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-III. HI.84
घखो -V.1.70 (परिपूर्वक हन् धातु से करणकारक में अप् प्रत्यय होता (द्वितीयासमर्थ यज्ञ तथा ऋत्विग् प्रातिपदिकों से समर्थ है, तथा हन् के स्थान में) घ आदेश (भी होता है)। है' अर्थ में) यथासङ्ख्य करके घ तथा खञ् प्रत्यय
होते हैं। -III. III. 118 (धातु से करण और अधिकरण कारक में पंल्लिक में घखौ-IV.ii.92 प्रायः करके) घ प्रत्यय होता है, (यदि समुदाय से संज्ञा (राष्ट्र तथा अवारपार शब्दों से शैषिक जातादि प्रतीत होती है)।
अर्थों में यथासङ्ख्य) घ और ख प्रत्यय होते हैं। घ-IV.I. 138
घच्.. - IV. iv. 117 (क्षत्र शब्द से अपत्य अर्थ में) घ प्रत्यय होता है।
देखें-घच्छौ Niv. 117.
घच्छौ -IV. iv. 117 .-IV. 1. 26 (अपोनपात्, अपांनपात् देवतावाची शब्दों से षष्ठ्यर्थ
(सप्तमीसमर्थ अग्र प्रातिपदिक से वेदविषयक भवार्थ .. में प्रत्यय होता है और प्रयोग में) घच और छ प्रत्यय (भी) होते हैं। . से इन शब्दों को अपोनप्त और अपांनप्त आदेश भी घा... -II. v. 38 होता है)।
देखें-घषयोः II. iv. 38 -IV. iv. 118
घ -III. Iii. 16 (सप्तमीसमर्थ समुद्र और अप्र प्रातिपदिकों से वेदवि- (पद, रुज, विश और स्पृश् धातुओं से) पञ् प्रत्यय षयक भवार्थ में) घ प्रत्यय होता है)।
होता है)। घ-IV. iv. 135
घ -III. Iii. 120 (तृतीयासमर्थ सहस्र प्रातिपदिक से तुल्य अभिधेय हो (अवपूर्वक तू,स्तृञ् धातुओं से करण, अधिकरण कारक तो)घ प्रत्यय होता है।
तथा संज्ञाविषय में प्रायः करके) पञ् प्रत्यय होता है। छ - IV. iv. 141
... .. - VI. 1. 144
देखें-थाथषष्० VI. II. 144 (नक्षत्र प्रातिपदिक से वेद-विषय में) घ प्रत्यय होता है।
घषः-IV. 1.57 घ-v.ii. 40
(प्रथमासमर्थ क्रियावाची) घजन्त प्रातिपदिक से (सप्त(प्रथमासमर्थ परिमाण समानाधिकरणवाची किम् तथा
म्यर्थ में ज प्रत्यय होता है)। इदम् प्रातिपदिक से षष्ठ्यर्थ में वतुप प्रत्यय होता है,तथा
घर -VI.1. 153 उस वतु के वकार के स्थान में) घकार आदेश होता है।
(कृष् विलेखने' धातु तथा अकारवान्) घबन्त शब्द के छ -VIII. ii. 32
(अन्त को उदात्त होता है)। (दकार आदि वाले धातु के हकार के स्थान में) घकार
घषपोः -II. iv. 38 आदेश होता है, (झल् परे रहते या पदान्त में)।
घञ् और अप (आर्धधातुक) परे रहते (भी अद् को घस्ल घकालतनेषु - VI. II. 16
आदेश होता है)। (काल के नामवाची शब्दों से उत्तर सप्तमी का) घसजक घषि-VI.1.46 प्रत्यय, काल शब्द तथा तन प्रत्यय के उत्तरपद रहते (विकल्प करके अलुक होता है)।
(स्फुर तथा स्फुल धातुओं के एच् के स्थान में) षब् प्रत्यय के परे रहते (आकारादेश हो जाता है)।