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गवि...
गवि... - VIII. III. 95
देखें - गवियुधिभ्याम् VIII. III. 95
गवियुधिभ्याम् - VIII. iii. 95
गवि तथा युधि से उत्तर (स्थिर शब्द के सकार को मूर्धन्य आदेश होता है)।
गहनयो: - VII. ii. 22
...
देखें - कृच्छ्रगहनयो: VII. 11. 22
महादिभ्यः - IV. 1. 137
गहादि प्रातिपदिकों से (भी शैषिक छ प्रत्यय होता है) ।
गा - II. iv. 45
(इण् के स्थान में लुछ आर्धधातुक रहते) गा आदेश होता है।
गा...
- III. ii. 8
देखें गापोः 111. II. 8
III. iii. 95
स्थागापापच: III. iii. 95
- VI. iv. 66
-
गा...
देखें ... Th..
देखें - घुमास्था०] VI. Iv. 66
-
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गाङ्... - I. ii. 1
देखें - गाइकुटादिभ्यः I. II. 1
गाङ् - II. iv. 49
(इङ् को आर्धधातुक लिट् परे रहते) गाङ् आदेश होता
है) ।
गाइकुटादिभ्य - Iii. 1
=
इडादेश गा तथा कुटादिगणपठित 'कुट कौटिल्ये' 'कुट कौटिल्ये' से लेकर 'कुङ् शब्दे' पर्यन्त धातुओं से परे (जित् णित् भिन्न प्रत्यय डित्वत् होते हैं)।
गाण्डी... - V. ii. 110
देखें - • गाण्ड्यजगात् V. ii. 110
गाण्ड्यजगात् - VII. 110
गाण्डी तथा अजग प्रातिपदिकों से (मत्वर्थ में व प्रत्यय
होता है, संज्ञाविषय में) ।
गाति...
-II. iv. 77
देखें
गातिस्याधुपाo II. I. 77
188
गातिस्वाघुपाभूभ्यः - III. 77
-
गा, स्था, घुसंक धातु, पा और भू इन धातुओं से उत्तर (सिच् का लुक् हो जाता है, परस्मैपद परे रहते) ।
.... गाथा...
III. it. 23
देखें - शब्दश्लोक० III. II. 23
गाथि... - VI. Iv. 165
-
देखें – गाविविदधि० VI. iv. 165 गाञ्चिविदचिकेशिगणिपणिनः - VI. Iv. 165
गाथिन्, विदथिन् केशिन्, गणिन्, पणिन् - इन अङ्गों
( अ परे रहते प्रकृतिभाव हो जाता है)।
गाथ...
- VI. ii. 4
देखें गायलवणयो: VI. II. 4
-
-
मालवणयोः - VI. 1. 4
(प्रमाणवाची तत्पुरुष समास में) गाय तथा लवण शब्दों के उत्तरपद रहते (पूर्वपद को प्रकृतिस्वर होता है) । गाव = तल, लिप्सा
.....गान्धारिभ्याम् - IV. 137
देखें - साल्वेयगान्धारिभ्याम् IV. 1. 137
गापोः
गार्ग्यस्य
-
III. ii. 8
गा तथा पा धातु से (टक्' प्रत्यय होता है, कर्म उपपद रहने पर)।
गामी VB11
-
(द्वितीयासमर्थ अवारपार, अत्यन्त तथा अनुकाम प्रातिपदिकों से) 'भविष्य में जाने वाला' अर्थ में (ख प्रत्यय होता है)।
गार्ग्य.... गार्ग्य... - VII. 1. 99
देखें - गार्ग्यगालवयो: VII. iii. 99
गार्ग्यगालवयो: - VII. III. 99
(रुदादि पांच अगों से उत्तर हलादि अपृक्त सार्वधातुक को अट् का आगम होता है) गार्ग्य तथा गालब आचार्यों के मत में।
गार्ग्यस्य - VIII. iii. 20
(ओकार से उत्तर यकार का लोप होता है), गार्ग्य आचार्य के मत में) ।