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________________ Jain Education International - स्वकृत | कारित | अनुमोदित | अष्टादशसहस शीलाङ्ग अठारहसहस्र शील मनोगुप्ति सहित बचनगुप्ति सहित कामगुप्त सहित आहारसंज्ञा भयसंज्ञा विरक्त विरक्त | मैथुन संज्ञा | परिग्रहसंज्ञा विरक्त *धिरक्त | For Personal & Private Use Only स्पर्शनेन्द्रिय रसनेन्द्रिय | घ्राणेन्द्रिय- | नेत्रेन्द्रिय- | करणेन्द्रियवश रहित वश रहित | वश रहित घश रहित |वश रहित ७२ १०० ( वृहत् जैन शब्दार्णव २५० ) पृथ्वीकायि-जल कायिक अग्निकायिका वायकायिका प्रत्येक बन-| साधारण । द्वीन्द्रिय | श्रीन्द्रिय । चतुरेन्द्रिय | पंचेन्द्रिय क प्राणिसं प्राणिसंयम | प्राणिसंयम | प्राशिसंयम | स्पतिकायिक बनस्पति का- प्रोणिसंयम प्राणिसंयम | प्राणिसंयम प्राणियम यमसहित सहित सहित सहित प्राणिसंयम | यिक प्राणि-| सहित | सहित सहित सहित सहित संयम सहित १०० ३६० ५४० ७२० ६०० १०८० १४४० १६२० उत्तम उत्तम उत्तम उत्तम उत्तम उत्तम उत्तम क्षमाश्वित मार्दवान्वित | आर्यवान्वित | शौचाधित सत्यान्वितः संयमान्वित | तपान्चित शील शील शील शील शील शील - शील उत्तम उत्तम उत्तम त्यागान्धित आकिञ्चन्या- ब्रह्मचर्यान्वित | शील |न्वित शील शील अठारहसहन शील १८०० ३६०० ५४०० ७२०० ९००० १०८०० १२६०० १४४०० १६२०० www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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