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________________ केदारात् 169 कोपधात् केदारात् - IV. ii. 39 केशाश्वाभ्याम् - IV. ii. 47 (षष्ठीसमर्थ) केदार शब्द से (यञ् प्रत्यय होता है, तथा (षष्ठीसमर्थ) केश तथा अश्व प्रातिपदिकों से (समूहार्थ में यथासङ्ख्य यञ् तथा छ प्रत्यय होते हैं; विकल्प से; वुञ् भी)। पक्ष में ठक)। ....केन्... - III. iv. 14 ...केशि... - VI. iv. 165 देखें- तवैकेन्केन्यत्वनः III. iv. 14 देखें- गाथिविदथिVI. iv. 165 ...केन्य.. - III. iv. 14 कोः -VI. iil. 100 देखें - तवैकेन्केन्यत्वनः III. iv. 14 कु को (तत्पुरुष समास में अजादि शब्द उत्तरपद हो तो केवल... - IV.I. 30 कत् आदेश होता है)। देखें - केवलमामक IV. 1. 30 ...को: -VIII. ii. 29 केवलमामकमागधेयपापापरसमानार्यकृतसुमङ्गलभेषजात् देखें-स्को: VIII. ii. 29 -IV. 1.30 ...को: -VIII. iii.57 केवल, मामक, भागधेय, पाप, अपर, समान, आर्यकृत, देखें-इण्को : VIII. iii. 57 सुमाल तथा भेषज शब्दों से (संज्ञा तथा छन्द-विषय में कोटर... -VI. iii. 116 स्त्रीलिङ्ग में डीप प्रत्यय होता है); (अन्यत्र लौकिक प्रयोग देखें- कोटरकिंशुलकादीनाम् VI. iii. 116 विषय में इन शब्दों से टाप् ही होगा)। कोटरकिंशुलकादीनाम् - VI. iii. 116 केवलस्य - VII. ii. 5 (वन तथा गिरि शब्द उत्तरपद रहते यथासंख्य करके) । केवल (न्यग्रोध शब्द) के (अचों में आदि अच् को वृद्धि कोटरादि एवं किंशलकादि शब्दों को (सज्जाविषय में दीर्घ नहीं होती, किन्तु उसके य से पूर्व को ऐकार आगम तो होता है)। होता है)। ...कोटरा... - VIII. iv.4 ...केवला:-III. 48 देखें - पुरगामिश्रका० VIII. iv. 4 देखें - पूर्वकालैकसर्वजरत् II. 1. 48 ...कोप.. -VIII. 1.8 केवलात् - V. iv. 124 देखें - असूयासम्मति० VIII. 1. 8 केवल पूर्वपद से परे (जो धर्म शब्द, तदन्त बहुव्रीहि से । ....कोप.. -VIII. I. 103 देखें-असूयासम्मति VIII. 1. 103 अनिच् प्रत्यय होता है)। कोप: - I. iv. 37 केवलाभ्याम् - VII. 1.68 (क्रुध, द्रुह, ईर्घ्य तथा असूय अर्थों वाली धातुओं के केवल (स तथा दुर् उपसगों) से उत्तर (लम् धातु को प्रयोग में जिसके ऊपर) क्रोध व्यक्त किया जाये, (उस ख तथा घञ्प्रत्यय परे रहते नुम् आगम नहीं होता है)। कारक की सम्प्रदान संज्ञा होती है)। केश.. - IV. 1.47 कोपधात् - IV. 1.64 देखें-केशाश्वाभ्याम् IV. II. 47 (द्वितीयासमर्थ) ककार उपधावाले (सूत्रवाची) प्रातिप....केशवेशेषु - IV. 1.42 दिकों से (भी 'तदधीते तद्वेद' अर्थ में उत्पन्न प्रत्यय का देखें-वृत्यमत्रावपना IV.I. 42 लुक् होता है)। केशात् - V.i. 109 कोपधात् - IV.ii. 78 केश प्रातिपदिक से (मत्वर्थ में विकल्प से व प्रत्यय ककार उपधावाले प्रातिपदिक से (भी चातुरर्थिक अण होता है)। प्रत्यय होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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