-पदिक से था प्रत्यय होता है), वेदविषय में।
छन्दसि -V. iii. 59
वेदविषय में (तृन्, तृच् अन्तवाले प्रातिपदिकों से अजादि अर्थात् इष्ठन्, ईयसुन् प्रत्यय होते है ।
e
छन्दसि - V. lil. 111
(प्रन, पूर्व, विश्व, इम इन प्रातिपदिकों से इवार्थ में थाल् प्रत्यय होता है), वेद विषय में ।
छन्दसि - Viv. 12
(किम्, एकारान्त, तिङन्त तथा अव्ययों से विहित जो तर, तमप् प्रत्यय; तदन्त से) वेदविषय में (अमु तथा आमु प्रत्यय होते हैं, द्रव्य का प्रकर्ष न कहना हो तो)।
छन्दसि
छन्दसि - Viv. 41
(प्रशंसाविशिष्ट' अर्थ में वर्तमान वृक तथा ज्येष्ठ प्रातिपदिकों से यथासङ्ख्य करके तिल् तथा तातिल् प्रत्यय भी होते हैं); वेदविषय में । छन्दसि - V. iv. 103
(नपुंसकलिङ्ग में वर्त्तमान अनन्त तथा असन्त तत्पुरुष से समासान्त टच् प्रत्यय होता है), वेदविषय में । छन्दसि
I-V. iv. 123
वेदविषय में (बहुप्रजास् शब्द सिच्- प्रत्ययान्त निपातन किया जाता है, बहुव्रीहि समास में) ।
छन्दसि - Viv. 142
वेदविषय में (भी दन्त शब्द को समासान्तं दतृ आदेश होता है, बहुव्रीहि समास में) । छन्दसि - Viv. 158
(बहुव्रीहि समास में ऋवर्णीन्त शब्दों से) वेदविषय में (समासान्त कप् प्रत्यय नहीं होता है) ।
छन्दसि - VI. 1. 33
वेदविषय में (ह्वेञ् धातु को बहुल करके सम्प्रसारण हो जाता है)।
छन्दसि - VI. 1. 51
(खिद् दैन्ये' धातु के एच् के स्थान में) वेदविषय में ( विकल्प से आत्त्व हो जाता है) ।
छन्दसि - VI. 1. 59
वेदविषय में (शीर्षन् शब्द का निपातन किया जाता है)। छन्दसि
- V. i. 68
(शि का बहुल करके लोप हो जाता है), वेदविषय में । छन्दसि - VI. 1. 80
(भय्य तथा प्रवय्य शब्द भी निपातन किये जाते है) वेदविषय में ।
छन्दसि - VI. i. 102
(दीर्घ से उत्तर जस् तथा इच् परे रहते) वेदविषय में (पूर्व पर के स्थान में पूर्वसवर्ण दीर्घ एकादेश विकल्प से होता है)।
छन्दसि - VI. 1. 122
(आङ् को अच् परे रहते संहिता के विषय में) और वेद - विषय में (बहुल करके अनुनासिक आदेश होता है, तथा उस अनुनासिक को प्रकृतिभाव भी हो जाता है)।