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________________ . xvi संस्कृत-व्याकरण को उद्देश्य कर भी 'डिक्शनरी ऑव् संस्कृत ग्रामर (के. सी. चटर्जी) एक उपयोगी और प्रामाणिक ग्रन्थ है; इसमें संस्कृत व्याकरण में बहुधा प्रयोग में आने वाले शब्दों एवं तकनीकी पदों को स्पष्टतया विस्तार से सोदाहरण व्याख्यायित किया गया है । पाणिनीय अष्टाध्यायी को उद्देश्य बनाकर भी जर्मन-देशीय बोथलिंग ने जर्मन-भाषा में सूत्रानुवाद-टिप्पणादि से संवलित पर्याप्त समय पूर्व एक कोश प्रकाशित किया था। यद्यपि अत्यन्त प्रयत्नसाध्य कार्य उन्होंने सम्पादित किया था; परन्तु उनके द्वारा अपनायी गई पद्धति भाषा के अतिरिक्त भी सामान्यतया दुरवगाह्य ही थी। उसके बाद भण्डारकार ऑरियण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट से १९३५ में महामहोपाध्याय वेदान्तवागीश श्रीधरशास्त्री पाठक एवं विद्यानिधि सिद्धेश्वरशास्त्री चित्राव के द्वारा पाणिनि के पञ्चाङ्गों, कात्यायन के वार्तिक पाठ के, साथ एक कोष प्रकाश में आया । यद्यपि इस की अपनी सीमाएँ हैं, पर यह कई दृष्टियों से अत्यन्त उपयोगी कहा जायेगा। इसमें किसी शब्द का अर्थ तो नहीं है, मात्र सूत्रों की संख्या का निर्देश कर दिया है; कहीं-कहीं कोई-कोई पद स्खलित भी हो गया प्रतीत होता है; परन्तु इसमें यथासम्भव प्रामाणिक संस्करणों से वार्तिकस्थगणपाठपदसूची, शाकटायनसाधित शब्द, फिट्सूत्रकोश, सवार्तिक अष्टाध्यायीसूत्रपाठ, कैयटायुक्त परिशिष्टवार्त्तिक, वर्णानुक्रम से अन्तर्गणसूत्र, शाकटायनप्रणीत उणादि-सत्रपाठ. उणादि सत्रस्थ गण तथा अन्य अनेकविध उपयोगी सामग्री संकलित की गई है। इस प्रकार यह निस्सन्देह एक उपयोगी कोश है । इसके उपरान्त तीन भागों में आचार्यप्रवर सुमित्र मङ्गेश को के द्वारा डिक्शनरी ऑव् पाणिनि का डैकन कॉलिज पूना से १९६८ में प्रकाशन हुआ। यह कोश अनेक दृष्टियों से उपयोगी है। अकारादिक्रम से पाणिनि-शास्त्र में प्रयुक्त सभी पदों का अर्थ आंग्ल भाषा में दिया गया है; इसके साथ ही कोष्ठक में पाणिनि-सूत्रों से निष्पन्न उदाहरणों को भी पूरी तरह से समझाने का प्रयत्न किया है । यथासम्भव पाणिनि की सूत्र-शैली का आश्रय लेते हुए आचार्यप्रवर को जी ने इसे अत्यन्त उपयोगी बनाया है। प्रस्तत कोश इन दोनों कोशों से कई रूपों में भिन्न है । इस कोश में प्रत्येक पद के अर्थ को सम्पूर्ण सूत्र के सन्दर्भ में व्याख्यायित करने का प्रयास किया है। इससे यह तो हुआ है कि यदि एक सूत्र में ३,४ पद हैं तो उस सूत्र का अर्थ ३,४ स्थलों पर मिलेगा; पर उससे पद के सही अर्थ को पाणिनि के इष्ट परिप्रेक्ष्य में देखने का अवसर मिलेगा; अन्यथा मात्र पद का अर्थ देने पर तो 'वृद्धि' पद से आ, ऐ, औ (आदेच्) और 'च' पद से समुच्चय, अन्वाचय, इतरेतरयोग एवं समाहार अनेक अर्थों के होने पर भी और, एवं आदि अर्थों को ही व्यक्त किया जा पाता। प्रस्तुत कोश में यह भी प्रयत्न किया गया है कि लम्बे लम्बे समासयुक्त पदों को अलग से दिखा दिया गया है। यदि किसी जिज्ञासु को मध्यगत भी किसी पद का स्मरण होता है तो वह उसके आधार. पर पूर्ण समासयुक्त पद को पाकर अर्थ अथवा प्रसंगज्ञान कर सकता है । प्रस्तुत कोश की रचना में अष्टाध्यायी के श्री. रामलाल कपूर ट्रस्ट, बहालगढ़, सोनीपत द्वारा प्रकाशित संस्करण के आधार पर संख्या दी गई है। अर्थ की अभिव्यक्ति के लिए प्रमुख आधार प० ब्रह्मदत्त जिज्ञासुप्रणीत अष्टाध्यायी-भाष्य (प्रथमावृत्ति), वामनजयादित्यप्रणीत काशिका एवं कहींकहीं चौखम्बा से आचार्य श्रीनारायणमिश्र द्वारा सम्पादित आभा-भाषावृत्तियुक्त अष्टाध्यायीसूत्रपाठ
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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