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च - प्रत्याहारसूत्र IV
आचार्य पाणिनि द्वारा अपने चतुर्थ प्रत्याहारसूत्र में इत्स- ज्ञार्थ पठित वर्ण। च - प्रत्याहारसूत्र XI
आचार्य पाणिनि द्वारा अपने ग्यारहवें प्रत्याहारसूत्र में पठित छठा वर्ण।
-पाणिनि द्वारा अष्टाध्यायी के आदि में पठित वर्ण- माला का पैतीसवाँ वर्ण। च-I.1.5
(कित्,गित,डित् को निमित्त मानकर) भी (इक के स्थान में जो गुण और वृद्धि प्राप्त होते हैं, वे न हों)। च-I.1. 18 (सप्तमी के अर्थ में वर्तमान ईकारान्त सकारान्त शब्दों की) भी (प्रगृह्य संज्ञा होती है)। च-1.1.24
(डति प्रत्ययान्त संख्यावाची शब्द की) भी (पटसंजा होती है। च-1.1.30 (द्वन्द्वसमास में) भी (सर्वादियों की सर्वनाम संज्ञा नहीं होती)। च-11.32 (प्रथम,चरम,तयप् प्रत्ययान्त शब्द,अल्प,अर्ध,कतिपय तथा नेम शब्दों की) भी (जस-सम्बन्धी कार्य में विकल्प से सर्वनाम संज्ञा होती है)। च-I.1.37
(जिससे सारी विभक्ति उत्पन्न न हो, ऐसे तद्धित-प्रत्ययान्त शब्द की) भी (अव्ययसंज्ञा होती है)। च -I.i. 40
अव्ययीभाव समास की) भी (अव्ययसंज्ञा होती है)। च-I.i. 52 (डिदादेश) भी (अन्त्य अल् के स्थान में होता है)। च-1.1.63 (त्यदादिगणपठित शब्द) भी (वृद्धसंज्ञक होते है)।
च-I.i.68
(अण् और उदित् अपने स्वरूप का) भी (ग्रहण कराते है,प्रत्यय को छोड़कर)। च-1. ii.6 (इन्धि तथा भू धातु से परे) भी लिट् प्रत्यय कित्वत् होता है)। च-1.11.8
(रुद,विद,मुष,ग्रह,स्वप तथा प्रच्छ इन धातुओं में परे सन्) और (क्त्वा प्रत्यय कित्वत् होते हैं)। . च-I. ii. 10
(इक् के समाप जो हल्, उससे परे) भी (झलादि सन् कित्वत् होता है)। च-1. ii. 12
(ऋवर्णान्त धातु से परे) भी (झलादि लिङ् तथा सिप कित्वत् होते हैं, आत्मनेपदविषय में)। च-I.ii. 16
(स्था तथा घुसज्जक धातुओं से परे सिच कित्वत् होता है और इकारादेश) भी (हो जाता है)। . च-I. ii. 22
(पूङ् धातु से परे सेट् निष्ठा तथा सेट् क्त्वा प्रत्यय) भी (कित् नहीं होता है)। च-1.11.24.
(वा, लुच, ऋत् इन धातुओं से परे) भी (सेट् क्त्वा विकल्पकरके कित् नहीं होता है)। च-I. ii. 26 (इकार तथा उकार उपधा वाली रलन्त हलादि धातुओं. से परे सेट् सन्) और (सेट् क्त्वा प्रत्यय विकल्प से कित् नहीं होते है)। च-I. ii. 28 (हस्व हो जाये, दीर्घ हो जाये प्लुत हो जाये, ऐसा नाम लेकर जब कहा जाये तो) वह पूर्वोक्त हस्व दीर्घ प्लुत (अच् के स्थान में ही हो)।