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...गार्हपत...
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गुणः
...गुण... - II. ii. 11
देखें - पूरणगुणसुहितार्थ. II. ii. 11 गुणः -I.1.2
(अ, ए, ओ की) गुणसंज्ञा होती है। गुणः -VI.i.84
(अवर्ण से उत्तर जो अच् तथा अच् परे रहते जो अवर्ण, इन दोनों पूर्व पर के स्थान में) गुण (एकादेश) होता है। गुणः -VI. iv. 146
(भसंज्ञक उवर्णान्त अङ्ग को) गुण होता है, (तद्धित परे रहते)। गुणः -VI. iv. 156
(स्थूल, दूर, युव, हस्व, क्षिप्र, क्षुद्र - इन अङ्गों का पर जो यणादि भाग,उसका लोप होता है इष्ठन्, इमनिच् तथा ईयसुन् परे रहते तथा उस यणादि से पूर्व को) गुण होता
....गार्हपत... - VI. ii. 42
देखें - कुरुगार्हपत० VI. ii. 42 ...गालवयो: - VII. iii. 99
देखें - गा→गालवयो: VII. ii. 99 गालवस्य -VI. iii. 60 (ङीष् अन्त में नहीं है जिसके,ऐसा जो इक् अन्त वाला शब्द,उसको) गालव आचार्य के मत में (विकल्प से हस्व होता है, उत्तरपद परे रहते)। गालवस्य-VII.1.74 .
(तृतीया विभक्ति से लेकर आगे की अजादि विभ- क्तियों के परे रहते भाषितपुंस्क नपुंसकलिङ्ग वाले इगन्त अङ्ग को) गालव.आचार्य के मत में (पुंवद्भाव हो जाता है)। ...गालवानाम् - VIII. iv.66
देखें - अगायेकाश्यप० VIII. iv.66 ...गाहेषु-VI. iii. 59
देखें - मन्चौदन० VI. iii. 59 गिरि....-VI. ii. 94 • देखें - गिरिनिकाययो:० . VI. ii. 94 गिरिनिकाययोः - VI. ii. 94
गिरि तथा निकाय शब्दों के परे रहते (संज्ञाविषय में पूर्वपद.को अन्तोदात्त होता है)। गिरेः - Viv. 112 - (अव्ययीभाव समास में वर्तमान) गिरि शब्दान्त प्रातिपादक से (भी समासान्त टच प्रत्यय विकल्प से होता है सेनक आचार्य के मत में)। ...गियों: -VI. iii. 116
देखें- वनगिर्यो: VI. iii. 116 गुडादिभ्यः - IV. iv. 102 (सप्तमीसमर्थ) गुडादि प्रातिपदिकों से (साधु अर्थ में ठञ् प्रत्यय होता है)। गुण.. -I.i.3. . देखें - गुणवृद्धी I. 1.3
गुणः -VII. iii. 82
(मिद अङ्ग के इक को शित प्रत्यय परे रहते) गुण हो जाता है। गुणः - VII. iii. 91 • (ऊर्ण अङ्ग को अपृक्त हल् पित् सार्वधातुक परे रहते) गुण होता है। गुणः - VII. iii. 108
(हस्वान्त अङ्ग को सम्बुद्धि परे रहते) गुण होता है। गुणः - VII. iv. 10 (संयोग आदि में है जिसके,ऐसे ऋकारान्त अङ्ग को भा) गुण होता है; (लिट परे रहते)। गुणः -VII. iv. 16 (ऋवर्णान्त तथा दृशिर् अङ्ग को अङ् परे रहते) गुण होता है। गुणः - VII. iv. 21
(शीङ् अङ्ग को सार्वधातुक परे रहते) गुण होता है)। गुणः - VII. iv. 29
(ऋ तथा संयोग आदि में है जिसके, ऐसे ऋकारान्त धातु को यक् तथा यकारादि आर्धधातुक लिङ् परे रहते) गुण होता है।