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छण्
छण् - IV. 1. 132
(पितृष्वसृ शब्द से अपत्य अर्थ में) छण् प्रत्यय होता है ।
... छण्... - IV. ii. 79
देखें - वुञ्छण्कठo IV. ii. 79
... छण्... - IV. iii. 94
देखें - ढक्छण्ढज्यक: IV. iii. 94
छण् - IV. iii. 102
(तित्तिरि, वरतन्तु, खण्डिका, उख प्रातिपदिकों से छन्दोविषयक प्रोक्त अर्थ में) छण् प्रत्यय होता है । छत्रादिभ्यः - IV. iv. 62
(शील समानाधिकरणवाची प्रथमासमर्थ) छत्रादि प्रातिपदिकों से (षष्ठ्यर्थ में ण प्रत्यय होता है) ।
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छदिः ... - V. 1. 13
देखें - छदिरुपधिबले: V. 1. 13
छदिरुपधिवले: V. 1. 13
(चतुर्थीसमर्थ विकृतिवाची) छदिस्, उपधि और बलि प्रातिपदिकों से ('उसकी विकृति के लिए प्रकृति' अभिधेय होने पर 'हित' अर्थ में ढञ् प्रत्यय होता है)।
छन्द:... - IV. 1. 65
देखें - छन्दो ब्राह्मणानि IV. ii. 65
छन्दः - V. ii. 84
'वेद को (पढ़ता है' अर्थ में श्रोत्रियन् शब्द का निपातन किया जाता है) ।
छन्दसि - I. ii. 36
वेद-विषय में (तीनों स्वरों को विकल्प से एकश्रुति हो जाती है।
छन्दसि - I. ii 61
वेदविषय में (पुनर्वसु नक्षत्र के द्वित्व अर्थ में विकल्प से एकत्व होता है।
छन्दसि - I. iv. 9
वेदविषय में (षष्ठ्यन्त से युक्त पति शब्द विकल्प से घिसंज्ञक होता है) ।
छन्दसि - I. iv. 20
वेदविषय में (अयस्मय आदि शब्द साधु समझे जायें)। छन्दसि - I. iv. 80 वेदविषय में (गति-उपसर्गसंज्ञक शब्द धातु से पर तथा पूर्व में भी आते हैं) ।
छन्दसि
छन्दसि – II. iii. 3
वेद-विषय में (हु धातु के अनभिहित कर्म में तृतीया
और द्वितीया विभक्ति होती है) ।
छन्दसि
- II. iii. 62
वेद में (चतुर्थी के अर्थ में षष्ठी विभक्ति बहुल करके होती है)।
छन्दसि - II. iv. 28
वेद में (हेमन्तशिशिर और अहोरात्र पूर्वपद के समान लिङ्गवाले होते है)।
छन्दसि - II. iv. 39
वेद में (बहुल करके अद् को घस्लृ आदेश होता है, घञ् और अच् प्रत्यय के परे रहते) ।
छन्दसि
-II. iv. 73
वेद में (शप् का लुक् बहुल करके होता है)।
छन्दसि
- II. iv. 76
(जुहोत्यादि धातुओं से परे) वेद में (शप् के स्थान में बहुल करके श्लु होता है) । -
छन्दसि - III. 1. 42
(अभ्युत्सादयामकः, प्रजनयामकः, चिकयामकः, रमयामकः, पावयांक्रियात् तथा विदामक्रन् पद) वेदविषय में (विकल्प से निपातित होते हैं) 1
छन्दसि
-III. 1. 50
वेद-विषय में गुप् धातु से परे चिल के स्थान में विकल्प से चङ् आदेश होता है, कर्तृवाची लुङ् परे रहने पर)। छन्दसि - III. i. 59
वेद-विषय में (कर्तृवाची लुङ् परे रहने पर कृ, मृ, दृ तथा रुह धातुओं से उत्तर चिल के स्थान में अड़ आदेश होता है) । छन्दसि - III. 1. 84
वेदविषय में (श्ना के स्थान में शायच् आदेश होता है, तथा शानच् भी होता है) ।
छन्दसि - III. 1. 123
वेदविषय में (निष्टर्क्स, देवहूय, प्रणीय, उन्नीय, उच्छिष्य, मर्य, स्त, ध्वर्य, खन्य, खान्य, देवयज्या, आपृच्छ्य, प्रतिइन षीव्य, ब्रह्मवाद्य, भाव्य, स्ताव्य, उपचाय्यपृड शब्दों का निपातन किया जाता है) ।
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