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छगलिनः
छ -V.i. 110
छ: - IV. iii. 91 (प्रयोजन समानाधिकरणवाची प्रथमासमर्थ अनुप्रवच- (प्रथमासमर्थ पर्वतवाची प्रातिपदिकों से 'वह इनका नादि प्रातिपदिकों से षष्ठ्यर्थ में) छ प्रत्यय होता है। अभिजन' अर्थ में) छ प्रत्यय होता है.(आयुधजीवियों को छ -V.i. 134
कहने के लिये)। (षष्ठीसमर्थ ऋत्विग विशेषवाची प्रातिपदिकों से भाव छ: - IV. iii. 130 और कर्म अर्थों में) छ प्रत्यय होता है।
(षष्ठीसमर्थ रैवतिकादि प्रातिपदिकों से 'इदम्' अर्थ में) छ -v.ii. 17 .
___ छ प्रत्यय होता है। (द्वितीयासमर्थ अभ्यमित्र प्रातिपदिक से 'पर्याप्त जाता छः - V.i.1 है' अर्थ में) छ, (यत् और ख) प्रत्यय (होते हैं)। (तेन क्रीतम्' इस सूत्र से पहले पहले कहे गए अर्थों छ -V.iv.9
में) छ प्रत्यय अधिकृत होता है। (जाति शब्द अन्त वाले प्रातिपदिक से द्रव्य गम्यमान छ: –.i. 90 हो तो स्वार्थ में) छ प्रत्यय होता है।
(द्वितीयासमर्थ वत्सर-शब्दान्त प्रातिपदिकों से 'सत्कार...छ... - VII.i.2
पूर्वक व्यापार', 'खरीदा हुआ', 'हो चुका' तथा 'होने . देखें- फढखछ VII.i.2 .
वाला'- इन अर्थों में) छ प्रत्यय होता है.(वेदविषय में)। ...छ... - VIII. ii. 36
छ. -v.ii. 59 . देखें-वश्वप्रस्ज. VIII. ii. 36
(प्रातिपदिक मात्र से मत्वर्थ में) छ प्रत्यय होता है,(सक्त छः - IV.i. 143
और साम वाच्य हो तो)। — (स्वस प्रातिपदिक से अपत्यार्थ में) छ प्रत्यय होता है।
छ: - V. iii. 105 छः - IV. ii. 6
(कुशाग्र प्रातिपदिक से इवार्थ में) छ प्रत्यय होता है । : ' (तृतीयासमर्थ नक्षत्र के द्वन्द्ववाची शब्दों से युक्त काल'
छ: - V. iii. 116 'अर्थ में) छ प्रत्यय होता है। .
(शस्त्रों से जीविका कमाने वाले पुरुषों के समूहवाची छ - IV. ii. 89
दामन्यादिगणपठित तथा त्रिगर्तषष्ठ प्रातिपदिक से स्वार्थ __ (उत्करादि प्रातिपदिकों से चातुरर्थिक) छ प्रत्यय होता है।
में) छ प्रत्यय होता है। छ. -IVii. 113
छ: - VII. iii. 77 - (वृद्धसंज्ञक प्रातिपदिक से शैषिक) छ प्रत्यय होता है। (इष, गम्लु तथा यम् अङ्गों को शित् प्रत्यय परे रहते) छ.-IV. ii. 136
छकारादेश होता है। (गर्त शब्द उत्तरपदवाले देशवाची प्रातिपदिकों से छ: -VIII. iv.61 शैषिक) छ प्रत्यय होता है।
(झय प्रत्याहार से उत्तर शकार के स्थान में अट परे रहते छ: - IV. iii. 62
विकल्प से) छकार आदेश होता है। (सप्तमीसमर्थ जिह्वामल तथा अङ्गलि प्रातिपदिकों से ...छगलात्... - IV. 1. 117 भव अर्थ में) छ प्रत्यय होता है।
देखें - विकर्णशुग IV.i. 117 छः - IV.ii. 88
छगलिन: - IV. iii. 109 - (शिशुक्रन्द,यमसभ, द्वन्द्ववाची तथा इन्द्रजननादिगणप
(तृतीयासमर्थ) छगलिन प्रातिपदिक से (वेदविषय में ठित शब्दों से 'अधिकृत्य कृते ग्रन्थे' अर्थ में) छ प्रत्यय
प्रोक्त अर्थ को कहने में दिनुक प्रत्यय होता है)। होता है।
छगलिन् = कलापि का शिष्य ।