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________________ ( १३ ) वृहत् जैन शब्दार्णव अकल्प अकस्मात्भय ___ यह भाषा बचनिका ( हिन्दी गद्य ) में | कल्प रहित, स्वेताम्बराम्नाय के अनुकूल पं० सदासुख जी खंडेलवाल, काशलीवाल, बीचके२२ तीर्थङ्करों के साधु जो वस्त्र त्याग जयपुर निवासी रचित भी है जो कि वि० आदि १० प्रकारके कल्प रहितथे (अ० मा०)। सं० १६१५ में रचा गया था जब कि इनकी वय ६३ वर्ष की थी। अकल्पित-यह महाभारत युद्ध में सम्मि नोट १-पं. सदासुख जी रचित अन्य लित होने वाले राजाओं में से पाण्डवों के पक्ष का एक बड़ा पराक्रमी राजा था जिसे | प्रन्थ निम्न लिखित हैं: अन्य कई गजाओं सहित गरुड़ ब्यूह, (१) भगवती आराधनासार कीष्टीका रचते समय श्रीकृष्णचन्द्र के पिता "श्रीवसुबचनिका १८००० श्लोक प्रमाण, भाद्रपद देव" ने अपने कुल की रक्षा पर नियत शु०२ वि० सम्बत् १६०८ (२) तत्त्वार्थ | किया था। (देखो ग्रन्थ "वृ०वि० च०') सूत्र की लघु टीका २००० श्लोक प्रमाण, फाल्गुण शु० १० वि० सं० १६१० (३) अकषाय-कषायरहित,तीव्र-कषायरहित, तत्वार्थ सूत्र की ११००० श्लोक प्रमाण ईषत् ( अल्प या किञ्चित ) कषाय अर्थात् 'अर्थ प्रकाशिका टीका', वैशाख शु. १० अल्प या थोड़ी कषाय, मन्द कषाय । जो रविवार, वि० सं० १६१४ (४) रत्नकरंड आत्मा की कषै, क्लोषित करे, उसे कषाय श्रावकाचार की टीका, १६००० श्लोक कहते हैं । कषाय के विशेष स्वरूप व भेदादि प्रमाण, चैत्र कृ० १४ वि० सं० १९२० (५) जानने के लिये देखो शब्द "कषाय" नित्य नियम पूजा टीका, वि० सं० १९२१ (६) मृत्यु महोत्सव घचनिका ॥ अकषायवेदनीय चारित्र मोहनीय कर्म नोट २-इस अकलंकाष्टक की एक | के दो भेदों ( कषाय वेदनीय,अकषाय वेदसंस्कृत दीका भी है जो एकी-भाव स्तोत्र, नीय ) में से एक भेद जिसके हास्य, रति, यशोधर चरित, पार्श्वनाथ चरित और अरति, शोक, भय, जुगुप्सा,स्त्री-वेद, पुरुषकाकुस्थ चरित आदि ग्रन्थों के रचयिता "श्री वेद, नपुसक वेद, यह नव भेद हैं। इनको वादिराज सूरि" ने अथवा वाग्भट्टालंकार की 'ईषत्-कषाय" वा "नो कषाय' भी संस्कृत टीका, शानलोचन, यशोधरकाव्य कहते हैं। और पार्श्वनाथ निर्वाण काव्य आदि ग्रन्थों अकस्मात् भय-अचानक किसी आपत्ति के कर्ता 'श्रीवादिराज" कवि ने बनाई है। के आपड़ने का भय ; सप्त भय अथवा प्रकल्प-साधु के न ग्रहण करने योग्य सप्त भीत-इहलोक भय , परलोक मय, . (अ० मा०)। वेदना भय, मरण भय, अनरक्षा भय, अगुप्त भय और अकस्मात् भय में से प्रकल्पस्थित-अचेलकादि १० प्रकार के एक प्रकार का भय । सम्यक्त को बिगाड़ने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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