SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 350
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - । (२८६) रूपाधं शानरत्नमाला के स्थापी ग्राहकों को अर्द्ध मूल्य ही में । पब्लिक पुस्तकालयों को पौने मूल्य में । वी. पी. डाक व्यय एक प्रति का 45) और इससे अधिक प्रत्येक प्रति का डाक महसूल ) ग्राहकों को देना होगा। ५. पंचमरत्न-उपर्युक्त चारों ग्रन्थ रत्नों के सम्पादक महोदय का संक्षिप्त जीवनचरित्र, उनके रचे ५० से अधिक ग्रन्थों की सूची और उनमें से कुछ की गद्यात्मक और पद्यात्मक रचनाओं के नसूनों सहित । मूल्य =)| फोटो सहित ) ६. षष्टमरत्न--श्री वृहत् “हिन्दी शब्दार्थ महासामर" ( प्रथमखंड)-यह ग्रन्थरत्न भी इसी श्री वृहत् जैन शब्दार्णव के माननीय लेखक की लेखनी द्वारा लिखा गया है। यह एक चतुर्भाषिक-या भाषाचतुष्क शब्द कोष है। हिन्दी भाषा में लिखे पढ़े और बोले जाने वाले लगमग सर्व ही विद्याओं, कलाओं या विषयों सम्बन्धी सर्व प्रकार के शब्दों के संस्कृत, हिन्दी, उर्दू और अंग्रेज़ो अक्षरों में अंग्रेज़ी पर्याय वाची शब्द और उनके अर्थ आदि दिये | गयेहैं। शह किस भाषाले हिन्दी में आयाई तथा उसका शब्द भेद और लिंग भी प्रत्येक शब्द के साथ देदिरे हैं। इन विशेग्ताओं अतिरिक्त इसका महत्व प्रगट करते हुए दावे के साथ कहा जा सकताहै कि हिन्दी में प्रयुक अधिक से अधिक जितने शब्दोंका संग्रह इस कोष गन्थ में किया गया है उतनों का संग्रह अन्य किसी भी हिन्दी कोष गन्थ में-कलकत्ते का विश्वकोष hresthaedia Indica of Calcutta) और काशी नागरी प्रचारिणी सभा का द हीं हुआ । अर्थात् इस महान् कोषमै विश्वकोष और हिंदी शब्दसागर | के सर्व ही शब्दाकै अतिरिक्त हिन्दी में आने वाले अन्य सैकड़ों सहस्रों शब्द भी माननीय लेखक, ने रखकर हिन्दी संसार का महान् उपकार किया है। हाँ इतना अवश्य है कि इन उपर्युक्त दोनों वृहत् कोषों के समान इस “वृहत् हिन्दी शब्दार्थ महा सागर' में शब्दों की व्याख्या नहीं दी गई है इसी लिये यह गून्य रत्न साइना ( आकार और परिमाण ) में उनसे छोटा है। पर उपर्युक्त अपनी अन्य कई विषेषताओं में उनमें से प्रत्येक से अधिक महत्वपूर्ण है । प्रथम खंड लिखा जा चुका है और प्रेस को छपने के लिये दिया जा चुका है। आशा है कि छपकर ! मो शीघ्र ही तयार होजायगा । प्रथम खंड का मूल्य लग भग २) रहेगा। _ नोट--इस वृहत्जैन शब्दार्णव के लेखक महोदय रचित,अनुवादित व प्रकाशित हिन्दी अंग जी,अन्यान्य सर्व गन्थ भी जिनका संक्षिप्त विवरण पंचम रत्न में (जो इसी शब्दार्णव प्रारम्भ में जोड़ दिया गया है ) देदिया गया है नीचे लिखे पते पर माला के स्थायी गाहकों को माला के उपरोक नियमानुकूल मिल सकते हैं । ...शान्तीशचन्द्र जैन, जर स्वल्पार्घज्ञानरत्नमाला, बाराबंकी (अवध) RomaARTANINGE R Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy