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च-1M. ill. 158 (षष्ठीसमर्थ द्रु प्रातिपदिक से) भी विकार और अवयव अथों में यत् प्रत्यय होता है)। .
___ च-IV. iii. 163
(षष्ठीसमर्थ जम्बू प्रातिपदिक से फल अभिधेय होने पर विकारावयव अर्थों में विहित प्रत्यय का विकल्प से लप) 'भी (होता है)। च-IV.ki. 164 (षष्ठीसमर्थ हरीतकी आदि प्रातिपदिकों से विकार अवयव अर्थों में विहित प्रत्यय का फल अभिधेय होने पर) भी (लुप होता है)। च-IV. . 165 (षष्ठीसमर्थ कंसीय, परशव्य प्रातिपदिकों से विकार अर्थ में यथासङ्ख्य करके यज और अब प्रत्यय होते हैं. तथा प्रत्यय के साथ-साथ कंसीय और परशव्य का लुक) भी होता है)। च-IV..iv. 11 (तृतीयासमर्थ श्वगण प्रातिपदिक से ठज्) तथा (ष्ठन् प्रत्यय होते हैं)। च-V. iv. 14
(तृतीयासमर्थ आयुध प्रातिपदिक से छ) तथा (ठन् प्रत्यय होते है)। च-Viv. 17
(सप्तमीसमर्थ अग्र प्रातिपदिक से वेद-विषयक भवार्थ में घ और छ प्रत्यय) भी (होते हैं)। च-IV. iv. 29
(द्वितीयासमर्थ परिमुख प्रातिपदिक से) भी (वर्तते'-अर्थ में ठक् प्रत्यय होता है)। च-IV. iv. 36 (द्वितीयासमर्थ परिपन्थ प्रातिपदिक से बैठता है) तथा (मारता है'अर्थों में ठक् प्रत्यय होता है)। च-IV. iv. 38 (द्वितीयासमर्थ आक्रन्द प्रातिपदिक से 'दौड़ता है'- अर्थ में ठज्) तथा (ठक् प्रत्यय होते हैं)।
च-IV. iv. 40 .. (द्वितीयासमर्थ प्रतिकण्ठ, अर्थ,ललाम प्रातिपदिकों से)
भी (महण करता है- अर्थ में ठक् प्रत्यय होता है)।
च-IV. iv. 42
द्वितीयासमर्थ प्रतिपथ प्रातिपदिक से 'जाता है'-अर्थ में ठन) तथा (ठक् प्रत्यय होते हैं)। च-IV. iv.58 (प्रहरण समानाधिकरणवाची प्रथमासमर्थ परश्वध प्रातिपदिक से षष्ठ्यर्थ में ठञ् प्रत्यय होता है,) चकार से ठक् भी। च-IV.IN.79 (द्वितीयासमर्थ एकधुर प्रातिपदिक से 'ढोता है' अर्थ में ख प्रत्यय) तथा (उसका लोप होता है)। च - IV. iv.94
(तृतीयासमर्थ उरस् प्रातिपदिक से बनाया हुआ' अर्थ में अण) और (यत् प्रत्यय होते है)। च-IV.iv.9 (षष्ठीसमर्थ हृदय शब्द से बन्धन अर्थ में) भी (वेद अभिधेय होने पर यत् प्रत्यय होता है)। च-IV.iv. 108 __ (सप्तमीसमर्थ समानोदर प्रातिपदिक से 'शयन किया हुआ' अर्थ में यत् प्रत्यय होता है) तथा (समानोदर शब्द के ओकार को उदात्त होता है)। च - IV. iv. 125
(उपधान मन्त्र समानाधिकरण प्रथमासमर्थ मतबन्त प्रातिपदिक से षष्ठ्यर्थ में यत् प्रत्यय होता है, यदि षष्ठ्यर्थ में निर्दिष्ट इंटे ही हों) तथा (मतुप का लुक भी हो जाता है, वेद-विषय में)। च-IV. iv. 129 (प्रथमासमर्थ मधु प्रातिपदिक से मत्वर्थ में मास और तनू प्रत्ययार्थ विशेषण हों तो ज) और (यत् प्रत्यय होते हैं)। . च-IV. iv. 132
(वेशस्,यशस् आदि वाले भगान्त प्रातिपदिक से मत्वर्थ में ख प्रत्यय) भी (होता है, वेद-विषय में)। च-v.iv. 133
(तृतीयासमर्थ पूर्व प्रातिपदिक से 'किया हुआ' अर्थ में इन और य प्रत्यय होते हैं, चकार से ख भी होता है।