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उपदंश
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उपधायाः
उपदंश -III. iv.47
(तृतीयान्त शब्द उपपद रहते) उपपूर्वक दंश् धातु से (णमुल् प्रत्यय होता है)। ...उपदा-V.1.46
देखें-वृद्ध्यायलाभOV.I.46 .उपदेशे-I.ili.2
उपदेश में वर्तमान (अनुनासिक अच् इत्सजक होता
- जिस मन्त्र को बोलकर ईंटों की वेदी बनाई जाये.वह उपधान मन्त्र कहलाता है। . उपधायाः-VI. iv.7 (नकारान्त अङ्गकी) उपधा को (नाम परे रहते दीर्घ होता
.46
उपदेश= अष्टाध्यायी, धातुपाठ, उणादिकोष, गणपाठ, लिंगानुशासन। उपदेशे-VI.1.44
उपदेश अवस्था में (जो एजन्त धातु,उसको आकारादेश हो जाता है,शित्प्रत्यय परे हो तो नहीं होता)। उपदेशे-VI. iv. 62
(भाव तथा कर्म-विषयक स्य.सिच.सीयट और तास के परे रहते) उपद्रेश में (अजन्त धातुओं तथा हन, ग्रह एवं दृश् धातुओं को चिण के समान विकल्प से कार्य होता है तथा इट् आगम भी होता है)। उपदेशे-VII. ii. 10
उपदेश में (एक अच् वाले तथा अनुदात्त धातु से उत्तर इट का आगम नहीं होता)। उपदेशे-VII. 1. 62 .
उपदेश में (जो धातु अकारवान् और तास् के परे रहते नित्य अनिद, उससे उत्तर थल् को तास् के समान ही इट्
आंगम नहीं होता)। उपदेशे-VIII. iv. 18
(उपसर्ग में स्थित निमित्त से उत्तर जो) उपदेश में (ककार तथा खकार आदिवाला नहीं है,एवं षकारान्त भी नहीं है, ऐसे शेष धातु के परे रहते नि के नकार को विकल्प से णकारादेश होता है)। ...उपघयोः - VI. iv. 47
देखें-रोपधयो: VI. iv.47 उपधा-I.i.64 (अन्त्य अल से पूर्व अल की) उपधासंज्ञा होती है। उपयानः - IV. iv. 125
उपधान मन्त्र (समानाधिकरण प्रथमासमर्थ मतुबन्त) प्रातिपदिक से (षष्ठ्यर्थ में यत् प्रत्यय होता है,तथा मतुप का लुक भी हो जाता है, वेद-विषय में)।
उपधायाः -VI. iv. 20
(ज्वर त्वर,त्रिवि अव.मव-इन अङ्गों के वकार तथा) उपधा के स्थान में (ऊछ आदेश होता है. क्विप तथा झलादि एवं अनुनासिकादि प्रत्ययों के परे रहते)। उपधायाः -VI. iv. 24
(इकार जिसका इत्सज्ज्ञक नहीं है, ऐसे हलन्त अङ्गकी) उपधा के (नकार का लोप होता है; कित.डित् प्रत्ययों के परे रहते)। उपधाया-VI. iv.87 (गोह अङ्गकी) उपधा को (सकारादेश होता है, अजादि प्रत्यय परे रहते)। उपधायाः -VI. iv. 149
(भसज्ज्ञक अङ्ग की) उपधा (यकार का लोप होता है, ईकार तथा तद्धित के परे रहते; यदि वह य सूर्य, तिष्य अगस्त्य तथा मत्स्य-सम्बन्धी हो)। उपधाया -VII. I. 101
(धातु अङ्गकी) उपधा के (ऋकार के स्थान में भी इकारादेश होता है)। उपधाया -VII. I. 116
(अङ्गकी) उपधा के (अकार के स्थान में वृद्धि होती है। जित,णित् प्रत्यय परे रहते)। उपधायाः -VII. iv.1
(चङ्परक णि के परे रहते अङ्गकी) उपधा को (हस्व होता है)। उपधाया -VIII. 1.9
(यवादिशब्दवर्जित मकारान्त एवं अवर्णान्त तथा मकार एवं अवर्ण) उपधा वाले प्रातिपदिक से उत्तर (मतुप को वकारादेश होता है)। उपधाया - VIII. 1.76
(रेफान्त तथा वकारान्त जो धातु पद, उसकी) उपधा (इक्) को (दीर्घ होता है)।