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________________ आर्धधातुके आर्धधातुके 1.1.4 जिस आर्धधातुक को निमित्त मानकर (धातु के अवयव का लोप हुआ हो, उसी आर्धधातुक को निमित्त मानकर (इक् के स्थान में जो गुण, वृद्धि प्राप्त होते है, वे नहीं होते)। आर्धधातुके – II. iv. 35 आर्धधातुक के विषय में अथवा परे रहते, यह अधिकार सूत्र है। आर्धधातुके – III. 1. 31 आर्धधातुक के विषय में (आय आदि प्रत्यय विकल्प से होते है)। आर्धधातुके VI. Iv. 47 यह अधिकार सूत्र है; न ल्यपि VI. iv. 68 से पूर्व तक आर्धधातुक का अधिकार जायेगा। आर्धधातुके - VII. Iv. 49 (सकारान्त अङ्ग को सकारादि) आर्धधातुक के परे रहते ( तकारादेश होता है)। आर्य. - VI. ii. 58 (ब्राह्मण तथा कुमार शब्द उत्तरपद रहते कर्मधारय समास में पूर्वपद) आर्य शब्द को विकल्प से प्रकृतिस्वर होता है)। . आर्यकृत... - IV. 1. 30 ... देखें - केवलमामक० IV. 1. 30 ..आ..... II. iv. 58 देखें - ण्यक्षत्रियार्ष० II. Iv. 58 ... आल. - VII. 1. 39 देखें - सुलुक्० VII. 1. 39 आलच्... - V. ii. 125 देखे आलजाटवी V. 1. 125 92 आली - VII. 125 (वाच् प्रातिपदिक से 'मत्वर्थ में) आलच् और आटच् प्रत्यय होते हैं, (बहुत बोलने वाला अभिधेय हो तो)। आलम्बन... - VIII. iii. 68 - देखें- आलम्बनाविदूर्ययोः VIII. iii. 68 आलम्बनाविदूर्ययोः - VIII. II. 68 (अव उपसर्ग से उत्तर भी स्तन्धु के सकार को) आलम्बन आश्रयण और आविदुर्य समीपता अर्थ में (मूर्धन्य आदेश होता है)। = आलिङ्गने - III. 1. 46 आलिङ्गन अर्थ में वर्तमान (श्लिष् धातु से उत्तर चिल के स्थान में क्स आदेश होता है, लुङ् परे रहने पर) । ... आलु... - VI. iv. 55 देखें - आमन्ताo VI. iv. 55 आलुच् - III. ii. 158 (स्पृह, गृह, पत, दय, नि और तत्पूर्वक द्रा, अत्पूर्वक दुधाम् इन धातुओं से तच्छीलादि कर्ता हों तो वर्तमान काल में) आलुच् प्रत्यय होता है। आलेखने - VI. 1. 137 (अप उपसर्ग से उत्तर किरति होने पर चार पैर वाले बैल आदि तथा पक्षी मोर आदि में जो) कुरेदना गम्यमान हो तो (संहिता में ककार से पूर्व सुट् का आगम होता है)। ... आकः - VI. 1. 75 देखें - अयवायाव: VI. 1. 75 आवट्यात् - IV. 1. 75 (अनुपसर्जन) आवटा शब्द से भी स्त्रीलिंग में चाप प्रत्यय होता है)। ... आयपन... - IV. 1. 42 देखें - वृत्यमत्रावपना० IV. 1. 42. आवसथात् आवश्यक... III. iii. 170 देखें - आवश्यकाधमर्ण्ययोः III. iii. 170 आवश्यकाधमर्ण्ययोः - III. iii. 170 आवश्यक और आधमर्ण्य ऋण विशिष्ट कर्ता वाच्य हो तो (धातु से णिनि प्रत्यय होता है)। आवश्यके - - III. i. 125 आवश्यक अर्थ द्योतित होने पर (उवर्णान्त धातु से ण्यत् प्रत्यय होता है। आवश्यके VII. III. 65 (ण्य परे रहते) आवश्यक अर्थ में (अङ्ग के चकार, जकार को कवर्गादेश नहीं होता) । ... आवसथ... - V. iv. 23 देखें- अनन्तावसचेo Viv. 23 आवसथात् - IV. iv. 74 (सप्तमीसमर्थ) आवसथ प्रातिपदिक से (बसता है' अर्थ में ष्ठ प्रत्यय होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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