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... अत्कृष्ट
... उत्कृष्ट - II. 1. 60
देखें - सन्महत्परमोत्तo II. 1. 60
... उत्तचित... - VII. II. 34
देखें - प्रसितस्कभित० VII. ii. 34
... उत्तम... - II. 1. 60
देखें - सन्महत्परमो० II. 1. 60
उत्तम.....
V. iv. 90
देखें - उत्तमैकाभ्याम् Viv. 90
उत्तम:
(परिहास गम्यमान हो रहा हो तो भी मन्य है उपपद जिसका, ऐसी धातु से युष्मद् उपपद रहते समान अभिधेय होने पर युष्मद् शब्द का प्रयोग हो या न हो, तो भी मध्यम पुरुष हो जाता है तथा उस मन् धातु से) उत्तम पुरुष हो जाता है, और उत्तम पुरुष को एकत्व हो जाता है)।
उत्तम:
I. iv. 106
(अस्मद् शब्द उपपद रहते समान अभिधेय हो, तो अस्मत शब्द प्रयुक्त हो या न हो, तो भी) उत्तम पुरुष हो जाता है।
उत्तम:
VI. 1. 91
उत्तम पुरुष-सम्बन्धी (ल् प्रत्यय विकल्प से णित्वत् होता है)।
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- I. iv. 105
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... उत्तमपूर्वात् - IV. 1.5
देखें - परावराधमो० IV. III. 5
उत्तमर्णः
I. iv. 35
(णिजन्तत्र धातु के प्रयोग में) जो उत्तमर्ण ऋण देने वाला, वह (कारक सम्प्रदानसंज्ञक होता है)।
उत्तमस्य
III. iv. 92
· (लोट् सम्बन्धी) उत्तम पुरुष को (आट् का आगम हो जाता है, और वह उत्तम पुरुष पित् भी माना जाता है)।
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उत्तमस्य
III. iv. 98
(लोट् सम्बन्धी) उत्तम पुरुष के (सकार का लोप विकल्प से हो जाता है।
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... उत्तमाः
I. iv. 100
देखें - प्रथममध्यमोत्तमाः I. Iv. 100
113
उत्तमैकाभ्याम् – V. iv. 90
"उत्तम और एक शब्दों से परे (भी तत्पुरुष समास में अहन् शब्द को अह्न आदेश नहीं होता) ।
... उत्तर... - I. 1. 33
देखें पूर्वपरावरदक्षिणोत्तरापराधराणि I. 1. 33
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उत्तर... - V. iii. 34
देखें - उत्तराधरo Viii. 34
उत्तर...
V. iv. 98
देखें उत्तरमृगपूर्वात् V. Iv. 98
उत्तरपचेन - V. 1. 76
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तृतीयासमर्थ उत्तरपथ प्रातिपदिक से (लाया हुआ' अर्थ में तथा 'जाता है' अर्थ में यथाविहित ठञ् प्रत्यय होता है)।
... उत्तरपद... - II. 1. 50
देखें - तद्धितार्थोत्तरपद० II. 1. 50
उत्तरपदे
उत्तरपदभूग्नि - VI. ii. 175
उत्तरपदार्थ के बहुत्व को कहने में वर्तमान (बहुशब्द से नम् के समान स्वर होता है)।
... उत्तरपदयोः - VII. ii. 98 देखें – प्रत्ययोत्तरपदयोः VII. ii. 98 उत्तरपदलोपः - V. iii. 82
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(अजिन शब्द अन्त वाले मनुष्य नामधेय प्रातिपदिक से 'अनुकम्पा' गम्यमान होने पर कन् प्रत्यय होता है, और उस अजिनान्त शब्द के) उत्तरपद का लोप (भी) हो जाता है।
उत्तरपदवृद्ध - VI. II. 105
'उत्तरपदस्य' VII. iii. 10 के अधिकार में कहे गये सूत्रों के द्वारा जो वृद्धि सम्पादित, उस वृद्धि किये हुये शब्द के परे रहते (सर्वशब्द तथा दिक्शब्द पूर्वपद को अन्तोदात्त होता है)।
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उत्तरपदस्य - VII. iii. 10
'उत्तरपदस्य' यह अधिकार सूत्र है; 'हनस्तोऽचिण्णलो ' VII. ii. 32 से पूर्व तक जायेगा ।
उत्तरपदात् - VI. 1. 163
(अनित्य समास में अन्तोदात्त एकाच्) उत्तरपद से आगे (तृतीयादि विभक्ति विकल्प से उदात्त होती है)। उत्तरपदादि - VI. II. 111
यह अधिकार सूत्र है। यह जहाँ तक जायेगा वहाँ तक उत्तरपद के आदि को उदात्त होता जायेगा।
उत्तरपदे - VI. ii. 142
(देवतावाची द्वन्द्व समास में अनुदात्तादि) उत्तरपद रहते (पृथिवी, रुद्र, पूषन्, मन्थी को छोड़कर एक साथ पूर्व तथा उत्तरपद को प्रकृति स्वर नहीं होता) ।