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करणे
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कतरि
करणे-III. ii. 56
करोते: -VI. iv. 108 (व्यर्थ में वर्तमान, अच्चिप्रत्ययान्त आढ्य, सुभग, (वकारादि अथवा मकारादि प्रत्यय परे रहते) क अङ्ग से स्थूल,पलित,नग्न,अन्ध तथा प्रिय कर्म उपपद रहते कृ उत्तर (उकार प्रत्यय का नित्य ही लोप हो जाता है)। धातु से) करण कारक में (ख्यन प्रत्यय होता है)। करोती-v.i. 132 करणे-III. ii. 85
(भूषण अर्थ में सम् तथा परि उपसर्ग से उत्तर) कृ धातु करण कारक उपपद रहते (यज् धातु से 'णिनि' प्रत्यय
के परे रहते (ककार से पूर्व सुट का आगम होता है,संहिता
के विषय में)। होता है, भूतकाल में)। करणे -III. ii. 182
कर्कलोहितात् - V. iii. 10
कर्क तथा लोहित प्रातिपदिकों से (इवार्थ में ईकक प्रत्यय (दाप,णीज,शसु,यु,युज.ष्टुञ, तु,षि, षिचिर, मिह,
होता है)। पत्लु, दंश,णह - इन धातुओं से) करण कारक में (ष्ट्रन
...कर्ण... - IV.i.55 प्रत्यय होता है)।
देखें-नासिकोदरौष्ठ० IV. 1.55 करणे -III. iii. 82
...कर्ण... - IV. 1.64 (अयस, वि तथा द्रु उपपद रहते हन् धातु से) करण
देखें-पाककर्णपर्ण IV.i.64 कारक में (अप् प्रत्यय होता है तथा हन् के स्थान में
...कर्ण... - IV.ii.79 घनादेश भी होता है)।
देखें- अरीहणकृशाश्व० IV. ii. 79 करणे-III. iv. 37
कर्ण... - IV. iii. 65 करण कारक उपपद हो तो (हन् धातु से णमुल प्रत्यय
देखें-कर्णललाटात् IV. iii. 65 होता है)।
कर्णः -VI. ii. 112 ...करत्... -VIII. iii. 50
(बहतीहि समास में वर्णवाची तथा लक्षणवाची से परे देखें -क: करत्करति० VIII. iii. 50
उत्तरपद) कर्ण शब्द को (आधुदात्त होता है)। ......करति... - VIII. iii. 50
...कर्णयोः -III. ii. 13 देखें-क: करत्करति० VIII. iii. 50
देखें - स्तम्बकर्णयोः III. ii. 13 करभे-v.i1.79
कर्णललाटात् - IV. iii. 65 (प्रथमासमर्थ शृङ्खल प्रातिपदिक से षष्ठ्यर्थ में कन् (सप्तमीसमर्थ) कर्ण तथा ललाट शब्दों से (भव अर्थ में प्रत्यय होता है। यदि वह प्रथमासमर्थ बन्धन बन रहा हो,
___ आभूषण अभिधेय हो तो कन् प्रत्यय होता है)। तथा) जो षष्ठी से निर्दिष्ट हो वह करभ = ऊँट का छोटा
...कर्णादिभ्यः -v.ii. 24 बच्चा हो तो।
देखें-पील्वादिकर्णादिभ्य: V. ii. 24 करिक्रत् - VII. iv. 65
...कर्णीषु - VIII. iii. 46 रिक्रत् शब्द (वद-विषय मनिपातन किया जाता है। देखें-कृकमि० VIII. iii. 46 ...करीपेषु -III. ii. 42
कर्णे-VI. iii. 114 देखें-सर्वकूला III. ii. 42
कर्ण शब्द उत्तरपद रहते (विष्ट,अष्टन,पञ्चन,मणि,भिन्न, करे - IV. iv. 143
छिन्न, छिद्र, सुव, स्वस्तिक - इन शब्दों को छोड़कर (षष्ठीसमर्थ शिव, शम और अरिष्ट प्रातिपदिकों से) लक्षणवाची शब्दों के अण को दीर्घ होता है.संहिता के 'करने वाला' अर्थ में (स्वार्थ में तातिल प्रत्यय होता है)। विषय में)। . करोति - IV. iv. 34
कर्तरि -I. iii. 14 (द्वितीयासमर्थ शब्द और दर्दुर प्रातिपदिकों से) करता (क्रिया के व्यतिहार अर्थात् अदल बदल करने अर्थ में) . है' अर्थ में (ठक् प्रत्यय होता है)।
कर्तवाच्य में (धात से आत्मनेपद होता है)।