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च-IV. iii. 44
च-IV. ii. 104 (सप्तमीसमर्थ कालवाची प्रातिपदिकों से 'बोया हुआ' (ततीयासमर्थ कलापी के अन्तेवासी तथा वैशम्पायन अर्थ में) भी (यथाविहित प्रत्यय होता है)।
के अन्तेवासी-वाचक प्रातिपदिकों से) भी (प्रोक्तार्थ में च -IV. ii. 50
णिनि प्रत्यय होता है, छन्दविषय में) . (सप्तमीसमर्थ कालवाची संवत्सर तथा आग्रहायणी च-IV.ili. 113 प्रातिपदिकों से ठन) तथा (वुञ् प्रत्यय होता है)। (तृतीयासमर्थ प्रातिपदिक से 'एकदिक्' विषय में तसि. च-IV. iii. 55
प्रत्यय) भी (होता है)। (सप्तमीसमर्थ शरीर के अवयववाची प्रातिपदिकों से) च-IVii. 114 भी (भव' अर्थ में यत् प्रत्यय होता है)।
(तृतीयासमर्थ उरस् शब्द से 'एकदिक्' अर्थ में यत् च-IN. iii. 57
प्रत्यय) तथा (चकार से तसि प्रत्यय भी होता है)। (सप्तमीसमर्थ ग्रीवा प्रातिपदिक से भव अर्थ में अण) , और (ढ प्रत्यय होता है)।
(षष्ठीसमर्थ पत्र अध्वर्य तथा परिषद प्रातिपदिकों से). च-IV. iii.59
भी (इदम्' अर्थ में अञ् प्रत्यय होता है)। (सप्तमीसमर्थ अव्ययीभाव-संज्ञक प्रातिपदिक से) भी ,
च-IV. 1. 132 . (भव' अर्थ में ज्य प्रत्यय होता है)।
(षष्ठीसमर्थ प्राणिवाचि, ओषधिवाची तथा वृक्षवाची च-IV. iii. 63
प्रातिपदिकों से अवयव) तथा विकार अर्थों में (यथाविहित (सप्तमीसमर्थ वर्ग अन्त वाले प्रातिपदिक से) भी (भव'
प्रत्यय होता है)। अर्थ में छ प्रत्यय होता है)।
च-IV. iii. 134 च-IV. iii.66 ' (षष्ठीसमर्थ व्याख्यान किये जाने योग्य जो प्रातिपदिक (षष्ठीसमर्थ ककार उपधा वाले प्रातिपदिक से) भी
उनसे व्याख्यान अभिधेय होने पर यथाविहित प्रत्यय हो- (विकार और अवयव अर्थों में अण् प्रत्यय होता है)। ता है),तथा (सप्तमीसमर्थ व्याख्यातव्यनामवाची शब्दों से च-IV. 1. 137 'भव' अर्थ में भी यथाविहित प्रत्यय होता है)।
(षष्ठीसमर्थ अनुदात्तादि प्रातिपदिकों से) भी (विकार च-IV. iii.68
और अवयव अर्थों में अञ् प्रत्यय होता है)। (क्रतुवाची और यज्ञवाची व्याख्यातव्यनाम षष्ठी तथा सप्तमीसमर्थ प्रातिपदिकों से) भी (व्याख्यान' और 'भव'
च - IV. iii. 142 अर्थों में ठञ् प्रत्यय होता है)।
(षष्ठीसमर्थ गो प्रातिपदिक से) भी (मल अभिधेय होने च-IV. iii.79
' पर मयट् प्रत्यय होता है)। (पञ्चमीसमर्थ पित प्रातिपदिक से 'आगत' अर्थ में यत् च-IViii. 143 प्रत्यय होता है) तथा (चकार से ठञ् प्रत्यय होता है)।
(षष्ठीसमर्थ पिष्ट प्रातिपदिक से) भी (विकार अर्थ में च-V. iii. 82
मयट् प्रत्यय होता है)। (पञ्चमीसमर्थ हेतु तथा मनुष्यवाची प्रातिपदिकों से 'आगत' अर्थ में मयट् प्रत्यय) भी (होता है)।
च-IV. iii. 152 च -IV. iii. 90
विकार और अवयव अर्थों में विहित जो जित् प्रत्यय, (प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक से 'इसका अभिजन है अर्थ तदन्त षष्ठीसमर्थ प्रातिपदिकों से) भी विकार और अवमें) भी (यथाविहित प्रत्यय होते है)।
यव अर्थों में ही अब प्रत्यय होता है)।