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उदात
उदात - III. Iv. 103
(परस्मैपद-विषयक लिङ् लकार को यासुट् का आगम होता है और वह उदात्त (और ङिद्वत् भी) होता है। उदात - IV. 1. 37
(वृषाकपि, अग्नि, कुसित, कुसीद - इन अनुपसर्जन प्रातिपदिकों को स्त्रीलिङ्ग में) उदात्त (ऐकारादेश हो जाता है तथा ङीप् प्रत्यय होता है)।
उदास - V. 1. 44
(प्रथमासमर्थ उभ प्रातिपदिक से उत्तर षष्ठ्यर्थ में नित्य ही तयप के स्थान में अयच् आदेश होता है और वह अयच् आदि) उदात्त होता है।
उदात्तः - VI. 1. 153
(कृष विलेखने' धातु तथा आकारावान् घञन्त शब्द के अन्त को) उदास होता है।
116
उदात्त - VI. 11. 64
(यहाँ से आगे जो कुछ कहेंगे, उसके आदि को उदात्त होता है (यह अधिकार है)।
उदाक्तः - VI. 1. 71
(लुङ लङ् तथा लृङ् के परे रहते अङ्ग को अट् का आगम होता है, और वह अटू) उदात्त (भी) होता है। उदात्त - IV. Iv. 108
(सप्तमीसमर्थ समानोदर प्रातिपदिक से 'शयन किया हुआ' अर्थ में यत् प्रत्यय होता है, तथा समानोदर शब्द के ओंकार को) उदात्त होता है।
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उदात्तः - VII. 1. 75
(नपुंसकलिंग वाले अस्थि, दधि, सक्थि, अक्षि- इन अङ्ग को तृतीयादि अजादि विभक्तियों के परे रहते अनङ् 'आदेश होता है और वह) उदात्त होता है।
उदात - VII. 1. 98
(चतुर तथा अनडुह अनों को सर्वनामस्थान विभक्ति परे रहते आम् आगम होता है और वह) उदात्त होता है। उदात्तः - VIII. 11. 5.
(उदात्त के साथ जो अनुदात्त का एकादेश वह) उदात्त होता है।
उदात्तः - VIII. 1. 82
(यह अधिकार सूत्र है, पाद की समाप्तिपर्यन्त सर्वत्र वाक्य के टि भाग को प्लुत) उदात्त होता है, (ऐसा अर्थ होता जायेगा ।
उदि
उदात्तम् - I. 1. 32
(उस स्वरित गुण वाले अच् के आदि की आधी मात्रा) उदात्त (और शेष अनुदात्त होती है। उदात्तयणः - VI. 1. 168
(हल् पूर्व में है जिसके ऐसा) जो उदात्त के स्थान में यण, उससे परे (नदीसञ्ज्ञक प्रत्यय तथा अजादि सर्वनामस्थानभिन्न विभक्ति को उदात्त होता है)।
उदात्तलोपः - VI. 1. 155
(जिस अनुदात्त के परे रहते) उदात्त का लोप होता है, ( उस अनुदात्त को भी आदि उदात्त हो जाता है)। उदात्तवति - VIII. 1. 71
उदात्तवान् (तिङन्त) के परे रहते (भी गतिसञ्ज्ञक को अनुदात्त होता है)।
उदात्तस्वरितपरस्य - I. ii. 40
उदात्तपरक तथा स्वरितपरक (अनुदात्त) को (सन्नतर अर्थात् अनुदात्ततर आदेश हो जाता है)। उदात्तस्वरितयोः - VIII. 1. 4
उदात्त तथा स्वरित के स्थान में वर्तमान (यण् से उत्तर अनुदात्त के स्थान में स्वरित आदेश होता है)। उदात्तस्वरितोदयम् - VIII. iv. 66
उदात्त उदय = परे है जिससे, एवं स्वरित उदय परे है जिससे ऐसे (अनुदात्त) को (स्वरित आदेश नहीं हो; गार्ग्य, काश्यप तथा गालव आचार्यों के मत को छोड़कर) । उदात्तात् - VIII. iv. 65
उदात्त से उत्तर (अनुदात्त को स्वरित आदेश होता है)। - VIII. 11. 5 उदात्तेन
उदात्त के साथ (जो अनुदात्त का एकादेश, वह उदात्त होता है)।
उदात्तोपदेशस्य - VII. iii. 34
उपदेश में उदात्त (तथा मकारान्त) धातु को (चिण् तथा जित् णित् कृत् परे रहते वृद्धि नहीं हो, आङ्पूर्वक चम् धातु को छोड़कर) ।
3f-III. ii. 31
'उत् पूर्वक (रुज्' और 'वह' धातुओं से 'कूल' कर्म उपपद रहने पर 'ख' प्रत्यय होता है) 3f-III. in. 35
. उत् पूर्वक (मह् धातु से कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में व् प्रत्यय होता है)।