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च-V.1.97
च-IV.i. 144 (सुधातृ शब्द से 'तस्यापत्यम्' अर्थ में इब् प्रत्यय होता (प्रातृ शब्द से अपत्य अर्थ में व्यत्) तथा चकार से छ है, तथा सुधात शब्द को अकङ् आदेश) भी (होता है)। प्रत्यय होता है। च-IV.I. 101
च-V.I. 147 (गोत्र में विहित जो यञ् और इञ् प्रत्यय, तदन्त से) भी ।
(गोत्र में वर्तमान जो स्त्री,तद्वाची प्रातिपदिक से कुत्सन (तस्यापत्यम्' अर्थ में फक् प्रत्यय होता है)।
गम्यमान होने पर अपत्य अर्थ में ण प्रत्यय होता है), और च-V.1. 108
(ठक भी होता है)। (वतण्ड शब्द से) भी (आङ्गिरस गोत्र को कहना हो तो च-IV.I. 149 यञ् प्रत्यय होता है)।
(फिजन्त वृद्ध-संज्ञक सौवीर गोत्रापत्य प्रातिपदिक से च-V.1.114
कुत्सित युवापत्य के कहने में छ) तथा चकार से ठक. (ऋषिवाची तथा अन्धक वृष्णि और कुरु वंश वाले प्रत्यय (बहुल करके होता है)। समर्थ प्रातिपदिकों से) भी (अपत्य अर्थ में अण प्रत्यय
च-IV.i. 152 होता है)।
(सेना अन्त वाले प्रातिपदिकों से, लक्षण शब्द से तथा च-IV.i. 116
शिल्पीवाची प्रातिपदिकों से) भी (अपत्यार्थ में ण्य प्रत्यय (कन्या शब्द से अपत्य अर्थ में अण् प्रत्यय होता है, होता है)। तथा अण् परे रहने पर कन्या शब्द को कनीन आदेश)
च-IV.I. 155 भी (हो जाता है)।
(कौसल्य तथा कार्मार्य शब्दों से) भी (अपत्य अर्थ में च-V.I. 119
फिञ् प्रत्यय होता है)। (मण्डूक प्रातिपदिक से ढक् प्रत्यय होता है तथा विकल्प च - IV.i. 158 से अण) भी (होता है)।
(गोत्रभिन्न वृद्ध-संज्ञक वाकिनादि प्रातिपदिकों से च-V.I. 122
उदीच्य आचार्यों के मत में अपत्यार्थ में फिञ् प्रत्यय) (इकारान्त अनिबन्त व्यचं प्रातिपदिकों से) भी (अपत्य तथा (कुक का आगम होता है)। में ढक् प्रत्यय होता है)।
च -IV.i. 161 च-V.I. 123
(मन शब्द से जाति को कहना हो तो अब तथा यत् (शप्रादि प्रातिपदिकों से) भी (अपत्य अर्थ में ढक प्रत्यय होते हैं, तथा मनु शब्द को षुक् आगम) भी (हो प्रत्यय होता है)।
जाता है)। च-V.I. 125
च-IV. 1. 164 (धू प्रातिपदिक से अपत्य अर्थ में ढक् प्रत्यय होता है,
(बड़े भाई के जीवित रहते पौत्रप्रभृति का जो अपत्य
छोटा भाई,उसकी) भी (युवा संज्ञा हो जाती है)। तथा धू को वुक् का आगम) भी होता है)।
च-IV.i. 167 च-IV. 1. 134
(जनपदवाची क्षत्रियाभिधायी साल्वेय तथा गान्धारि पितृष्वस प्रातिपदिक को जो कुछ कहा है,वह मातृष्वस शब्दों से) भी (अपत्य अर्थ में अञ् प्रत्यय होता है)। शब्द को) भी (होता है)।
च-IV. 1. 174 च-IV.i. 136
(क्षत्रियाभिधायी, जनपदवाची जो अवन्ति, कुन्ति तथा (गष्ट्यादि प्रातिपदिकों से) भी (अपत्य अर्थ में ढब्
कुरु शब्द, उनसे) भी (उत्पन्न जो तद्राज-संज्ञक प्रत्यय, प्रत्यय होता है)।
उनका स्त्रीलिङ्ग अभिधेय हो तो लक हो जाता है)।