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________________ हिन्दी जैन गजट कलकला, शुकवार, पौष कृ०८वीर नि० सं०२४५१, ता०१६ दिसम्बर १९२४,वर्ष ३०, अङ्क १० समालोचना। वृहत् जैन शब्दार्णव ।। रचयिता-श्रीयुत बा० बिहारीलाल जी जैन बुलन्दशहर निवासी । प्रकाशक-या० शांतिचन्द्र जैन, बारावती । आकार बड़ा, काराज़ छपाई सफ़ाई आदि सभी उत्तम ।। यह बहुत बड़ा जैनशब्द कोष अकरादि क्रम से लिखा जा रहा है। हमें समालोचनार्थ । अभी प्रारम्भ से २०८ पृष्ट तक प्राप्त हुआ है । इनमें केवल अकार पूर्वक शब्दों का ही उल्लेख है। २०८ चे पृष्ठ में 'अज्ञान-परीषह' शब्द आया है। जिस विवेचना शैली और विषदनिरूपण । से इस ग्रन्थ का प्रारम्भ दीख रहा है उसे देख कर अनुमान होता है कि अभी केवल अकार | निर्दिष्ट शब्द ही कई सौ पृष्ठ तक और जायँगे। फिर आकार, इकार आदि निर्दिष्ट शब्दों की बारी भी उसी विस्तार क्रम से आवेगी। इस अकार निर्दिष्ट शब्द रचना से ही बहुत कुछ जैन शास्त्रों का रहस्य सुगमता से जाना जा सकता है ! अक्षर स्वरूप, पदध्यान, अलौकिक गणित, इतिहास, कर्मस्वरूप निदः र्शन, श्रु तविस्तार, द्वादशांग रचना, स्वर्गादि लोक रचना, गुणस्थान निरूपण, पर्यों की तिथियों के भेद विस्तार, चक्षदर्शनादि उपयोग, अशीणादि ऋद्धियां इत्यादि अनेक पदार्थों का स्वरूप आदि केवल एक 'अ' नियोजित शब्दसे जाने जाते हैं । आगे जैसे २ इस महानाथ की रचना होगी उससे बहुत कुछ जैनधर्म निर्दिष्ट पदार्थों से एवं पुरातत्व विषयों का सूक्ष्म दृष्टि से परिज्ञान हो सकेगा। इस प्रकार के अन्य को जैन साहित्य में बड़ी भारी कमी थी जिसकी पूर्ति श्रीयुत मा स्टर बिहारीलाल जी अपने असीम श्रम एवं बुद्धि विकास से कर रहे हैं । यह रचना मास्टर साहब के अनेक वर्षों के मननपूर्वक स्वाध्याय का परिणाम है । इस महती कृति के लिये लेखक महोदय अतीव प्रशंसा के पात्र हैं। उनकी यह कृति जैनसमाज में तो आदर की दृष्टि से देखी ही जायगी साथ ही जैनेतर समाज भी उसले जैनधर्म का रहस्य समझने में बहुत बड़ी सहायता लेगा। समस्त जैन बन्धुओं को चाहिये कि वे इस कोष को अवश्य मँगावें । हर एक भाई | के लिये यह बड़े काम की वस्तु है। -सहायक सम्पादक. श्री हिन्दी साहित्याभिधान . द्वितीयावयव संस्कृत-हिंदी व्याकरण-शब्दरत्नाकर (संक्षिप्तपद्यरचना व काव्यरचनासहित) मु०१), स्वल्पार्धशालरलमाला के । स्थायी ग्राहकों को बिना मुख्य । श्री हिन्दी साहित्याभिधान तृतीयावयव , श्री वृहत् हिन्दी शब्दार्थ महासागर प्रथम खण्ड । मू०१), स्वल्पार्घ ज्ञानरत्नमाला के स्थायी ग्राहकों को॥) में AMEHEIREWARIWAPRIKANEINDIATVAALAWmRREnamanMWAIMERAT H ORENERARNATURaW.TARVer Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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