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में।
गोत्रे -IV.i. 98
...गोपूर्वात् - V.ii. 118 गोत्रापत्य में (कुझादि षष्ठी समर्थ प्रातिपदिकों से कञ् देखें - एकगोपूर्वात् V. 1. 118 प्रत्यय होता है)।
गोबिडालसिंहसैन्यवेषु - VI. II. 72 . गोत्रे - IV. ii. 110
गो, बिडाल, सिंह, सैन्धव - इन (उपमानवाची) शब्दों (कण्वादि प्रातिपदिकों से) गोत्र में विहित जो प्रत्यय. के उत्तरपद रहते (पूर्वपद को आधुदात्त होता है)। (तदन्त प्रातिपदिक से शैषिक अण प्रत्यय होता है)।
होता ... गोमिन्... - V. II. 114 गोत्रे - VIII. 1. 91
देखें-ज्योत्स्नातमित्रा० V. 1. 114
गोयवाग्वोः - IV. 1. 135 (कपिष्ठल' में मूर्धन्य निपातन है),गोत्र विषय को कहने
गो तथा यवागू अभिधेय हो तो (पी देशवाची साल्व..
शब्द से शैषिक वुञ् प्रत्यय होता है)। गोत्रोक्षोष्ट्रोरप्रराजराजन्यराजपुत्रवत्समनुष्याजात् - IV.
...गोशाल... - IV. Ill. 35 ii.38
देखें - स्थानान्तगोशाल. IV. II. 35 (षष्ठीसमर्थ) गोत्रवाची शब्दों से तथा उक्षन, उष्ट,उरत्र,
गोश्वन्साववर्णराडकट्यः - VI. 1. 176 राजन, राजन्य,राजपुत्र, वत्स, मनुष्य तथा अज शब्दों से
गो, श्वन, सु प्रथमा के एकवचन के परे रहते जो अव-: (समूह अर्थ में वुञ् प्रत्यय होता है)।
र्णान्त शब्द, राट्, अङ्, क्रुङ् तथा कृत् से (जो कुछ भी उक्षन् = बैल।
स्वरविधान कह आये हैं,वह नहीं होते)। उरभ्र = मेष, भेड़।
गोक्दादिभ्यः -V.1.62 " गोव्यच - V. 1. 38
गोषदादि प्रातिपदिकों से (मत्वर्थ में 'अध्याय' और (सङ्ख्यावाची. परिमाणवाची तथा अश्वादि प्राति- 'अनुवाक' अभिधेय हो तो वन प्रत्यय होता है)। पदिकों को छोड़कर षष्ठीसमर्थ) गो तथा दो अच् वाले गोष्ठात् - V. II. 18 प्रातिपदिकों से (कारण' अर्थ में यत् प्रत्यय होता है, यदि (भूतपूर्व' अर्थ में वर्तमान) गोष्ठ प्रातिपदिक से (ख वह कारण संयोग वा उत्पात हो तो)।
प्रत्यय होता है)। गोधायाः - IV. 1. 129
....गोष्ठश्या -V.v.77 गोधा शब्द से (अपत्य अर्थ में दक् प्रत्यय होता है)।
देखें - अचतुर० V. iv.77 गोधा = गोह।
गोष्पदम् -VI.1.140 गोपयसो: - IV. ii. 157
गोष्पद शब्द में सुट् आगम तथा उसको षत्व का निपा
तन किया जाता है; (सेवित, असेवित तथा प्रमाण विषय (षष्ठीसमर्थ) गो तथा पयस् शब्दों से (विकार तथा अवयव अर्थों में यत् प्रत्यय होता है)।
गोष्पद = गायों के चरने की जगह मोपवनादिभ्यः - II. iv.67
गोखियोः -I. 1. 49 गोपवन आदि शब्दों से उत्तर (गोत्र में विहित प्रत्ययों (उपसर्जन) गो शब्दान्त प्रातिपदिक तथा (उपसर्जन) का तत्कृत बहुवचन में लुक नहीं होता)।
स्त्रीप्रत्ययान्त प्रातिपदिक को (हस्व हो जाता है)। गोपुच्छात् - IV. iv.6
गोह -VI. iv.89 (तृतीयासमर्थ) गोपुच्छ प्रातिपदिक से (तरति' अर्थ में गोह अङ्ग की (उपधा को ऊकारादेश होता है,अजादि ठञ् प्रत्यय होता है)।
प्रत्यय परे रहते)।
में)।