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________________ 194 में। गोत्रे -IV.i. 98 ...गोपूर्वात् - V.ii. 118 गोत्रापत्य में (कुझादि षष्ठी समर्थ प्रातिपदिकों से कञ् देखें - एकगोपूर्वात् V. 1. 118 प्रत्यय होता है)। गोबिडालसिंहसैन्यवेषु - VI. II. 72 . गोत्रे - IV. ii. 110 गो, बिडाल, सिंह, सैन्धव - इन (उपमानवाची) शब्दों (कण्वादि प्रातिपदिकों से) गोत्र में विहित जो प्रत्यय. के उत्तरपद रहते (पूर्वपद को आधुदात्त होता है)। (तदन्त प्रातिपदिक से शैषिक अण प्रत्यय होता है)। होता ... गोमिन्... - V. II. 114 गोत्रे - VIII. 1. 91 देखें-ज्योत्स्नातमित्रा० V. 1. 114 गोयवाग्वोः - IV. 1. 135 (कपिष्ठल' में मूर्धन्य निपातन है),गोत्र विषय को कहने गो तथा यवागू अभिधेय हो तो (पी देशवाची साल्व.. शब्द से शैषिक वुञ् प्रत्यय होता है)। गोत्रोक्षोष्ट्रोरप्रराजराजन्यराजपुत्रवत्समनुष्याजात् - IV. ...गोशाल... - IV. Ill. 35 ii.38 देखें - स्थानान्तगोशाल. IV. II. 35 (षष्ठीसमर्थ) गोत्रवाची शब्दों से तथा उक्षन, उष्ट,उरत्र, गोश्वन्साववर्णराडकट्यः - VI. 1. 176 राजन, राजन्य,राजपुत्र, वत्स, मनुष्य तथा अज शब्दों से गो, श्वन, सु प्रथमा के एकवचन के परे रहते जो अव-: (समूह अर्थ में वुञ् प्रत्यय होता है)। र्णान्त शब्द, राट्, अङ्, क्रुङ् तथा कृत् से (जो कुछ भी उक्षन् = बैल। स्वरविधान कह आये हैं,वह नहीं होते)। उरभ्र = मेष, भेड़। गोक्दादिभ्यः -V.1.62 " गोव्यच - V. 1. 38 गोषदादि प्रातिपदिकों से (मत्वर्थ में 'अध्याय' और (सङ्ख्यावाची. परिमाणवाची तथा अश्वादि प्राति- 'अनुवाक' अभिधेय हो तो वन प्रत्यय होता है)। पदिकों को छोड़कर षष्ठीसमर्थ) गो तथा दो अच् वाले गोष्ठात् - V. II. 18 प्रातिपदिकों से (कारण' अर्थ में यत् प्रत्यय होता है, यदि (भूतपूर्व' अर्थ में वर्तमान) गोष्ठ प्रातिपदिक से (ख वह कारण संयोग वा उत्पात हो तो)। प्रत्यय होता है)। गोधायाः - IV. 1. 129 ....गोष्ठश्या -V.v.77 गोधा शब्द से (अपत्य अर्थ में दक् प्रत्यय होता है)। देखें - अचतुर० V. iv.77 गोधा = गोह। गोष्पदम् -VI.1.140 गोपयसो: - IV. ii. 157 गोष्पद शब्द में सुट् आगम तथा उसको षत्व का निपा तन किया जाता है; (सेवित, असेवित तथा प्रमाण विषय (षष्ठीसमर्थ) गो तथा पयस् शब्दों से (विकार तथा अवयव अर्थों में यत् प्रत्यय होता है)। गोष्पद = गायों के चरने की जगह मोपवनादिभ्यः - II. iv.67 गोखियोः -I. 1. 49 गोपवन आदि शब्दों से उत्तर (गोत्र में विहित प्रत्ययों (उपसर्जन) गो शब्दान्त प्रातिपदिक तथा (उपसर्जन) का तत्कृत बहुवचन में लुक नहीं होता)। स्त्रीप्रत्ययान्त प्रातिपदिक को (हस्व हो जाता है)। गोपुच्छात् - IV. iv.6 गोह -VI. iv.89 (तृतीयासमर्थ) गोपुच्छ प्रातिपदिक से (तरति' अर्थ में गोह अङ्ग की (उपधा को ऊकारादेश होता है,अजादि ठञ् प्रत्यय होता है)। प्रत्यय परे रहते)। में)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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