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स्वल्पार्घ ज्ञानरत्नमाला का द्वितीय रत्न ।
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श्रयतां धर्म सर्वस्वं श्रुत्वा चैवावधारयेत् । आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् ॥
प्रथम अवयव
| हिन्दी साहित्य-अभिधान
ISI
प्रथम खण्ड
श्री वृहत जैन शब्दार्णव
सम्पादक:
B.L. Jain,Chaitanya.
बी० यल जैन, चैतन्य (बुलन्दशहरी) प्रथमावृति ) श्रीवीरनि०सं०२४५१ ( स्वल्पार्घ ज्ञानरत्नमाला के स्थायी
शुद्ध घीर नि० संवत् ग्राहकोंको २॥) में औरसजिल्द३०)में मूल्य ३), सजिल्द ४) ) Printed by Badri Prasada Shukl at the Desh Bandhu Press,
Bara Banki.
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