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- I. ii. 44
(समास विधीयमान होने पर नियत विभक्ति वाला पद) भी (उपसर्जनसंज्ञक होता है, पूर्वनिपात उपसर्जन कार्य को छोड़कर) ।
च - I. 1. 46
(कृत्प्रत्ययान्त, तद्धितप्रत्ययान्त और समास) भी (प्रातिपदिक संज्ञक होते हैं)।
च - I. 1. 52
(प्रत्यय के लुप् • होने पर उस लुबर्थ के जो विशेषण, उनमें भी (लिङ्ग और संख्या प्रकृत्यर्थ के समान हो जाते हैं, जाति के प्रयोग से पूर्व ही) ।
I. ii. 55
(सम्बन्ध को वाचक मानकर यदि संज्ञा हो तो) भी (उस सम्बन्ध के जाने पर इस संज्ञा का अदर्शन होता है, पर वह होता नहीं है)।
च - I. 1. 56
(काल तथा उपसर्जन = गौण) भी (अशिष्य होते हैं, तुल्य हेतु होने से अर्थात् पूर्वसूत्रोक्त लोकाधीनत्व हेतु होने से) ।
च - I. 11.59
(अस्मदर्थ के एकत्व और द्वित्व अर्थ में भी (बहुवचन विकल्प करके होता है)।
205
च - I. 1. 60
(फल्गुनी और प्रोष्ठपद नक्षत्रविषयक द्वित्व अर्थ में) भी ( बहुत्व अर्थ विकल्प करके होता है)
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- I. ii. 62
(वेद-विषय में विशाखा नक्षत्र के द्वित्व अर्थ में) भी ( विकल्प करके एकत्व होता है)।
च - I. 1. 66
(गोत्रप्रत्ययान्त जो स्त्रीलिङ्ग शब्द, वह युवप्रत्ययान्त शब्द के साथ शेष रह जाता है और उस स्त्रीलिङ्ग गोत्रप्रत्ययान्त शब्द को पुंवत् कार्य) भी (हो जाता है, यदि उन दोनों शब्दों में वृद्धयुवप्रत्ययनिमित्तक ही वैरूप्य हो और सब समान हों)।
च - I. 1. 69
(नपुंसकलिङ्ग शब्द उससे भिन्न शब्द अर्थात् स्त्रीलिलिङ्ग पुंल्लिङ्ग शब्दों के साथ शेष रह जाता है, तथा स्त्रीलिङ्ग पुंल्लिङ्ग शब्द हट जाते हैं, एवं उस नपुंसकलिङ्ग शब्द को एकवत् कार्य) भी (विकल्प करके हो जाता है, यदि उन शब्दों में नपुंसकगुण एवं अनपुंसक गुण का ही वैशिष्ट्य हो, शेष प्रकृति आदि समान ही हो) ।
च - I. iii. 16
(इतरेतर तथा अन्योन्य शब्द उपपदवाची धातु से) भी (काम की अदलाबदली अर्थ में आत्मनेपद नहीं होता) ।
- I. iii. 21
(अनु, सम्, परि) और (आङ्पूर्वक क्रीड् धातु से आत्मनेपद होता है)।
च - I. iii. 23 (अपने भाव कथन तथा विवाद के निर्णायक को कहने अर्थ में) भी (स्था धातु से आत्मनेपद होता है)।
च - I. iii. 26
(उपपूर्वक अकर्मक स्था धातु से) भी (आत्मनेपद होता 3.1
च - I. iii. 35
(विपूर्वक अकर्मक कृञ् धातु से उत्तर) भी (आत्मनेपद होता है)।
च - I. iii. 37
(कर्ता में स्थित शरीरभिन्न कर्म के होने पर) भी ( णीञ् धातु से आत्मनेपद होता है)।
च - I. iii. 45
(अकर्मक ज्ञा धातु से) भी (आत्मनेपद होता है)।
च - I. iii. 55
(तृतीया विभक्ति से युक्त सम् पूर्वक् दाण् धातु से) भी (आत्मनेपद होता है, यदि वह तृतीया चतुर्थी के अर्थ में हो तो)।
च - I. iii. 60
(सम्मानन, शालीनीकरण) तथा (प्रलम्भन अर्थ में ण्यन्त ' धातु से आत्मनेपद होता है)।
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