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च-IV.v. 136
(प्रथमासमर्थ सहन प्रातिपदिक से मत्वर्थ में) भी (ष प्रत्यय होता है,वेद-विषय में) च-IV. iv. 138
(सोम शब्द से मयट के अर्थ में) भी (य प्रत्यय होता है)। च-IV. iv. 140
(वसु प्रातिपदिक से समूह) तथा (मयट् के अर्थ में यत् प्रत्यय होता है)। च-IV. iv. 144
(षष्ठीसमर्थ शिव.शम और अरिष्ट प्रातिपदिकों से करने वाला विषय में भाव अर्थ में) भी (तातिल् प्रत्यय होता है)। च-v.i.3
(कम्बल प्रातिपदिक से) भी (क्रीत' अर्थ से पहले-पहले पठित अर्थों में यत् प्रत्यय होता है, सञ्जा- विषय के होने पर)। च-v.i.7
(चतुर्थीसमर्थ खल, यव, माष, तिल, वृष. ब्रह्मन् प्रातिपदिकों से) भी (हित अर्थ में यत् प्रत्यय होता है)। च-V.1.21
(शत प्रातिपदिक से) भी (अहीय अर्थों में ठन् और यत् प्रत्यय होते हैं, यदि सौ अभिधेय न हों तो)। च- V. 1. 31
(द्वि तथा त्रिशब्द पूर्व वाले बिस्त शब्दान्त द्विगुसज्ञक प्रातिपदिक से) भी (तदर्हति'-पर्यन्त कथित अर्थों में उत्पन्न प्रत्यय का विकल्प से लुक् होता है)। च-V.1.39
(षष्ठीसमर्थ पुत्र शब्द से छ) और (यत् प्रत्यय होते हैं, संयोग अथवा उत्पातरूपी निमित्त अर्थ में)। च-v.i. 42
(सप्तमीसमर्थ सर्वभूमि तथा पृथिवी प्रातिपदिकों से 'प्रसिद्ध'अर्थ में) भी (यथासङ्ख्य करके अण और अबू प्रत्यय होते है)। च-v.i. 48
(प्रथमासमर्थ भाग प्रातिपदिक से सप्तम्यर्थ में यत) तथा (ठन प्रत्यय होते हैं. यदि 'वद्धि' = व्याज के रूप में दिया जाने वाला द्रव्य 'आय' = जमींदारों का भाग.
'लाभ' = मूल द्रव्य के अतिरिक्त प्राप्य द्रव्य, शुल्क' राजा का भाग तथा 'उपदा' = घूस-ये 'दिया जाता है' क्रिया के कर्म वाच्य हों तो)। च-V.iv.51 (सम्पद्यते के कर्ता में वर्तमान अरुस्, मनस्, चक्षुस्, चेतस्,रहस् तथा रजस् शब्दों के अन्त्य का लोप) भी (क. भू तथा अस्ति के योग में होता है, तथा च्चिप्रत्यय भी . होता है)। च-v.i. 53
(द्विगु-सज्ञक द्वितीयासमर्थ आढक, आचित तथा पात्र प्रातिपदिक से 'सम्भव है', 'अवहरण करता है' तथा 'पकाता है' अर्थों में ष्ठन् प्रत्यय) भी (होता है)। च-v.i.54
(द्वितीयासमर्थ द्विगु-सञक कुलिज शब्दान्त प्रातिपदिक से 'सम्भव है', 'अवहरण करता है' तथा 'पकाता है' अर्थों में प्रत्यय का लुक,ख प्रत्यय) तथा (ष्ठन् प्रत्यय होते हैं)। च-v.i.64
द्वितीयासमर्थ शीर्षच्छेद प्रातिपदिक से नित्य ही योग्य है' अर्थ में यत् प्रत्यय) भी (होता है,यथाविहित ठक् भी)। . . .
द्वितायासमर्थ प्रातिपदिक मात्र से वेद-विषय में) भी । (समर्थ है' अर्थ में यत् प्रत्यय होता है)। च-V.1.67 (द्वितीयासमर्थ पात्र प्रातिपदिक से 'समर्थ है' अर्थ में घन) और (यत् प्रत्यय होते है)। च-V.i.68 द्वितीयासमर्थ कडकर और दक्षिणा प्रातिपदिकों से छ) और (यत् प्रत्यय होते हैं, समर्थ है' अर्थ में)। च-v.i.76
(तृतीयासमर्थ उत्तरपथ प्रातिपदिक से लाया हुआ' अर्थ में) तथा (जाता है' अर्थ में यथाविहित ठञ् प्रत्यय हो जाता है)। च-v.i.82
षण्मास प्रातिपदिक से अवस्था अभिधेय हो तो 'हो चुका' अर्थ में ण्यत् और यप् प्रत्यय होते हैं. तथा औत्सर्गिक ठ भी।