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...कृय
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...कृज्य - III. I. 79
देखें-तनादिकश्यः III. 1.79 ...कृण्व्योः -II.1.80
देखें-धिन्विकृण्व्योः III. 1. 80 कृत् -I. 1. 38
कृत, (जो मकारान्त तथा एजन्त, तदन्त शब्दरूप की अव्यय संज्ञा होती है)। कत्... -I. 1.46
देखें-कृत्तद्धितसमासा: I. ii. 46 कृत् - III. 1. 93
(धातोः' सूत्र के अधिकार में कहे तिङ् से भिन्न प्रत्ययों की) कृत् संज्ञा होती है। कृत् - III. iv.67
(इस धातु के अधिकार में सामान्य विहित) कृत्संज्ञक प्रत्यय (कर्तृ कारक में होते है)। कृत्-VI. 1. 139
(गति, कारक तथा उपपद से उत्तर) कृदन्त उत्तरपद को (तत्पुरुष समास में प्रकृतिस्वर होता है)। ...कृत... -III. 1.21
देखें-मुण्डमिश्र III. 1.21 कृत... - IV. 11. 38
देखें-कृतलव्धकीत V.III. 38 कृत... -VII. ii. 57
देखें-कृतवृत० VII. 1.57 का:-v.ii.5 (तृतीयासमर्थ सर्वचर्मन् प्रातिपदिक से) किया हुआ अर्थ में (ख तथा खञ् प्रत् कृतवृतच्छदादनृतः -VII. ii. 57
कृती, घृती, उच्छृदिर, उतृदिर, नृती- इन धातुओं से उत्तर (सिज्मिन्न सकारादि आर्धधातुक को विकल्प से इट का आगम होता है)। कृतम् - IV. iv. 133
(तृतीयासमर्थ पूर्व प्रातिपदिक से) किया हुआ' अर्थ में (इन और य प्रत्यय होते है)।
कृतम् - VI. ii. 149 (इस प्रकार को प्राप्त हुये के द्वारा) किया गया' - इस अर्थ में (जो समास, वहाँ भी क्तान्त उत्तरपद को कारक से परे अन्तोदात्त होता है)। कृतलब्धक्रीतकुशला - IV. ill. 38
(सप्तमीसमर्थ प्रातिपदिक से) किया हुआ, पाया हुआ, खरीदा हुआ तथा कुशल अर्थों में (यथाविहित प्रत्यय होते है)। कृता -II..31
(समर्थ) कृदन्त (सुबन्त) के साथ (कर्ता और करणवाची तृतीयान्तों का बहुल करके तत्पुरुष समास होता है)। कृतादिभिः - II.i. 58
(श्रेणि आदि सुबन्त शब्द) कृत आदि (समानाधिकरण सुबन्त) शब्दों के साथ (विकल्प से समास को प्राप्त होते हैं और वह समास तत्पुरुषसंज्ञक होता है)।
कृति-II. iii. 65 ___ कृत् प्रत्यय का प्रयोग होने पर (अनभिहित कर्ता और कर्म कारक में षष्ठी विभक्ति होती है)। कृति -VI.1.69.
(हस्वान्त धातु को पित् तथा) कृत् प्रत्यय के परे रहते (तुक् का आगम होता है)। कृति - VI. ii. 50 .
(तु शब्द को छोड़कर तकारादि एवं नकार इत्सज्जक) कृत् प्रत्यय के परे रहते (भी अव्यवहित पूर्वपद गति को प्रकृतिस्वर होता है)। कृति - VI. iii. 13 (तत्पुरुष समास में) कृदन्त शब्द उत्तरपद रहते (बहुल करके सप्तमी का अलुक होता है)। कृति - VI. III. 71
कृदन्त उत्तरपद रहते (रात्रि शब्द को विकल्प करके मुम आगम होता है। कृति -VII. 1.8 (वशादि) कृत् प्रत्यग के परे रहते (इट का आगम नहीं होता)।