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इस कार्य को पूर्णता की ओर लाने में एक पूरी टीम का योगदान रहा। मैं सर्वाधिक स्नेह से वत्सकल्प प्रिय शिष्य डॉ. ओमनाथ बिमली, प्रवक्ता, संस्कृत विभाग, राजधानी कॉलिज, दिल्ली को स्मरण करता हूँ, प्रभु उसे सदा विद्या-व्यसन में लगाएँ। मेरे दो अन्य शिष्य प्रिय श्री वेदवीर एवं श्री अनिल कुमार भी साधुवाद के पात्र हैं। ये तीनों पाणिनि-शास्त्र के अद्भुत विद्वान् और संस्कृत का भविष्य हैं तथा 'विद्याभ्यसनं व्यसनम्' की उक्ति को चरितार्थ करते हैं। __इस कार्य में मेरे प्रिय अनुजकल्प डॉ. वागीश कुमार, आचार्य आर्ष गुरुकुल एटा ने प्रचुर सहायता की; वे सदा इसके प्रकाशन के लिए उत्सुक रहे । सुश्री डॉ. माया ए, चैनानी, अमेरिका; प्रिय डॉ. सत्यपालसिंह, प्रवक्ता संस्कृत विभाग, जाकिर हुसैन कॉलिज, दिल्ली, आयुष्मती डॉ. एच्. पूर्णिमा, प्रवक्ता संस्कृत विभाग, श्री शङ्कराचार्य यूनिवर्सिटी फ़ॉर संस्कृत, तिरुअनन्तपुरम् केन्द्र एवं डॉ. कु. निशा गोयल ने भी मुझे अपने-अपने ढंग से सहयोग दिया है। मैं इन सबके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ।
अपनी सहधर्मिणी सुश्री उर्मिलाकुमारी एवं प्रिय आत्मजों चि. सुधांशु और चि. हिमांशु को मेरे स्नेहाशीः। ___ ग्रन्थ के सुन्दर प्रकाशन के लिए श्री. कन्हैयालाल जोशी, स्वामी परिमल पब्लिकेशन्स, दिल्ली धन्यवाद के पात्र हैं । कम्पोजिंग एवं प्रिण्टिंग के लिए एकनिष्ठ संलग्न होकर काम करने वाले चि. हिमांशु जोशी को मैं स्नेहाशीः देता हूँ, प्रभु करें कि वह अपने जीवन में प्रगति के उच्चतम शिखर पर पहुँचे।
- -अवनीन्द्र कुमार