SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अकम्पन ( ६ वृहत् जैन शब्दार्णव की पुत्री ) श्रीमती व अन्य परिवारजन आदि सहित जा रहा था तो यह सेनापति 'अकम्पन्' भी साथ था । मार्ग में किसी वन में ठहरने पर जब 'बज्रजङ्घ' और श्रीमती' नेअपने लघु युगल पुत्रों 'दम्बरपेण' और 'सागरषेण' को जो कुछ दिन पूर्व पिता से आज्ञा लेकर मुनिपद ग्रहण कर चुके थे और जो उस समय अचानक वहां विचरते आ निकले थे, बड़ी भक्ति से यथाविधि अन्तराय रहित शुद्ध आहार दान दिया तब इस अकम्पन ने भी शुद्ध हृदय से इस दान की बड़ी अनुमोदना की जिससे इसे भी महान पुण्य बंध हुआ । "वज्रजङ्घ" और "श्रीमती' के शरीर त्याग पश्चात् 'श्री. दृढ़ धर्म स्वामी' दिगम्बराचार्य से 'अकम्पन' ने दिगम्बरी दीक्षा ग्रहण की और उग्र तपश्चरण करके शरीर त्याग कर प्रथम वैक में जन्म ले अहमेन्द्र पद पाया । यही 'अकम्पन ' अहमेन्द्र पद के पश्चात् दो जन्म और लेकर पाँचवें जन्म में श्री ऋषभदेव का पुत्र 'बाहुबली' प्रथम कामदेव पदवी धारी पुरुष हुआ । ( ३ ) एक प्रसिद्ध जैनाचार्य - यह नवे चक्रवर्ती राजा महापद्म के समय में विद्य मान थे । यह १६ वें तीर्थंकर श्री मल्लिनाथ और बीसवें तीर्थंकर श्रीमुनिसुव्रतनाथ के अन्तराल काल में अष्टम बलभद्र नारायण श्रीरामचन्द्र लक्षमण के समय से पूर्व हुए जिसे आज से लगभग १२ या १३ लाख वर्ष व्यतीत होगये । यह महा मुनि समस्त श्रुत के ज्ञाता श्रुतकेवली ७०० शिष्य मुनियों के नायक थे । हस्तिनापुर Jain Education International अकम्पन के कुरुवंशी राजा पद्मरथ ( महापद्म के पुत्र ) के "बलि" नामकमंत्री ने राजा को बचनवद्ध करके और७दिन का राज्य उससे लेकर पूर्व विरोध के कारण ७०० शिष्यों सहित इन ही अकम्पनाचार्य पर "नरमेधयज्ञ" रच कर भारी उपसर्ग किया जिसे वैक्रियिक ऋद्धि धारक "श्री विष्णुकुमार" मुनि ने, जो हस्तिनापुर नरेश पद्मरथ के लघु भ्राता थे और पिता के साथ ही गृहस्थपद त्याग तपस्वी दिगम्बरमुनि हो गये थे, अपनी वैक्रियिक ऋद्धि के बल से ५२ अंगुल का अपना शरीर बना बावनरूप धारण कर निवारण किया था । उस दिन तिथि श्रावण शुक्ला १५ और नक्षत्र श्रवण था । श्री विष्णुकुमार का यह बावनरूप ही " बावन अवतार" के नाम से लोक प्रसिद्ध है। रक्षाबन्धन (सलूनों ) का त्योहार उसी दिन से प्रचलित हुआ है । ( ४ ) लङ्कापति रावण का एक सेनापति - राम रावण युद्ध में यह श्री हनुमान के हाथ से मारा गया था । प्रहस्त और धूम्राक्ष इस के यह दो भाई और थे जिन में से प्रहस्त भी रावण की सेना का एक वीर अधिपति था। यह रावण की माता केकसी का लघुभ्राता अर्थात् रावण का मातुल ( मामा ) था ॥ (५) नवम नारायण या वासुदेव श्री कृष्णचन्द्र का ज्येष्ठ पितृव्य- पुत्र ( तयेरा भाई ) - यह श्रीकृष्णचन्द्र के पिता वसुदेव के ज्येष्ठ भ्राता विजय के छह पुत्रों में से सब से बड़ा पुत्र था । इस के ५ लघुभ्राता १ बलि, २ युगन्त, ३ केशरी ४. धी For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy