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आवहति
आवहति - V. 1. 49 (वंशादिगणपठित प्रातिपदिकों से उत्तर जो भार शब्द, तदन्त द्वितीयासमर्थ प्रातिपदिक से 'हरण करता है', वहन करता है' और) 'उत्पन्न करता है' अर्थ में (यथाविहित प्रत्यय होता है)।
. आवहानाम् - VIII. ii. 91
...
देखें - ब्रूहिप्रेष्यo VIII. ii. 91 .....आविदूर्ययोः
- VIII. iii. 68
देखें - आलम्बनाविदूर्ययोः VIII. iii. 68 आविदुर्ये VII. ii. 25
(अभि उपसर्ग से उत्तर भी) सन्निकट अर्थ में (अर्द धातु से निष्ठा परे रहते इट् आगम नहीं होता) । ...आवौ VII. ii. 92
देखें - युवायौ VII. ii. 92
....आशङ्कयोः - IIi. iv. 8
देखें - उपसंवादाशङ्कयोः III. iv. 8 आशङ्का... - VI. ii. 21
देखें - आशङ्काबाध० VI. ii. 21
आशङ्काबाघनेदीयस्सु - VI. 1. 21
आशङ्क, आबाध तथा नेदीयस् शब्दों के उत्तरपद रहते (सम्भावनवाची तत्पुरुष समास में पूर्वपद को प्रकृतिस्वर हो जाता है)।
... आशंस... - III. ii. 168
देखें - सनाशंस० III. ii. 168
आशंसायाम् -III. iii. 132
आशंसा गम्यमान होने पर (धातु से भविष्यत्काल में विकल्प से भूतकाल के समान तथा वर्तमान काल के समान भी प्रत्यय हो जाते है)।
आशंसावचने - III. iii. 134
आशंसावाची शब्द उपपद हो तो (धातु से लिङ् प्रत्यय होता है।
... आशा... - VI. iii. 98
देखें - आशीराशा० VI. iii. 98
आशितः
- VI. i. 201
(कर्तृवाची) आशित शब्द को (आद्युदात्त होता है)।
... आशितङ्गु... - V. iv. 7
-314580 V. iv. 7
-III. ii. 45
आशित सुबन्त उपपद रहते (भू धातु से करण और भाव में खच् प्रत्यय होता है)।
1
देखें आशिते
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आशीर्
आशिषि - II. iii. 55
आशीर्वचन अर्थ में (नाथ' धातु के कर्मकारक में शेष की विवक्षा होने पर षष्ठी विभक्ति होती है)। आशिषि - - II. iii. 73
आशीर्वाद गम्यमान हो तो (आयुष्य, मद्र, भद्र, कुशल, सुख, अर्थ, हित- इन शब्दों के योग में शेष विवक्षित होने पर चतुर्थी विभक्ति विकल्प से होती है, चकार से पक्ष में षष्ठी भी होती है) 1
आशिषि - III. 1. 86
आशीर्विषयक (लिङ्) परे रहते (धातु से अङ् प्रत्यय होता है, वेद-विषय में) ।
आशिषि - III. 1. 150
आशीर्वाद अर्थ गम्यमान हो तो (भी धातुमात्र से वुन् प्रत्यय होता है) ।
आशिषि - III. ii. 49
आशीर्वचन गम्यमान होने पर (हन् धातु से कर्म उपपद रहते ड प्रत्यय होता है) ।
आशिषि - III. iii. 173
आशीर्वाद विशिष्ट अर्थ में वर्तमान (धातु से लिङ् तथा लोट् प्रत्यय होते हैं)।
1
आशिषि - III. iv. 104
आशीर्वाद अर्थ में विहित (परस्मैपदसंज्ञक लिङ् को यासुट् आगम होता है, वह कित् और उदात्त होता है)। आशिषि - III. iv. 116
आशीर्वाद अर्थ में (जो लिंङ, वह आर्धधातुकसंज्ञक होता है)।
आशिषि - VI. ii. 148
(सञ्ज्ञाविषय में) आशीर्वाद गम्यमान हो तो (कारक से उत्तर दत्त तथा श्रुत क्तान्त शब्दों को ही अन्तोदात्त होता है) ।
आशिषि - VII. 1. 35
आशीर्वाद विषय में (तु और हि के स्थान में तातङ् आदेश होता है, विकल्प करके) ।
आशिस्....
-VI. iii. 98
देखें - आशीराशा० VI. iii. 98
आशीर् -VI. i. 35
(वेदविषय में) आशीर शब्द का निपातन किया जाता
है।