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च-II. ii. 12 (पूजा अर्थ में विहित जो क्त प्रत्यय, तदन्त शब्द के साथ) भी (षष्ठ्यन्त सुबन्त समास को प्राप्त नहीं होता)। च-II. ii. 13
(अधिकरणवाची क्तप्रत्ययान्त सुबन्त के साथ) भी (षष्ठ्यन्त सुबन्त समास को प्राप्त नहीं होता)। च-II. ii. 14 (कर्म में जो षष्ठी विहित है,वह) भी (समर्थ सुबन्त के साथ समास को प्राप्त नहीं होती)। . च -II. ii. 16
(कर्ता में जो षष्ठी,वह) भी (अक प्रत्ययान्त सुबन्त के साथ समास को प्राप्त नहीं होती)। च -II. ii. 22
(तृतीयाप्रभृति जो उपपद,वे क्त्वा-प्रत्ययान्त शब्दों के साथ) भी विकल्प से समास को प्राप्त होते हैं, और वह तत्पुरुष समास होता है)। च-II. iii.3 (वेद-विषय में ह धातु के अनभिहित कर्म में ततीया) और (द्वितीया विभक्ति होती है)। च-II. iii.9 (जिससे अधिक हो) और (जिसका सामर्थ्य हो, उसमें कर्मप्रवचनीय के योग में सप्तमी विभक्ति होती है)। च-II. iii. 11 (जिससे प्रतिनिधित्व और जिससे प्रतिदान हो, उससे) भी (कर्म-प्रवचनीय के योग में पञ्चमी विभक्ति होती है)। च-II. iii. 14
(क्रिया के लिये क्रिया उपपद हो जिसकी,ऐसी अप्रयुज्यमान धातु के अनभिहित कर्म कारक में) भी (चतुर्थी विभक्ति होती है)। च - II. iii. 15
(तुमन के समानार्थक भाववचन-प्रत्ययान्त से) भी (चतुर्थी विभक्ति होती है)। च - II. iii. 16 (नमः,स्वस्ति,स्वाहा,स्वधा,अलम,वषट्-इन शब्दों के योग में) भी (चतुर्थी विभक्ति होती है)।
च-II. iii. 27 हित शब्द के प्रयोग में तथा हेतु के विशेषणवाची सर्वनामसंज्ञक शब्द के प्रयोग में हेतु द्योतित होने पर तृतीया)
और (षष्ठी विभक्ति होती है)। . . च-II. 11. 33
(स्तोक, अल्प,कृच्छु कतिपय-इन असत्ववाची शब्दों से करण कारक में तृतीया) और पञ्चमी विभक्ति होती है)। च-II. iii. 35
(दूरार्थक तथा अन्तिकार्थक शब्दों से द्वितीया विभक्ति होती है) और चकार से (षष्ठी व पञ्चमी भी)। च -II. iii. 36 . (अनभिहित अधिकरण कारक में) तथा (दूरान्तिकार्थक शब्दों से (भी) सप्तमी विभक्ति हो च-II. iii. 37
(जिसकी क्रिया से क्रियान्तर लक्षित होवे, उसमें) भी (सप्तमी विभक्ति होती है)। च-II. iii. 38
(जिसकी क्रिया से क्रियान्तर लक्षित हो.उसमें अनादर गम्यमान होने पर षष्ठी) तथा (सप्तमी विभक्ति होती है)। च -II. iii. 39 (स्वामी, ईश्वर, अधिपति, दायाद, साक्षी,प्रतिभू, प्रसूत -इन शब्दों के योग में) भी (षष्ठी और सप्तमी विभक्ति होती है)। च-II. iii. 40
(आयुक्त और कुशल शब्दों के योग में) भी (आसेवा गम्यमान हो तो षष्ठी और सप्तमी विभक्ति होती है)।
आसेवा = तत्परता। च-II. iii. 41
(जिससे निर्धारण हो उसमें) भी (षष्ठी और सप्तमी विभक्ति होती है)। च-II. iii. 44
(प्रसित और उत्सुक शब्दों के योग में तृतीया) और (सप्तमी विभक्ति होती है)। प्रसित = संलग्न, फंसा।