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उद्विभ्याम्
उदि -III. iii. 49
...उदेजि-III. 1. 138 उत् पूर्वक (श्रि,यु.पू तथा द्रु धातुओं से कर्तृभिन्न कारक देखें - लिम्पविन्द III. 1. 138 संज्ञा तथा भाव में घन प्रत्यय होता है)।
...उदोः -III. iii. 26 ...उदित् -I. 1. 68
देखें-अवोदोः III. iii. 26 देखें - अणुदित् I. 1. 68
....उदो: -III. iii.69 उदितः -VII. 1.56
देखें-समुदोः III. iil.69 उकार इत्सज्जक धातुओं से उत्तर (क्त्वा प्रत्यय को
उद्गमने -I. iii. 40 विकल्प से इट् आगम होता है)।
उद्मन = उदय होना अर्थ में (आपूर्वक क्रम धातु से उदीचाम् -III. iv. 19
आत्मनेपद होता है)। (व्यतीहार अर्थ वाली मेङ् धातु से) उदीच्य आचार्यों के .....उन्मात्रादिभ्यः -V.I. 128 मत में (क्त्वा प्रत्यय होता है)। .
देखें-प्राणभृज्जातिवयोov.i. 128 उदीचाम् -IV.i. 130
उद्घन: -III. iii. 80 उत्तरदेश निवासी आचार्यों के मत में (गोधा प्रातिपदिक उद्घन शब्द में उत् पूर्वक हन् धातु से अप प्रत्यय तथा
हन् को घनादेश निपातन किया जाता है, (अत्याधान से आरक् प्रत्यय होता है)।
अर्थात् काष्ठ के नीचे रखा हुआ काष्ठ वाच्य हो तो, उदीचाम् - V.i. 152
कर्तृभिन्न कारक संज्ञाविषय में)। उदीच्य आचार्यों के मत में (सेनान्त प्रातिपदिकों,लक्षण..उद्घौ - III. 1. 86 शब्द तथा शिल्पीवाची प्रातिपदिकों से अपत्य अर्थ में इञ् देखें - संघोद्घौ III. iii. 86 प्रत्यय होता है)।
उद्धृतम् - IV.ii. 13 उदीचाम् -IV.i. 157
सप्तमीसमर्थ पात्रवाची प्रातिपदिकों से भोजन के (गोत्र से भिन्न जो वृद्धसंज्ञक प्रातिपदिक,उससे) उदीच्य पश्चात् अवशिष्ट अर्थ में (यथाविहित अण् प्रत्यय होता आचार्यों के मत में (फिञ् प्रत्यय होता है)। उदीचाम् -VII. iii: 46
...उद्ध्यो -III. 1. 114 उदीच्य आचार्यों के मत में (यकारपूर्व एवं ककारपूर्वदेखें-भिद्योद्ध्यौ III. 1. 114 आकार के स्थान में जो अकार,उसके स्थान में इकारादेश ..उद्भ्याम् -VII. ill. 117 नहीं होता)।
देखें- इदुद्भ्याम् VII. ifi. 117 उदीचाम् - VI. iii. 31
....उद्याव.. - IIL iii. 122 उदीच्य आचार्यों के मत में (मातरपितरौ शब्द निपातन देखें - अध्यायन्याय III. iii. 122 किया जाता है)।
उद्वमने -III.1.16 उदीच्यग्रामात् - IV. 1. 108
उद्वमन अर्थ में (वाष्प और ऊष्म कर्म से क्यङ् प्रत्यय उत्तर दिशा में होने वाले ग्रामवाची (अन्तोदात्त बहद अच् वाले) प्रातिपदिकों से (भी अञ् प्रत्यय होता है)। उद्वमन = उगलना। .....उदुपयस्य - VIII. iii. 41
उद्विभ्याम् -1.11.27 देखें-इदुदुपधस्य VIII. iii. 41
उत् तथा वि उपसर्ग से उत्तर (अकर्मक तप् धातु से उदुपधात् - I. ii. 21
- आत्मनेपद होता है)। , उकार उपधा वाली धातु से परे (भाववाच्य तथा आदि उद्विभ्याम् -v.iv. 148
कर्म में वर्तमान सेट् निष्ठा प्रत्यय विकल्प करके कित् नहीं उत तथा वि से उत्तर (काकुद शब्द का समासान्त लोप होता है)
होता है, बहुव्रीहि समास में)।