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...गोतम..
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...गोतम.. -II. iv.65
देखें - अत्रिभृगुकुत्स II. iv. 65 गोत्र.. - IV. ii. 38 ,
देखें - गोत्रोक्षोष्ट्रो० IV. ii. 38 गोत्र.. - IV. iii. 99 • देखें - गोत्रक्षत्रियाख्येभ्यः IV. iii. 99 गोत्र.. - IV. iii. 125
देखें - गोचरणात् IV. iii. 125 गोत्र.. - V. i. 133
देखें - गोत्रचरणात् .i. 133 . गोत्र.. - VI. 1.69
देखें-गोत्रान्तेवासी VI. 1.69 ...गोत्र.. - VI. iii. 42
देखें-घरूपकल्प. VI. iii. 42 ...गोत्र... -VI. iil.84
देखें - ज्योतिर्जनपदO VI. iii. 84 गोत्रक्षत्रियाख्येभ्यः- IV. ii. 99
(प्रथमासमर्थ भक्तिसमानाधिकरणवाची) गोत्र आख्या- वाले तथा क्षत्रिय आख्या वाले प्रातिपदिकों से (बहुल करके वुञ् प्रत्यय होता है)। गोचरणाद् - IV. ii. 125
(षष्ठीसमर्थ) गोत्रवाची तथा चरणवाची प्रातिपदिकों से (इदम्' अर्थ में वुञ् प्रत्यय होता है)। गोत्रचरणात् - V.i. 133
(षष्ठीसमर्थ) गोत्रवाची तथा चरणवाची प्रातिपदिकों से (श्लाघा' = प्रशंसा करना, अत्याकार' = अपमान करना तथा तदवेत' = उससे युक्त होना- इन विषयों में भाव तथा कर्म अर्थों में वुज प्रत्यय होता है)। गोत्रम् - IV.i. 162
(पौत्र से लेकर जो सन्तान उसकी) गोत्रसंज्ञा होती है। गोत्रखियाः -IV..147
गोत्र में वर्तमान जो स्त्री, तद्वाची प्रातिपदिक से (कुत्सन गम्यमान होने पर अपत्य अर्थ में ण प्रत्यय होता है.और ठक् भी)।
गोत्रात् - IV. 1.94
(युवापत्य की विवक्षा होने पर) गोत्र से ही प्रत्यय हो; (अनन्तरापत्य अथवा प्रथम प्रकृति से नहीं, स्त्री अपत्य को छोड़कर)। गोत्रात् - IV. iii. 80
(पञ्चमीसमर्थ) गोत्रवाची प्रातिपदिकों से (आगत' अर्थ में अङ्कवत् प्रत्ययविधि होती है)। ...गोत्रादि... -VIII. 1.57
देखें-चनचिदिव० VIII.1.57 गोत्रादीनि - VIII. 1.27 (तिङन्त पद से उत्तर निन्दा तथा पौन:पुन्य अर्थ में वर्तमान) गोत्रादिगणपठित पदों को (अनुदात्त होता है)। गोत्रान्तेवासिमाणवबाह्मणेषु - VI. II. 69
(निन्दावाची समास में) गोत्रवाची,अन्तेवासिवाची तथा माणव तथा ब्राह्मण शब्दों के उत्तरपद रहते (पूर्वपद को आधुदात्त होता है)। गोत्रावयवात् - IV.i. 79
गोत्ररूप से लोक में स्वीकृत कुलसंज्ञा रूप से प्रख्यात जो प्रातिपदिक, उनसे (गोत्र में विहित जो अनार्ष अण और इत्र प्रत्यय उनको स्त्रीलिङ्ग में ष्यङ् आदेश होता
गोत्रे-II. iv.63
(यस्कादिगणपठित शब्दों से उत्तर) गोत्र में विहित (स्त्रीभिन्न प्रत्यय का लक होता है.बहत्व की विवक्षा में; यदि वह बहुत्व गोत्र-प्रत्यय-द्वारा निष्पादित हो तो)। गोत्रे -IV.i.78
गोत्र में विहित (ऋष्यपत्य से भिन्न अण् और इञ् प्रत्यय अन्त वाले उपोत्तम गुरुवाले प्रातिपदिकों को स्त्रीलिङ्ग में ष्यङ् आदेश होता है)। गोत्रे -IV.i. 89
(प्राग्दीव्यतीय अजादि प्रत्यय की विवक्षा हो तो) गोत्र में उत्पन्न प्रत्यय का (लुक नहीं होता)। गोत्रे - IV. 1. 93 गोत्र में (एक ही प्रत्यय होता है)।