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च - V. 1. 83
(षण्मास प्रातिपदिक से अवस्था अभिधेय न हो तो ठञ) तथा (ण्यत् प्रत्यय होता है 'हो चुका' अर्थ में)।
च - V. 1.86
द्वितीयासमर्थ रात्रिशब्दान्त, अहः शब्दान्त तथा संवत्सर शब्दान्त द्विगु-सञ्ज्ञक प्रातिपदिकों से) भी (सत्कारपूर्वक व्यापार', 'खरीदा हुआ', 'हो चुका' तथा 'होने वाला' अर्थों में विकल्प से ख प्रत्यय होता है)।
च - V. 1. 87
(द्वितीयासमर्थ वर्ष-शब्दान्त द्विगु-सञ्ज्ञक प्रातिपदिकों से 'सत्कारपूर्वक व्यापार', 'खरीदा गया', 'हो चुका' तथा 'होने वाला' अर्थों में विकल्प करके ख प्रत्यय) तथा (विकल्प से प्रत्यय का लुक् होता है) ।
च - V. 1. 91
(द्वितीयासमर्थ सम् तथा परि पूर्ववाले वत्सरशब्दान्त प्रातिपदिक से 'सत्कारपूर्वक व्यापार', 'खरीदा हुआ', 'हो 'चुका' तथा 'होने वाला' अर्थों में ख प्रत्यय) तथा (छ प्रत्यय होते है ।
च - V. 1. 94
• (षष्ठीसमर्थ यज्ञ की आख्यावाले प्रातिपदिकों से) भी (दक्षिणा' अर्थ में यथाविहित ठञ् प्रत्यय होता है)। च - V. 1. 95
(सप्तमीसमर्थ कालवाची प्रातिपदिकों से दिया जाता है) और (कार्य' अर्थों में भव अर्थ के समान ही प्रत्यय हो जाते हैं)।
च - V. 1. 101
(चतुर्थीसमर्थ योग प्रातिपदिक से 'शप्त है' अर्थ में यत्) तथा (ठञ् प्रत्यय होते हैं)।
च - V. 1. 119
यहाँ से लेकर (ब्रह्मणस्त्व: V. 1. 135 के त्वपर्यन्त त्व, तल् प्रत्यय होते हैं, ऐसा अधिकार जानना चाहिए)। च - V. 1. 122
(षष्ठीसमर्थ वर्णवाची तथा दृढादि प्रातिपदिकों से 'भाव' अर्थ में ष्यञ्) तथा (इमनिच् प्रत्यय होते हैं)।
च - V. 1. 123
(गुण को जिसने कहा, ऐसे तथा ब्राह्मणादि षष्ठीसमर्थ प्रातिपदिकों से कर्म के अभिधेय होने पर) तथा (भाव में ष्यञ् प्रत्यय होता है)।
च - V. 1. 124
(षष्ठीसमर्थ स्तेन प्रातिपदिक से भाव और कर्म अर्थ में यत् प्रत्यय होता है, तथा स्तेन शब्द के न का लोप) भी हो जाता है)।
च - V. 1. 130
(षष्ठीसमर्थ लघु = ह्रस्व अक्षर पूर्व में जिसके, ऐसे इ, उ, ऋ, लृ अन्तवाले प्रातिपदिक से) भी (भाव कर्म अर्थों में प्रत्यय होता है) ।
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इक्
च - V. 1. 132
(षष्ठीसमर्थ द्वन्द्व सञ्ज्ञक तथा मनोज्ञादि प्रातिपदिकों से) भी (भाव और कर्म अर्थों में वुञ् प्रत्यय होता है)।
a V. ii. 17
(द्वितीयासमर्थ अभ्यमित्र प्रातिपदिक से 'पर्याप्त जाता है' अर्थ में छ प्रत्यय) तथा (यत् और ख प्रत्यय होते हैं) ।
च - Vii. 30
(अव उपसर्ग प्रातिपदिक से कुटारच्) तथा (कटच् प्रत्यय होते हैं)।
च - Vii. 33.
(नासिका का झुकाव अभिधेय हो तो नि उपसर्ग प्रातिपदिक से इनच् तथा पिटच् प्रत्यय होते हैं, सञ्ज्ञाविषय में तथा नि शब्द को यथासङ्ख्य करके प्रत्यय के साथ-साथ चिक तथा चि आदेश) भी होते हैं) । च - V. 1. 38
(प्रथमासमर्थ प्रमाण समानाधिकरणवाची पुरुष तथा हस्तिन् प्रातिपदिकों से षष्ठ्यर्थ में अण्) तथा (द्वयसच् दघ्नच् और मात्रच् प्रत्यय होते हैं) ।
- V. ii. 41
(सङ्ख्या के परिणाम अर्थ में वर्तमान किम् शब्द से षष्ठ्यर्थ में डति प्रत्यय) तथा (वतुप् प्रत्यय होते हैं, तथा उस वतुप् के वकार के स्थान में घकार आदेश हो जाता है) । च - Vit. 46
(अधिक समानाधिकरणवाची शत् शब्द अन्त में है जिसके, ऐसे तथा विंशति प्रातिपदिक से) भी (सप्तम्यर्थ में प्रत्यय होता है)।