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उत्तरपदे
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उत्तरपदे - VI. iil.1
....उत्पच... - III. ii. 136 (अलुक्' तथा) 'उत्तरपदे'- पद का अधिकार आगे के देखें - अलंकृञ् III. I. 136 ... .. सूत्रों में जाता है, अतः यह अधिकार सूत्र है। ...उत्पत... - III. ii. 136 ...उत्तरम् -II. 1.1
देखें- अलंकृञ् III. ii. 136 देखें-पूर्वापराघरोत्तरम् II. ii. 1
...उत्पत्तिषु-III. iii. 111 उत्तरम् - VII. iii. 25
देखें- पर्यायाहोत्पत्तिषु III. iii. 111 (जङ्गल, धेनु तथा वलज अन्तवाले अङ्ग के पूर्वपद के ...उत्पातौ -v.i.37 अचों में आदि अच् को वृद्धि होती है तथा इन अङ्गों का) देखें - संयोगोत्पातौ v.i.37 । उत्तरपद (विकल्प से वृद्धिवाला होता है; जित,णित, कित्
उत्पुच्छे -VI. ii. 196 . तद्धित परे रहते)।
(तत्पुरुष समास में) उत्पुच्छ शब्द को (विकल्प से ...उत्तरम् - VIII. 1. 48
अन्तोदात्त होता है)। देखें -चिदुत्तरम् VIII. 1.48 उत्तरमृगपूर्वात् - V. iv.98
उत्पूतिसुसुरभिभ्यः - V. iv. 135 उत्तर, मृग और पूर्व (तथा उपमानवाची शब्दों) से उत्तर उत्,पूति,सु तथा सुरभि शब्दों से उत्तर (गन्ध शब्द को (भी जो सक्थि शब्द, तदन्त तत्पुरुष से समासान्त टच बहव्रीहि समास में समासान्त इकारादेश होता है)। ... प्रत्यय होता है)।
उत्वद्... -IV. iii. 148 - उत्तरस्य -I.1.66 ...
देखें- उत्वद्वद्धo IV. iii. 148 (पञ्चमी विभक्ति से निर्दिष्ट होने पर) उत्तर को कार्य
उत्वद्वर्धबिल्वात् - IV. iii. 148 होता है।
उकारवान् व्यच षष्ठीसमर्थ प्रातिपदिक. वर्ध तथा उत्तरस्य-VIII. 1. 107
बिल्व शब्दों से (वेद-विषय में मयट प्रत्यय नहीं होता)। (दूर से बुलाने के विषय से भिन्न विषय में अप्रगृह्य
उत्सङ्गादिभ्यः - IV. iv. 15 सजक एच के पूर्वार्द्ध भाग को प्लुत करने के प्रसङ्ग में आकारादेश होता है तथा उत्तरवाले भाग को (इकार,उकार
(तृतीयासमर्थ) उत्सङ्गादि प्रातिपदिकों से (हरति आदेश होते है)।
= स्थानान्तर प्राप्त करता है अर्थ में ठक् प्रत्यय होता है)। उत्तरात् - V.ii. 38
उत्सङ्ग = गोद । (दिशा,देश तथा काल अर्थों में वर्तमान पञ्चम्यन्तवर्जित ...उत्सञ्जन... -I. iii. 36 सप्तमी, प्रथमान्त दिशावाची) उत्तर शब्द से (भी आच् देखें-सम्माननोत्सञ्जना० I. iii. 36 और आहि प्रत्यय होते हैं,दूरी वाच्य हो तो)।
उत्सादिभ्यः -IV.i.86 उत्तराधरदक्षिणात् - V. iii. 34
उत्सादि (समर्थ प्रातिपदिकों से (प्राग्दीव्यतीय अर्थों में दिशा. देश तथा काल अर्थों में वर्तमान सप्तम्यन्त, अब प्रत्यय होता है)। पञ्चम्यन्त तथा प्रथमान्त दिशावाची) उत्तर, अधर और .
उत्स= झरना, फव्वारा, स्रोत। .. दक्षिण प्रातिपदिकों से (आति प्रत्यय होता है)।
...उत्सुक... - VI. iii. 98 ...उत्तराभ्याम् - V. iii. 28
देखें-आशीराशा. VI. iii. 98 देखें - दक्षिणोत्तराभ्याम् V. ii. 28
...उत्सुकाभ्याम् -II. iii. 44 ...उत्तरेद्युः - v. iii. 22
देखें-प्रसितोत्सुकाभ्याम् II. iii. 44 देखें- सद्य:परुत्० . ii. 22
उदः -I. iii. 24 उत्तरेषु-VIII. 1. 11
(यहाँ से) आगे द्विर्वचन करने में कर्मधारय समास के उत् उपसर्गपूर्वक (स्था' धातु से आत्मनेपद होता है. समान कार्य होते हैं,ऐसा जानना चाहिये)।
अनूर्ध्वकर्म अर्थात् ऊपर उठने अर्थ में वर्तमान न हो तो)।