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प्राम्यपशुसयेषु
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ग्राम्यपशुसयेषु - I. ii. 73
(तरुणों से रहित) ग्रामीण पशुओं के समूह में (स्त्री पशु शेष रह जाता है, पुमान् हट जाते हैं)। ...प्रावस्तुकः - III. ii. 177
देखें-प्राजभास. III.ii. 177 :.ग्रीवा... -VI. ii. 114
देखें-कण्ठपृष्ठ VI. ii. 114 ...ग्रीवाभ्यः - IV. 1.95
देखें-कुलकुक्षि iv. ii. 95 ग्रीवाभ्यः - V. iii. 57 (सप्तमीसमर्थ) ग्रीवा प्रातिपदिक से (भव अर्थ में अण और ठञ् प्रत्यय होता है)। ग्रीष्य..-IV. iii.46
देखें- ग्रीष्मवसन्तात् IV. ill.46 ग्रीष्य.. - IV. iii. 49
देखें - ग्रीष्मावरसमात् IV. iii. 49 ग्रीष्मवसन्तात् - IV. iii. 46
(सप्तमीसमर्थ) ग्रीष्म तथा वसन्त (कालवाची) प्रातिपदिकों से (बोया हुआ अर्थ में विकल्प से वुञ् प्रत्यय
होता है)। ग्रीष्मावरसमात् - IV. iii. 49
(सप्तमीसमर्थ कालवाची) ग्रीष्म और अवरसम प्रातिपदिकों से (देयमणे' अर्थ में वुञ् प्रत्यय होता है)। ...गुचु... - III.i. 58
देखें - वृस्तम्भु० I. 1. 58 ग्ल ह - III. iii.70
ग्लह शब्द (में अथवा विषय हो तो ग्रह धातु से अप् प्रत्यय तथा लत्व निपातन से होता है, कर्तृभिन्न कारक तथा भाव में)। ग्ला...- III. 1. 139
देखें- ग्लाजिस्थ: III. 1. 139 ...म्ला.. - III. iv.65
देखें- शकषज्ञाग्ला. III. iv. 65 म्लाजिस्थः -III. ii. 139
ग्ला,जि,स्था (तथा चकार से भू) धातु से (भी वर्तमान काल में क्स्नु प्रत्यय होता है, तच्छीलादि कर्ता हो तो)। ...ग्लुचु... - III. 1. 58 देखें - जूस्तम्भु० III.i. 58
घ- प्रत्याहारसूत्र - Ix
भगवान् पाणिनि द्वारा अपने नवम प्रत्याहार सूत्र में पठित प्रथम वर्ण।
पाणिनि द्वारा अष्टाध्यायी के आदि में पठित वर्णमाला का बाईसवां वर्ण। घ-III. iii. 125
(खन् धातु से पुँल्लिङ्ग करणाधिकरण कारक संज्ञा में) घ प्रत्यय होता है,(तथा चकार से घबू भी होता है)। घ.. - IV. ii. 28
देखें - घाणौ N. ii. 28 घ..- V.ii.92 .. देखें-घखौ IV.ii. 92
घ.-v.i.70 - देखें-घखत्री V.i.70
घ.. -VI. iii. 16
देखें - घकालतनेषु VI. iii. 16 घ... - VI. iii. 42
देखें - घरूप० VI. iii. 42 घ.. -VI. iii. 132
देखें- तुनुघमक्षु० VI. iii. 132 घ.. - VIII. ii. 22
देखें - घाइयो: VIII. ii. 22 घः -I.1.21
(तरप् और तमप् की) घ संज्ञा होती है। घ -III. 1.70 '(सुबन्तं उपपद रहते 'दुह' धातु से कप् प्रत्यय होता है, तथा अन्त्य हकार को) घकारादेश होता है।