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घाणौ
घषि-VI. 1. 121
घबन्त उत्तरपद रहते (अमनुष्य अभिधेय होने पर उपसर्ग के अण को बहल करके दीर्घ होता है)। घषि-VI. iv. 27
(भाववाची तथा करणवाची) घन के परे रहते (भी रज धातु की उपधा के नकार का लोप होता है)। ... घयोः -VII. 1.67
देखें-खल्यो : VII. 1.67 ...घट.. - III. iv. 65
देखें-शकवज्ञाग्ला. III. iv. 65 घटः-v.ii.35
(सप्तमीसमर्थ कर्मन प्रातिपदिक से)'चेष्टा करने वाला' अर्थ में (अठच् प्रत्यय होता है)। छन् -IV. 1. 25
(प्रथमासमर्थ शक्र शब्द से षष्ठयर्थ में) घन प्रत्यय होता है,(सास्य देवता' अर्थ में)। छन् -IV. iv. 115
(सप्तमीसमर्थ तुम शब्द से वेद-विषयक भवार्थ में) घन् प्रत्यय होता है। घन्-v.i.67
(द्वितीयासमर्थ पात्र प्रातिपदिक से 'समर्थ है' अर्थ में) घन् (और यत्) प्रत्यय (होते है)। घन्... -V. iii.79
देखें-घनिलचौ .iii.79 घनः -III. 11.77
काठिन्य अभिधेय हो तो हन धातु से अप प्रत्यय होता है, तथा हन को घन आदेश भी हो जाता है। घनिलचौ-v.i1.79
(बहुत अच् वाले मनुष्यनामधेय प्रातिपदिकों से 'अन- कम्पा से सम्बद्ध नीति' गम्यमान हो तो) घन और इलच प्रत्यय होते है, (तथा विकल्प से ठच् प्रत्यय होता है)। घरूपकल्पचेलअवगोत्रमतहतेषु - VI. III. 42
(भाषितपुंस्क शब्द से उत्तर ड्यन्त अनेकाच शब्द को हस्व हो जाता है); ष,रूप, कल्प, चेलट, बुव, गोत्र, मत तथा हत शब्दों के परे रहते।
घस् - V.i. 105
(वेदविषय में समर्थ ऋतु प्रातिपदिक से षष्ठ्यर्थ में) घस् प्रत्यय होता है, (यदि वह प्रथमासमर्थ ऋतु प्रातिपदिक प्राप्त समानाधिकरण वाला हो तो)। घस.. -II. iv.80
देखें - घसहरणश० II. iv. 80 घसरणशवृदहावृच्छगमिजनिभ्यः -II. iv.80
(मन्त्र विषय में) घस,ह,णश.व. दह. आकारान्त, वज कृ,गमि,जनि- इन धातुओं से (विहित फिल का लुक हो जाता है)। ... घसाम् - VI. iv. 98
देखें-गमहनजनखन० VI. iv.98 ...घसाम् - VII. ii. 69
देखें- एकाजाघसाम् VII. ii.69 ...घसि... -III. II. 160
देखें - स्पस्यदः III. ii. 160 घसि... - VI. iv. 100
देखें - घसिमसोः VI. iv. 100 घसिमसोः -VI. iv. 100
घस तथा भस अङ्गकी (उपधा का वेदविषय में लोप होता है; हलादि तथा अजादि कित,ङित् प्रत्यय परे रहते)। ...घसीनाम् - VIII. iii.60
देखें- शासिवसि० VIII. 1.60 घस्तृ-II. iv. 37
(अद् को) घस्लू आदेश होता है,लुङ् और सन् आर्धधातक परे रहते)। घस्य-VIII. ii. 17
(नकारान्त शब्द से उत्तर) घसज्जक को (वेद-विषय में नुट् आगम होता है)। घाडूयो: - VIII. ii. 22
(परि के रेफ को भी)घ तथा अङ्कशब्द परे रहते (विकल्प से लत्व होता है)। घाणी-IV. 1. 28
(प्रथमासमर्थ देवतावाची महेन्द्र प्रातिपदिक से षष्ठ्यर्थ में)घ, अण् (तथा छ प्रत्यय भी) होते हैं।