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आशीराशाश्या०
आसेव्यमानयोः
आशिलाशा, जात्या,जास्पित,तुक,10कारक
आसन्दीवत-VIII.li.12
आशीराशास्थास्थितोत्सुकोतिकारकरागच्छेषु – VI... ...आसनयो: - VIII. iii.94 iii.98
देखे-वृक्षासनयोः VIII. 1. 94 आशिस्, आशा,आस्था,आस्थित,उत्सुक,ऊति,कारक, राग,छ- इनके परे रहते (अषष्ठीस्थित तथा अतृतीयास्थित अन्य शब्द को दुक आगम होता है)।
आसन्दीवत् शब्द का निपातन किया जाता है।
...आसन्न... -II.1.25 आशीर्ताः - VI.i. 35
देखें - अव्ययासन्नादूरा० II. ii. 25 वेदविषय में) आशीर्त शब्द का निपातन किया जाता
आसन्न... -v.ii. 34
देखें - आसन्नारूढयो: V. ii. 34 ...आशी: ... - VIII. ii. 104
आसन्नकाले-III. ii. 116 देखें-क्षियाशी:o VIII. ii. 104
समीपकालिक (प्रष्टव्य अनद्यतन परोक्ष भूतकाल) में आश्चर्यम् - VI. 1. 142
वर्तमान (धातु से भी लङ् तथा लिट् प्रत्यय होते है)। (अनित्य विषय में) आश्चर्य शब्द में सुट् आगम का
आसन्नारूढयो: -v.ii. 34 निपातन किया जाता है।
(यथासङ्ख्य करके) आसन्न और आरूढ अर्थों में . आश्रये-III. iii. 85
वर्तमान (उप और अधि उपसों से त्यकन् प्रत्यय होता है, (कर्तभिन्न कारक संज्ञा में,उपघ्न शब्द में उप पूर्वक हन् सज्ञाविषय में)। धातु से अप् प्रत्यय तथा हन् की उपधा का लोप निपातन ...आसाम् -I. iv. 46. किया जाता है), सामीप्य प्रतीत होने पर।
देखें- अधिशीड्स्थासाम् I. iv.46 आश्वयुज्याः -IV. iii. 45
आसाम् -IV. iv. 125 (सप्तमीसमर्थ) आश्वयुजी प्रातिपदिक से (बोया हआ (उपधान मन्त्र समानाधिकरण प्रथमासमर्थ मतुबन्त अर्थ में वुञ् प्रत्यय होता है)।
प्रातिपदिक से) षष्ठ्यर्थ में (यत् प्रत्यय होता है, यदि आश्वयुजी = अश्विनी नक्षत्र से युक्त पौर्णमासी।
षष्ठ्यर्थ में निर्दिष्ट ईंटें ही हों, तथा मतुप् का लुक् भी हो
जाता है,वेद विषय में)। ...आषाढा... - IV. iii. 34
आसीत् - VII. 1. 102 देखें-अविष्ठाफल्गुन्य IV. iii: 34 ...आषाढात् - V.I. 109
(उपरिस्वित्), आसीत्' (इनकी टि को प्लुत अनुदात्त देखें-विशाखाषाढात् V.I. 109
होता है)। ...आस... -III. iii. 107
'आसु... -III.i. 126 देखें- ण्यासश्रन्य III. iii. 107
देखें-आसुयुवपि III. 1. 126 ...आस.. -III. iv.72
...आसुति... - V.ii. 112 देखें- गत्यर्थाकर्मक III. iv.72
देखें-रज-कृष्याov.ii. 112 ...आस-III. 1.37
आसुयुवपिरपिलपित्रपिचमः - III. 1. 126 देखें-दयायासः III. 1. 37
आङ् पूर्वक षुज,यु,वप,रप,लप,त्रप् और चम् - इन आस: - VII. ii. 83
धातुओं से (भी ण्यत् प्रत्यय होता है)। आस से उत्तर (आन को ईकारादेश होता है)। आसेवायाम् -II. iii. 40 आसन् -VI.1.61
आसेवा = तत्परता गम्यमान होने पर (आयुक्त और (वेद विषय में आस्य शब्द के स्थान में) आसन् आदेश कुशल शब्दों के योग में षष्ठी और सप्तमी विभक्ति हो जाता है.(शस प्रकार वाले प्रत्ययों के परे रहते। होती है)। ...आसन... -VI. 1. 151
...आसेव्यमानयोः -III. iv.56 देखें - मन्वितन्० VI. 1. 151
देखें-व्याप्यमानासेव्य III. iv.56