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________________ (२५) ३.तृतीय रत्न--"अग्रवाल इतिहास"-सूर्यवंशकी एक शाखा अग्रवंशका लगभग सात सहस्र (७००० ) वर्ष पूर्व से आज तक का कई प्रमाणिक जैन अजैन ग्रन्थों और पट्टावलियों के आधार पर लिखा गया सर्वांग पूर्ण और शिक्षाप्रद इतिहास । मूल्य =), लेखक के फोटो सहित ) ४. चतरत्न-'संस्कृत-हिन्दीव्याकरण शब्दरत्नाकर" (संक्षिप्त पद्यरचना, काव्य रचना नाट्यकला और संगीतकला आदि सहित)-यह गन्थरत्न इसी 'श्री वृहत् जैन शब्दार्णव' के माननीय लेखक की लेखनी द्वारा लिखा गया है। यह अपने विषय और ढंग का सब से पहिला और अपूर्व गून्य है । इसी शब्दार्णव के जैसे बड़े बड़े ११६ पृष्टों में पूर्ण हुआ है। इस में जैनेन्द्र, शाकटायन, पाणिनी, सिद्धान्त कौमुदी आदि कई संस्कृत व्याकरण ग्रन्थों और बहुत से प्रसिद्ध और प्रमाणिक हिन्दी व्याकरण ग्रन्थों, तथा छन्दप्रभाकर, काव्यप्रभाकर, वाग्भटालंकर, नाट्यशास्त्र, संगीतसुदर्शन आदि कई छन्दोगन्थ, काव्यालंकार गन्थ, नाट्य व संगीत गून्थों में आये हिन्दी भाषा में प्रयुक्त होने वाले लगभग सर्व ही शब्दों की निर्दोष परिभाषा उदाहरण आदि सहित ऐसी उत्तम रीति से क्रमबद्ध दी गई है जिस की सहायता से व्याकरण के विद्यार्थी अपनी हिन्दी भाषा में इस एक ही गन्थ द्वारा अच्छा ज्ञान प्राप्त करके उपरोक्त विषयों सम्बन्धी परीक्षाओं में अधिक से अधिक उत्तम अंक प्राप्त कर सकेंगे। अंगरेजी मिडिल या हाई स्कूलों तथा इन्टरमिडियेट कालिजों के संस्कृत व हिन्दी पढ़ने वाले विद्यार्थी इस ले और भी अधिक लाभ उठा सकेंगे, क्योंकि इस ग्रन्थ में प्रारम्भ से अंत तक के सर्व लगभग १००० (एक सहस्र) पारिभाषिक शब्दों के अङ्गरेज़ी पारिभा षिक शब्द ( पर्याय वाची शब्द ) अङ्गरेज़ी अक्षरों ही में प्रत्येक शब्द के साथ दे दिये गये हैं। भाषा और उसके भेद,व्याकरण और उसके भेद, अक्षरविचार और अक्षरभेद, लिपि और उसके पर्यायवाची अनेक नामादि, स्वर, व्यंजन, सन्धि, शब्दव उसकी जाति भेद, उपभेदादि, संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिवा व धातु आदि, अव्यय और इन सर्वके अनेक भेद उपभेद आदि, शब्दरूपान्तर-लिंग, वचन, कारक, पुरुष, विशेषणावस्था, वाच्य, काल, अर्थ या रीति, प्रयोग, कृदन्त,कालरचना आदि-समास और उसके अनेक भेद उपभेदादि,वाक्य में अन्वय, अधिकारादि व उसके अङ्ग प्रत्यंग आदि, वाक्य भेद-अर्थापेक्षा, वाच्यापेक्षा, रचनापेक्षा--,विरामचिह्न, हिन्दी में प्रयुक्त होने वाले अन्य अनेक चिह्न, छन्दरचना-छन्द, गति, | यति,पाद, दग्धाक्षर, गण आदि-काव्यरचना-काव्य,काव्यरस, काव्यगुण,काव्य दोष,काव्य रीति, काव्यालंकार, शब्दालंकार, अर्थालङ्कार, उभयालङ्कार और इन सब के लगभग १२५ भेदोपभेदादि, न्यायालङ्कार और उसके ४५ भेद, नाटक सम्बन्धी ४० और संगीत में ६ राग, ३० रागणी, ३० रागपुत्र, ३० रागपुत्रवध इत्यादि, और ताल नृत्यादि के अनेक भेदोपभेद इत्यादि इस महान गन्धरत्न में हिन्दी साहित्य सम्बन्धी अनेक विषयों का समावेश है । बड़ी दृढ़ता और साहस के साथ कहा जा सकता है कि हिन्दी व्याकरण के अथवा संस्कृत या हिन्दी के साथ अंग्रेजी भाषा सीखने वाले विद्यार्थियों के लिये इतना महत्व पूर्ण और उपयोगी अन्यग्रन्थ आज तक एकभी नहीं लिखा गया। तिस पर भी मूल्य केवल १),सजिल्द १) स्व Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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