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________________ अकलंकप्रतिष्ठापाठकल्प वृहत् जैन शब्दार्णव अकलकाष्टक नाम ही से प्रकट है। (पीछे देखी शब्द रचित "प्रतिष्ठाविधिरूपा' नाम से प्रसिद्ध "अकलङ्क" )॥ ८००० श्लोक का एक ग्रन्थ है ॥ अकलप्रतिष्ठापाठकल्प-यह “अकलंक अकनङ्ग स्तोत्र-इसी का नाम 'अकलं. प्रतिष्ठापाठ' का ही नाम है ।। काटक' भीहै जिसे "श्रीभट्टाकलं कस्वामी" ने संस्कृत पद्य में रचा है । इसमें सब केवल अकलङ्कप्रतिष्ठाविधिरूपा-यह विक्रम १२ शार्दूलविक्रीड़ित और ४ अन्य छन्द की तेरहीं शताब्दी में हुए अकलङ्क देव श्री अरहन्त देव की स्तुति में हैं। इसे पं० भट्टारक' रचित ८००० श्लोक का एक नाथूराम प्रेमी ने हिन्दी भाषा के वीर छन्द ग्रन्थ है । इसी का नाम अकलङ्क संहिता" या आल्ह छन्द नामक ३१ मात्रा के १६ भी है । (पीछे देखो शब्द “अकलङ्क" ) ॥ सम-मात्रिक छन्दों में भी रचा है ॥ अकलङ्कप्रायश्चित- यह श्री "अकलङ्क नोट १-श्रीमान् पं० पन्नालाल वाकलो वाल ने अपने भाषा अकलङ्कचरित्र के साथ | देवभट्ट" रचित एक संस्कृत प्रायश्चित ग्रन्थ यह मूल स्तोत्र भाषाटीका सहित तथा है जो ८७ अनुष्टुप छन्दों और एक अन्य पं. नाथूरामजी रचित भाषा छन्दों सहित छन्द, सर्व ८८ छन्दों में पूर्ण हुआ है । इस "कर्णाटक प्रिंटिङ्ग प्रेस २० ७, बम्बई" में में केवल श्रावकों के प्रायश्चित का वर्णन प्रकाशित करा दिया है। है । इसकी रचना शैली से अनुमान किया जाता है कि यह ग्रन्थ विक्रम की १६वीं नोट २--इस स्तोत्र के छन्द १५, १६ के | शताब्दी के पूर्वाद्ध में हुए "अकलंकभट्ट' देखने से ऐसा जाना जाता है कि या तो | नामक भट्टारक रचित है जिनका रचा यह स्तोत्र श्री अकलङ्क स्वामी का बनाया "अकलंकप्रतिष्ठापाठ' नामक ग्रन्थ है। हुआ नहीं किन्तु उनके किसी शिप्यादि का ऐसा भी अनुमान किया जाता है कि बनाया हुआ है (जिसके सम्बन्ध में अन्य विक्रम की १३वीं शताब्दी में हुए अकलंक- कई विद्वानों की भी यही सम्मति है) या देव भट्ट ने जो "श्रावकप्रायश्चित" नामक | श्री भट्टाकलङ्क स्वामी रचित छन्द केवल ग्रन्थ रचकर विक्रम सम्वत् १२५६ के ८ या ६ हों जैसा कि इसके अपर नाम "अक. आषाढ़ शु० १४ को समाप्त किया था वह | लङ्काष्टक" से ज्ञात होता है, और शेष छन्द यही "अकलंक प्रायश्चित" नामक ग्रन्थ है। उनके शिष्यादि में से किसी ने बढ़ा दिये। हो॥ अकलङ्कर भद्र-देखो शब्द "अकलङ्क" ॥ अकलङ्गाष्टक-अकलङ्क स्तोत्र ही का नाम अकलङ्क संहिता-यह विक्रम की १३वीं अकलङ्काष्टक भी है ( पीछे देखो शब्द शताब्दी में हुए अकलंक देव भट्टारक | "अकलङ्कस्तोत्र" नोटो सहित) - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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