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आदृगमहनजनः
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आनाम्य
आधन्तवत् -I. 1. 20 (एक में भी) आदि के समान और अन्त के समान (कार्य हो जाते है। आद्यन्तौ -I.i. 45 (षष्ठीनिर्दिष्ट को जो टित् आगम तथा कित् आगम कहा गया हो, वह क्रम से उसका) आदि और अन्त (अवयव हो)।आधुदात्तः - III. i.3 (जिसकी प्रत्ययसंज्ञा कही है, वह) आधुदात्त (भी होता
आदृगमहनजन: -III. ii. 171
आत् = आकारान्त, ऋ= ऋकारान्त तथा गम, हन, जन धातुओं से (तच्छीलादि कर्ता हो,तो वेदविषय में वर्तमान काल में कि तथा किन् प्रत्यय होते हैं तथा उन कि,किन् । प्रत्ययों को लिट्वत् कार्य होता है)।
आदेः-I.i.53 • (पर को कहा गया कार्य) आदि (अल्) के स्थान में हो।
आदेः -III. iii. 41
(निवास,चयन,शरीर तथा राशि अर्थों में चि धातु से घञ् प्रत्यय होता है तथा चिञ् के) आदि चकार को (ककारादेश होता है.कर्तभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में)। आदेः -VLiv. 141 (मन्त्रविषय में आङ्= टा परे रहते आत्मन् शब्द के) आदि का (लोप होता है)। आदेः -VII. 1. 117 . (जित्, णित् तद्धित प्रत्यय परे रहते अङ्ग के अचों के) आदि (अच) को (वृद्धि होती है)। आदेः - VII. iv. 20
(अभ्यास के) आदि के (अकार को लिट परे रहते दीर्घ होता है)। आदेः - VIII. ii. 91 (हि,प्रेष्य,ौषट्, वौषट्, आवह - इन पदों के) आदि को (यज्ञकर्म में प्लुत उदात्त होता है)। आदेश..-VIII. iii. 59 देखें-आदेशप्रत्यययो: VIII. iii. 59 आदेश: -I.1.55
आदेश (स्थानी के सदृश होता है, अल्विधि को छोड़कर)। आदेशप्रत्यययोः -VIII. iii. 59 (इण तथा कवर्ग से उत्तर) आदेश तथा प्रत्यय के (सकार को मूर्धन्य आदेश होता है)। आदेच् -I.i.1
आ, ऐ, औ की (वृद्धि संज्ञा होती है)। आधन्तवचने - V.i. 113 (आकालिकट् - यह निपातन किया जाता है), यदि एक ही काल में उत्पत्ति एवं विनाश कहना हो तो।
आधुदात्तम् -VI. ii. 119 (बहुव्रीहि समास में सु से उत्तर दो अच् वाले) आधुदात्त शब्द को (वेद विषय में आधुदात्त ही होता है)। आधुने - V.ii.67
(सप्तमीसमर्थ उदर प्रातिपदिक से) पेटू' वाच्य हो तो (तत्पर' अर्थ में ठक प्रत्यय होता है)। ...आधमर्ययो: -II. iii. 70
देखें- भविष्यदायमर्ण्ययोः II. iii. 70 ...आधमग्रंयो: -III. iii. 170
देखें - आवश्यकाधमर्ययो: III. Iii. 170 आधमण्यें-VIII. 1.60 (ऋणम् शब्द में ऋधातु से उत्तर क्त के तकार को नकारादेश निपातन है), आधमW = कर्ज लेने वाले का ऋण अभिधेय होने पर। आधारः -I. iv. 45 क्रिया के आश्रय कर्ता तथा कर्म का धारण क्रिया के प्रति) जो आधार है, वह (कारक अधिकरण संज्ञक होता
आनङ्-VI. iii. 24 (विद्या तथा योनि सम्बन्ध के वाचक ऋकारान्त शब्दों के द्वन्द्व समास में उत्तरपद परे रहते) आनङ् आदेश होता
आनन्तर्ये:- IV.i. 104 (षष्ठीसमर्थ बिदादि प्रातिपदिकों से गोत्रापत्य में अञ् प्रत्यय होता है, परन्तु इनमें जो अनृषिवाची हैं, उनसे) अनन्तरापत्य में (अब होता है)। ...आनाम्य..-IV. iv.91
देखें-तार्यतुल्य IV. iv.91