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कृत्वसुच
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केकयमित्रयुप्रलयानाम्
कृत्वसुच् -V.IV. 17
...कृषि... - V. ii. 112 (क्रिया के बार-बार गणन अर्थ में वर्तमान सङ्ख्यावाची देखें- रजकृष्याov.in. 112 प्रातिपदिकों से) कृत्वसुच् प्रत्यय होता है।
कृषः - VII. iv.64 कृत्वोऽर्थप्रयोगे-II. 1.64
कृष् अङ्ग के (अभ्यास को वेद-विषय में यह परे रहते कृत्वसुच प्रत्यय अथवा इसके अर्थ वाले प्रत्ययों के चवर्गादेश नहीं होता)। प्रयोग में (काल अधिकरण होने पर षष्ठी विभक्ति होती
कृषौ -V.iv. 58 है; शेषत्व की विवक्षा में)।
द्वितीय, तृतीय,शम्ब तथा बीज प्रातिपदिको से) कृषि कृत्वोऽथें - VIII. ill. 43
अभिधेय होने पर (कृञ् धातु के योग में डाच् प्रत्यय कृत्वसुच् के अर्थ में वर्तमान (द्विस, त्रिस् तथा चतुर् के होता है)। विसर्जनीय को विकल्प से वकारादेश होता है; कवर्ग
...कृष्टपच्य.. - III. I. 114 अथवा पवर्ग परे रहते)।
देखें- राजसूयसूर्य II. 1. 114 ...कृद्ध्यः -VI. 1. 176
कसभवस्तुदुखुश्रुक - VII. ii. 13 देखें - गोश्वन० VI. 1. 176
कृ, स,भृत, स्तु, द्रु, स्नु, श्रु- इन अङ्गों को ....कृषि... - VIII. ii. 50
प्रत्यय परे रहते इट् आगम नहीं होता)। देखें - कःकरत VIII. iii. 50
कृ -III. ill. 30 कृपः -VIII. I. 18
(उद् तथा नि पूर्वक) कृ धातु से (धान्यविषय में घब् कृप् धातु के रेफ को लकारादेश होता है)। प्रत्यय होता है, कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में)। । कवस्तियोगे - V. iv. 50
क्लप: -1. iii. 93 कृ, भू तथा अस् धातु के योग में (सम् पूर्वक पद् धातु क्लुप् (= कृप) धातु से (लुट् लकार में तथा चकार से के कर्ता में वर्तमान प्रातिपदिक से च्चि प्रत्यय होता है)। स्य, सन् होने पर भी विकल्प से परस्मैपद होता है)। कृश्योः -III. iv. 61
क्लप - VII. ii. 60 (तस्मत्ययान्त स्वाङ्गवाची शब्द उपपद हो तो) कु, भू 'कृपू सामर्थे' धातु से उत्तर (तास् तथा सकारादि आर्धधातुओं से (क्त्वा तथा णमुल् प्रत्यय होते है)।
धातुक को इट आगम नहीं होता, परस्मैपद परे रहते)। कमदहिभ्यः - III. 1. 59
के-VII. iii. 64 कृमृ.दृ तथा रुह धातु से उत्तर च्लि को छन्द-विषय (उच समवाये' धातु से) क प्रत्यय परे रहते (ओक शब्द में अह आदेश होता है.कर्तवाची लुङ परे रहते)।
निपातन किया जाता है)। कवृषोः - III. 1. 120
के -VII. iv. 13 . कृ तथा वृष धातुओं से विकल्प से क्यप प्रत्यय होता
__क प्रत्यय परे रहते (अण् = अ, इ, उ को हस्व होता
...कश... - VIII. ii. 55
देखें-फुल्लक्षीब VIII. 1. 55 ...कशाश्व... - IV. 1.80
देखें- अरोहणकशाश्व० V. 1. 80 ...कशाश्वात् -VIII. 111 देखें-कर्मन्दकशाश्वात् IV. 1. 111
केकय.. - VII. iil.2
देखें - केकयमित्रयु० VII. Ili.2 केकयमित्रयुप्रलयानाम् - VII. Iii. 2
केकय,मित्रयु तथा प्रलय अङ्गों के (यकार आदि वाले भाग को इय आदेश होता है जित, णित् अथवा कित् तखित परे रहते)।